आज सुनवाई शुरू होते ही चीफ जस्टिस एनवी रमना ने पूछा कि क्या सभी पक्षों ने मामले से जुड़े कानूनी सवालों का संकलन जमा करवा दिया है। तब महाराष्ट्र के राज्यपाल की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मैं अभी जमा करवा रहा हूं। उद्धव गुट के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर दो तिहाई विधायक अलग होना चाहते हैं तो उन्हें किसी से विलय करना होगा या नई पार्टी बनानी होगी। वह नहीं कह सकते कि वह मूल पार्टी हैं। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि मतलब आप कह रहे हैं कि उन्हें भाजपा में विलय करना चाहिए था या अलग पार्टी बनानी थी। तब सिब्बल ने कहा कि कानूनन यही करना था।
सिब्बल ने कहा कि पार्टी सिर्फ विधायकों का समूह नहीं होती है। इन लोगों को पार्टी की बैठक में बुलाया गया। वे नहीं आए। डिप्टी स्पीकर को चिट्ठी लिख दी। अपना व्हिप नियुक्त कर दिया। असल में उन्होंने पार्टी छोड़ी है। वह मूल पार्टी होने का दावा नहीं कर सकते। आज भी शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे हैं। सिब्बल ने कहा कि जब संविधान में दसवीं अनुसूची (दल-बदल विरोधी प्रावधान) को जोड़ा गया, तो उसका कुछ उद्देश्य था। अगर इस तरह के दुरुपयोग को अनुमति दी गई तो विधायकों का बहुमत सरकार को गिरा कर गलत तरीके से सत्ता पाता रहेगा और पार्टी पर भी दावा करेगा।
सिब्बल ने कहा कि पार्टी की सदस्यता छोड़ने वाले विधायक अयोग्य हैं। चुनाव आयोग जाकर पार्टी पर दावा कैसे कर सकते हैं। उद्धव गुट के दूसरे वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि इन लोगों को किसी पार्टी में विलय करना था। वह जानते हैं कि असली पार्टी नहीं हैं लेकिन चुनाव आयोग से मान्यता पाने की कोशिश कर रहे हैं।
शिंदे गुट के वकील हरीश साल्वे ने कहा कि जिस नेता को बहुमत का समर्थन न हो। वह कैसे बना रह सकता है? सिब्बल ने जो बातें कही हैं, वह प्रासंगिक नहीं हैं। जब पार्टी में अंदरूनी बंटवारा हो चुका हो तो दूसरे गुट की बैठक में न जाना अयोग्यता कैसे हो गया। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि इस तरह से तो पार्टी का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। विधायक चुने जाने के बाद कोई कुछ भी कर सकेगा। साल्वे ने कहा कि हमारे यहां एक भ्रम है कि किसी नेता को ही पूरी पार्टी मान लिया जाता है। हम अभी भी पार्टी में हैं। हमने पार्टी नहीं छोड़ी है। हमने नेता के खिलाफ आवाज़ उठाई है।
साल्वे ने कहा कि किसी ने शिवसेना नहीं छोड़ी है। बस पार्टी में 2 गुट हैं। क्या 1969 में कांग्रेस में भी ऐसा नहीं हुआ था। कई बार ऐसा हो चुका है। चुनाव आयोग तय करता है। इसे विधायकों की अयोग्यता से जोड़ना सही नहीं। वैसे भी किसी ने उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया। तब चीफ जस्टिस ने पूछा कि आप चुनाव आयोग क्यों गए हैं। तब साल्वे ने कहा कि मुख्यमंत्री के इस्तीफे के बाद स्थिति में बदलाव हुआ है। अब बीएमसी चुनाव आने वाला है। यह तय होना ज़रूरी है कि पार्टी का चुनाव चिह्न कौन इस्तेमाल करेगा।
