न्यायमूर्ति राजन राय व न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान एसओपी पर कुछ सुझाव भी दिए हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में बहुचर्चित हाथरस कांड में राज्य सरकार ने ऐसे केसों में शवों के गरिमापूर्ण अंतिम संस्कार की नई योजना का फाइनल प्रारूप (एसओपी) पेश किया। कोर्ट ने इसके दिशा-निर्देश तय करने के आदेश राज्य सरकार को दिया था। न्यायमूर्ति राजन राय व न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान एसओपी पर कुछ सुझाव भी दिए हैं। ‘शवों के गरिमापूर्ण अंतिम संस्कार का अधिकार’ शीर्षक से खुद संज्ञान लेकर दर्ज कराई गई पीआईएल पर खंडपीठ सुनवाई कर रही है। कोर्ट ने आदेश दिया कि राज्य के अधिकारी एसओपी अधिसूचित होने पर कार्रवाई करेंगे।
कोर्ट ने सरकार को सुझाव के साथ आदेश दिया कि सरकारी कार्मिक जो ऐसे शवों के दाह संस्कार में शामिल होने वाले हैं, उनको एसओपी का पालन करने के लिए परामर्श दिया जाना चाहिए जिससे इस योजना का उद्देश्य विफल न हो। क्योंकि यह योजना मूल्यवान संवैधानिक व मौलिक अधिकारों को छूती है। इस तरह के अधिकारों के संबंध में पूरी प्रक्रिया को गंभीरता से संचालित किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि इसके तहत राज्य सरकार योजना/एसओपी को अधिसूचित कर सकता है।
कोर्ट ने कहा कि इस योजना/एसओपी का पुलिस थानों, अस्पतालों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, जिला मुख्यालयों और तहसीलों आदि में व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। जिससे हितधारक इस योजना/एसओपी से अवगत हो सकें। कोर्ट ने इस तरह की योजना/एसओपी लाने के लिए किए गए सरकार के प्रयासों की सराहना भी की है। भविष्य में इस तरह के विवाद व जटिलताएं उत्पन्न न हों जैसा कि इस हाथरस कांड के मामले में हुआ। कोर्ट ने इसी तरह के अन्य सुझाव भी दिए हैं।
मृतक भी अपने शरीर के सम्मान का हकदार
कोर्ट ने कहा कि एक मृत व्यक्ति को अधिकार है कि उसके शरीर के साथ सम्मान हो। इसका वह अपनी परंपरा, संस्कृति और धर्म के अधीन हकदार होता है। यह अधिकार न केवल मृतक के लिए है बल्कि उसके परिवार के सदस्यों को भी धार्मिक परंपराओं के अनुसार अंतिम संस्कार करने का अधिकार है। अंत्येष्टि के अधिकार को व्यक्ति की गरिमा के अनुरूप माना गया है। इसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन के अधिकार के एक मान्यता प्राप्त पहलू के रूप में दोहराया गया है।
यह है मामला
कोर्ट ने पहले 12 अक्तूबर 2020 को सुनवाई के दौरान हाथरस में परिवार की मर्जी के बिना रात में मृतका का अंतिम संस्कार किए जाने पर तीखी टिप्पणी की थी। कोर्ट ने कहा था कि बिना धार्मिक संस्कारों के युवती का दाह संस्कार करना पीड़ित, उसके स्वजन और रिश्तेदारों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है। इसके लिए जिम्मेदारी तय कर कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
गौरतलब है कि हाथरस जिले के बूलगढ़ी गांव में 14 सितंबर 2020 को दलित युवती से चार लड़कों ने कथित रूप के साथ सामूहिक दुष्कर्म व बेरहमी से मारपीट की थी। युवती को पहले जिला अस्पताल, फिर अलीगढ़ के जेएन मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया। हालत खराब होने पर उसे दिल्ली रेफर किया गया, जहां 29 सितंबर को इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। इसके बाद आनन-फानन में पुलिस ने रात में उसके शव का अंतिम संस्कार कर दिया था। इसके बाद काफी बवाल हुआ था।
आशा खबर / शिखा यादव