सावन महीने की पहली सोमवारी को कटिहार जिले के आजमनगर प्रखंड अवस्थित बाबा गोरखनाथ धाम मंदिर में जलाभिषेक को लेकर सुबह से ही श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमरा हुआ है। इस मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं में आस्था इतना है कि हर साल की तरह इस बार भी भारत के कई राज्यों के अलावा पड़ोसी देश नेपाल एवं भूटान से भी बड़ी संख्या में कावरियों की टोली बाबा भोलेनाथ को जलाभिषेक करने आ रहे हैं।
गोरखधाम मन्दिर कमिटी के सदस्य अक्षय सिंह ने बताया कि शिवभक्तों का भोलेनाथ के प्रति अटूट आस्था है। खासकर सावन पूर्णिमा के अवसर पर ऐसा लगता है कि साक्षात भगवान शिव गोरखनाथ धाम की भूमि पर उतर आये हैं। उन्होंने कहा कि कटिहार के मनिहारी से गंगा जल लेकर कांवरिया लगभग 70 किमी पैदल उबड़-खाबड़ रास्तों से होते हुए भोले शिवशंकर को जलाभिषेक करने आते हैं। गोरखनाथ धाम का शिव मन्दिर देश के ग्यारह ज्योतिर्लिंगों से अलग है। सावन महीने के पूर्णिमा अवसर पर यहां बड़ा का आयोजन किया जाता है।
मिनी बाबाधाम के नाम से प्रसिद्ध गोरखनाथ शिव मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। शिव मंदिर कटिहार जिला का ऐतिहासिक व जिला का गौरव है। सुंदर तालाब और पेड़ों से घिरे सुगम वातावरण में अवस्थित इस शिव मंदिर की कहानी कई क्विंदतियों से जुड़ी है। बताया जाता है कि 1053 ई० सन में प्रसिद्ध संत गोरखनाथ जी महाराज अपने गुरु मछिन्द्रानाथ को असम के कामाख्या में नैनयोगिन के चंगुल से छुड़ाने कामख्या जा रहे थे। इसी क्रम में आजमनगर के गोरखपुर गाँव में तीन दिन रहे और इस मंदिर की स्थापना की गयी। इसी कारण इस गांव का नाम गोरखपुर पड़ा एवं मंदिर का नाम गोरखनाथ हुआ। गुरु गोरखनाथ द्वारा यह सिद्धपीठ घोषित किया गया था। मंदिर के पूर्व में मां दुर्गा का मंदिर, पश्चिम में चैती काली, दक्षिण में महामाया, उत्तर पूर्वी दिशा में गोरखचंडी के स्थान से प्रतीत होता है कि देवनगरी गोरखनाथ धाम बहुत ही प्राचीन है।
आशा खबर / शिखा यादव