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हमीरपुर में अशोक सम्राट काल में बना था यह शिवमंदिर, अब होने लगा जर्जर

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फोटो-01 एचएएम-5 अशोक सम्राट काल में बना शिवमंदिर, अब होने लगा जर्जर

हमीरपुर जिले में एक हजार साल पुराना शिवमंदिर अब ढहने लगा है। ग्यारहवीं शताब्दी में बने इस मंदिर का बड़ा हिस्सा भी ढह गया है। मंदिर को सुरक्षा के दायरे में नहीं लाए जाने से यहां के श्रद्धालु मायूस हैं। सावन मास में इस मंदिर में अद्भुत और चंदेलकालीन शिवलिंग की पूजा अर्चना करने के लिए लोगों का तांता लगा रहता है।

बुन्देलखंड की वीरभूमि हमीरपुर और महोबा में हजारों साल पहले मंदिरों का विस्तार शुरू हुआ था। लेकिन देखरेख न होने के कारण प्राचीन और अद्भुत मंदिरों का अस्तित्व ही अब खतरे में है।

हमीरपुर जिले के मुस्करा कस्बे के पुरवा मोहाल स्थित मांझखोर में एक ऐसा शिवमंदिर अपने अतीत को आज भी संजोए है जिसका निर्माण अशोक सम्राट के काल में हुआ है। बुजुर्गों की माने तो यह शिवमंदिर ग्यारहवीं शताब्दी ( 1120) में चंदेल शासक जयवर्मन के शासनकाल में बना था। मंदिर में लगे पत्थरों पर अशोक सम्राट काल के प्रतीक चिन्ह आज भी बने है।

मंदिर के अंदर शिवलिंग के नीचे की जलालु चौकी इतनी विशाल है कि उस में ये मंदिर बना है। राजस्व अभिलेखों में आबादी के अंदर 850/1 में शिवमंदिर के नाम से जमींदारी जमाने में दर्ज है। किसी जमाने में मंदिर भी एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में बना था मगर लगातार अतिक्रमण के कारण मंदिर की भव्यता पर बट्टा लगा है।

क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी एसके दुबे ने बताया कि यह मंदिर चंदेलकालीन है जिसकी दीवाल और छतें केवल पत्थरों के सहारे ही एक दूसरे पर टिका हुआ है। उन्होंने माना कि यह मंदिर काफी जर्जर और क्षतिग्रस्त हो गया है। बताया कि इस तरह के मंदिर और धरोहर बुन्देलखंड क्षेत्र में बहुत कम संख्या में रह गए है।

मुगल शासक ने मंदिर में की थी तोड़फोड़

मुस्करा कस्बे के समाजसेवी एवं पंचायतीराज ग्राम प्रधान संगठन के प्रदेश कार्यवाहक अध्यक्ष हरस्वरूप व्यास ने बताया कि यह मंदिर दीवाल और छत के पत्थरों के जरिए एक दूसरे पर टिका है। यहां औरंगजेब के शासन काल में इस शिवमंदिर में भी तोड़फोड़ हुई थी। मंदिर में स्थापित अष्टभुजा वाली की दो प्रतिमाएं मुगल शासन काल में खंडित हुई थी। खंडित प्रतिमाएं आज भी मंदिर में विराजमान है। और लोग पूजा अर्चना करते है।

मंदिर के मुहाने बना प्राचीन कुआं भी बदहाल

डीके व्यास व जगदीश प्रसाद समेत तमाम बुजुर्गों ने बताया कि मंदिर के पास एक कुआं था। जो रमयासर के नाम से विख्यात था। क्षेत्र मेें कुछ दशक पूर्व सूखा पडऩे पर इलाके में सारे कुएं और तालाब सूख गए थे लेकिन यह प्राचीन कुआं नहीं सूखा था। यहीं कुआं लोगों की प्यास बुझाता था पर अब इसमें कूड़ा करकट पड़ता है। बताया कि इस कुएं के नीचे एक दरवाजा भी बना था जिसमें सीढ़ियां थी, लेकिन अब यह बंद हो चुका है।

बारिश में शिवमंदिर का पिछला हिस्सा भी ढहा

मुस्करा के पूर्व सरपंच हर स्वरूप व्यास ने बताया कि यह मंदिर जमीन से चालीस फीट ऊंचा है। इसके अंदर स्थापित शिवलिंग बड़ा ही अनमोल है। बताया कि पुरातत्व विभाग की टीम कुछ साल पहले सर्वे करने आई थी लेकिन इसे सुरक्षा के दायरे में लाने से हाथ पीछे कर लिए है। बताया कि बरसात में मंदिर का काफी बड़ा हिस्सा ढह गया है। साथ ही शिवमंदिर का इसका पिछला हिस्सा भी गिरकर मलबे में तब्दील हो गया है।

आशा खबर / शिखा यादव 

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