साल्वे ने कहा कि सिब्बल ने जो भी कहा, वह सब बातें अब निरर्थक हैं। तब चीफ जस्टिस ने पूछा कि आप दोनों में पहले सुप्रीम कोर्ट कौन आया था। तब साल्वे ने कहा कि हम आए थे, क्योंकि डिप्टी स्पीकर ने अयोग्यता का नोटिस भेजा था लेकिन उनके खिलाफ खुद ही पद से हटाने की कार्रवाई लंबित थी। वह नबाम रेबिया फैसले के चलते ऐसा नहीं कर सकते थे। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि हमने 10 दिन के लिए सुनवाई टाली थी। इस बीच आपने सरकार बना ली। स्पीकर बदल गए। अब आप कह रहे हैं, सारी बातें निरर्थक हैं। तब साल्वे ने कहा कि मैं ऐसा नहीं कह रहा कि इन बातों पर अब विचार ही नहीं होना चाहिए। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि ठीक है, हम सभी मुद्दों को सुनेंगे। शिंदे कैंप के दूसरे वकील नीरज किशन कौल ने कहा कि दूसरा पक्ष चाहता है कि कोई भी दूसरी संवैधानिक संस्था अपना काम न करे। उसकी जगह सब कुछ सुप्रीम कोर्ट तय करे। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि सबसे पहले आप ही सुप्रीम कोर्ट आए थे।
गौरतलब है कि उद्धव ठाकरे गुट की ओर से सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल कर कहा गया है कि शिंदे ग्रुप ने ये झूठा नैरेटिव गढ़ा है कि एनसीपी और कांग्रेस के शिवसेना के साथ गठबंधन से उनके वोटर नाराज है। जबकि सच ये है कि ये सरकार में ढाई साल मंत्री बने रहे और पहले कभी इस पर आपत्ति नहीं की।
उद्धव ठाकरे गुट ने कहा है कि भाजपा ने कभी शिवसेना को बराबर का दर्जा नहीं दिया जबकि इस सरकार में शिवसेना नेता मुख्यमंत्री बने। जिस दिन ये सरकार सत्ता में आई, शिंदे ग्रुप के विधायकों ने हमेशा इसका फायदा उठाया। पहले तो कभी उन्हें वोटरों में नाराजगी की बात नहीं कही। अगर ऐसा था तो कैबिनेट में शामिल ही नहीं होते।
उद्धव ठाकरे गुट ने कहा है कि जब तक शिंदे गुट के विधायकों की अयोग्यता पर फैसला नहीं हो जाता, चुनाव आयोग को तब तक अपनी कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। याचिका में कहा गया है कि अभी शिंदे गुट के विधायकों की अयोग्यता करवाई का मामला लंबित है ऐसे में निर्वाचन आयोग ये तय नही कर सकता है कि असली शिवसेना कौन है। ज्ञातव्य है कि निर्वाचन आयोग में 8 अगस्त तक दोनों पक्षों से दस्तावेज तलब किया है।
उल्लेखनीय है कि ठाकरे गुट ने महाराष्ट्र के राज्यपाल की ओर से एकनाथ शिंदे को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इसके अलावा महाराष्ट्र विधानसभा की 3 और 4 जुलाई को हुई कार्यवाही में नए स्पीकर के चुनाव और शिंदे सरकार के विश्वास मत प्रस्ताव की कार्यवाही को अवैध बताया गया है।
ठाकरे गुट ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की ओर से सांसदों को हटाने के फैसले को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। याचिका सांसद विनायक राउत और राजन विचारे ने दाखिल किया है।
याचिका में राहुल शेवाले को लोकसभा में शिवसेना संसदीय दल के नेता और भावना गवली को मुख्य सचेतक के पद पर की गई नियुक्ति को रद्द करने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि लोकसभा स्पीकर का फैसला मनमाना और शिवसेना के संसद में अधिकृत प्रतिनिधियों के फैसलों के खिलाफ है। याचिका में कहा गया है कि शिवसेना ने लोकसभा स्पीकर को विनायक राउत को लोकसभा में पार्टी का नेता और राजन विचारे को चीफ व्हिप घोषित करने की सूचना दी थी। इसके बावजूद स्पीकर ने शिंदे गुट के उम्मीदवार को मंजूरी दी। यहां तक कि लोकसभा स्पीकर ने शिवसेना से कोई स्पष्टीकरण भी नहीं मांगा।
आशा खबर / शिखा यादव