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मौनी अमावस्या से पहले गंगा के घाटों का जल पड़ा काला, पीएम-सीएम से की गई शिकायत

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माघ मेले की तैयारियों के दौरान मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र संगम पर संतों-भक्तों की डुबकी के लिए निर्मल गंगा की धारा मुहैया कराने का संकल्प अफसरों को दिला चुके हैं। तब कहा गया था कि गंगा में गिरने वाले नालों को हर हाल में बंद कर दिया जाए।

Before Mauni Amavasya, water of Ganga ghats turns black, complaint made to PM-CM

माघ मेले के सबसे बड़े स्नान पर्व मौनी अमावस्या से पहले गंगा के घाटों पर जल काला पड़ने लगा है। वजह है न्यूनतम प्रवाह में कमी आने के साथ ही सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों से अर्ध शोधित पानी का गंगा में बहाया जाना। जल काला पड़ने की शिकायत रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मेल के जरिए की गई।

कहा गया है कि गंगा मेंं गंदे पानी के बहाव पर शीघ्र रोक नहीं लगाई गई तो आने वाले स्नान पर्वों पर संतों, कल्पवासियों और श्रद्धालुओं को डुबकी लगाने के लिए निर्मल धारा मिल पाएगी, दावा करना मुश्किल होगा। माघ मेले की तैयारियों के दौरान मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र संगम पर संतों-भक्तों की डुबकी के लिए निर्मल गंगा की धारा मुहैया कराने का संकल्प अफसरों को दिला चुके हैं। तब कहा गया था कि गंगा में गिरने वाले नालों को हर हाल में बंद कर दिया जाए।

इस बीच गंगा में जल प्रवाह तेज होने की वजह से भी नालों के गंदे पानी का असर संगम और अन्य स्नान घाटों पर नहीं दिख रहा था। इस बीच एक बार फिर सलोरी एसटीपी से नालों का अर्ध शोधित गंदा पानी गंगा में सीधे बहाया जा रहा है। इससे रामघाट से लेकर कई घाटों पर काला और मटमैला गंगा जल आने लगा है। शिवकुटी और दारागंज के नालों का भी गंदा पानी गंगा मेंं बहता देखा जा सकता है।

गंगा की निर्मलता के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता कमलेश सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर नालों को बंद कराने और संतों-भक्तों को स्वच्छ गंगा की जलधारा उपलब्ध कराने के लिए आवाज उठाई है। उनका कहना है कि नालों को बंद कराने के साथ ही महाकुंभ से पहले दो किमी के दायरे में गंगा की तलहटी की ड्रेजिंग भी कराई जानी चाहिए।

माघ मेले की बसावट प्रभावित न होने पाए, इसको ध्यान में रखते हुए आठ हजार क्यूसेक पानी गंगा में छोड़ा जा रहा है। प्रवाह तेज होने से कटान बढ़ने की आशंका बन जाती है। घाटों पर जल काला पड़ने की वजह कम प्रवाह नहीं है। इसके दूसरे कारण भी हो सकते हैं। – सिद्धार्थ कुमार, अधीक्षण अभियंता, सिंचाई बाढ़खंड।

सलोरी और राजापुर के नाले अभी बंद नहीं हो सके हैं। इस दोनों स्थानों पर एसटीपी क्षमता वृद्धि के तहत निर्माणाधीन है। ऐसे में वहां नालों का पानी ट्रीटमेंट प्लांट से होकर नहीं जा पा रहा है। वहां बायोरेमिडिएशन तकनीक के जरिए गंदे पानी को शोधित करने की जिम्मेदारी दी गई है। – सुरेंद्र परमार, प्रोजेक्ट मैनेजर, गंगा प्रदूषण नियंत्रण

इकाई।39 स्थानों पर बायोरेमिडिएशन तकनीक से नालों का पानी शोधित किया जा रहा है। रही बात सलोरी नाले की तो वहां की जानकारी अभी मेरे पास नहीं है। अक्सर तलहटी की मिट्टी काली होने की वजह से ऊपर से पानी भी काला दिखाई देता है। – उत्तम कुमार वर्मा, पर्यावरण अधिकारी, नगर निगम।

150 एमएलडी गंदे पानी के शोधन की व्यवस्था तक नहीं, एसटीपी की क्षमता वृद्धि का है प्रस्ताव

नालों के गंदे पानी के शोधन के लिए लगाए गए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी क्षमता विहीन हो गए हैं। दो दशक पहले जिस आबाद के डिस्चार्ज के आकलन के आधार पर यह एसटीपी स्थापित किए गए थे, वहां अब डेढ़ गुना आबादी बढ़ गई है। सलोरी एसटीपी की क्षमता मौजूदा समय 43 एमएलडी है, जबकि वहां से रोजाना डिस्चार्ज अब 75 एमएलडी हो रहा है। ऐसे में इस प्लांट की 50 एमएलडी क्षमता वृद्धि का प्रस्ताव है।

इसी तरह 60 एमएलडी क्षमता वाले राजापुर एसटीपी की भी 50 एमएलडी क्षमता बढ़ाने का प्रस्ताव किया गया है। पोंगहट एसटीपी की भी क्षमता 50 एमएलडी है। जबकि कालिंदीपुरम समेत कई बड़े इलाके बसने के बाद वहां इतना ही डिस्चार्ज बढ़ गया है। ऐसे में इस एसटीपी की भी क्षमता 50 एमलटी तक बढ़ाने के लिए प्रस्ताव किया गया है। ऐसे में आधे से अधिक इलाके का गंदा पानी शोधित करने की व्यवस्था ही नहीं है। ऐसे में गंगा में अर्ध शोधित गंदा पानी पहने से रोक पाना कितना कठिन है, समझा जा सकता है।

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