हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री शान्ता कुमार ने कहा कि भारतीय राजनीति में मुफ्त रेवड़ियां बांटने के प्रश्न पर गंभीर बहस हो रही है। मामला देश के उच्चतम न्यायालय तक पहुंच गया है। भारत में सालों पहले गंभीरता से विचार करके ठीक निर्णय कर लिया गया था। उस दृष्टि में यह बहस व्यर्थ है।
उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानन्द देश के गरीबों के लिये खून के आंसू बहाते रहे। उन्होंने दरिद्र नारायण का मंत्र दिया। महात्मा गांधी ने उसी आधार पर अन्त्योदय का मंत्र दिया। दीनदयाल उपाध्याय जी ने पंक्ति में सबसे पीछे के व्यक्ति की मदद का मंत्र दिया। इन्हीं मंत्रों के आधार पर 1977 में जनता सरकारों ने अन्त्योदय योजनायें शुरू की।
भाजपा के वयोवृद्ध नेता शान्ता कुमार ने कहा कि हिमाचल और राजस्थान में एक साथ अन्त्योदय योजना आरंभ की गई थी। हिमाचल में एक लाख सबसे गरीब परिवारों को चुनकर लोक कल्याण की सभी योजनाओं को प्राथमिकता के आधार पर उन परिवारों की ओर केन्द्रित किया गया था। कुछ और सुविधायें दी गई थी। एक साल के बाद 40 प्रतिशत परिवार गरीबी की रेखा से ऊपर हो गये थे।
उन्होंने कहा कि जब वह केन्द्र में खाद्य मंत्री बने तो अनाज के भण्डार भरे पड़े थे, रखने को जगह नहीं थी परन्तु अटल के नेतृत्व में सरकार किसी को मुफ्त अनाज बांटने की बात नहीं सोची। सबसे गरीब 10 करोड़ लोगों को चुनकर अन्त्योदय अन्न योजना शुरू हुई। मुफ्त अनाज नहीं बल्कि सस्ते भाव पर 35 किलो अनाज 2 रुपये किलो गेहूं और 3 रुपये किलो चावल देना शुरू किया। कुछ समय बाद सरकार के सामने एक विषय आया। कुछ लोग इतने अधिक गरीब हैं कि 2 और 3 रुपये के भाव पर भी राशन नहीं खरीद सकते। तब अटल से सलाह करके हमने अन्नपूर्णा योजना शुरू की। भुखमरी के कगार पर जी रहे अति गरीब परिवारों को 20 किलो अनाज मुफ्त दिया जाने लगा।
शान्ता कुमार ने कहा कि देश के मनीषियों और प्रमुख नेताओं द्वारा सिद्धांत तय है कि भुखमरी की कगार पर रहने वालों को मुफ्त सहायता दी जानी चाहिये। अति गरीब लोगों को मुफ्त नहीं, सस्ते भाव पर आवश्यक वस्तुएं दी जायें और अन्य सभी लोगों को कुछ भी मुफ्त नहीं दिया जाए। अच्छे भले सम्पन्न लोगों को मुफ्त वस्तुयें देकर भिखमंगा बनाने का प्रयत्न महापाप है- उनके स्वाभिमान के साथ खिलवाड़ है और आत्मनिर्भरता के विपरीत कदम है। सरकार के आर्थिक तंत्र की बर्बादी है। देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह कि राजनीति देश के लिए नहीं- केवल और केवल कुर्सी के लिए है।
आशा खबर /रेशमा सिंह पटेल