नजूल की जमीनों को माफिया से बचाने के लिए शासन सक्रिय हो गया है। प्रदेश के कई जिला प्रशासन से नजूल की जमीनों का रिकार्ड मांगा गया है। सूत्रों के मुताबिक अधिकांश नजूल के दफ्तरों से पुराने रिकार्ड गायब हैं। फाइलें नहीं मिल रही हैं। जमीन के मूल आवंटी का पता नहीं चल रहा है। फाइलें गायब करने का ये खेल संगठित रूप से किया गया। फिलहाल अधिकारी जमीनों का ब्योरा जुटाने में लगे हैं।
नजूल की जमीनों को लेकर प्रदेश का सियासी माहौल गर्म है। पहली बार लाए गए प्रस्तावित नजूल एक्ट में आम लोगों की सुविधा और हितों की रक्षा का प्रावधान है। जमीन को कब्जे से बचाने के लिए फ्री होल्ड का प्रावधान ही खत्म कर दिया गया है। एक्ट भले ही विधान परिषद में अटक गया हो, लेकिन शासन नजूल की जमीनों का रिकार्ड तैयार कर रहा है।
प्रयागराज, लखनऊ, वाराणसी, कानपुर, अयोध्या, सुल्तानपुर, गोंडा, बाराबंकी सहित उन सभी जिलों से नजूल की जमीनों का ब्योरा मांगा गया है, जहां ये मौजूद हैं। इनका संपूर्ण डाटा प्रशासन के लिए गले की फांस बन गया है, क्योंकि नजूल को लेकर अंग्रेजों द्वारा बनाया गया गवर्नमेंट ग्रांड एक्ट 1895 में लाया गया था। तब से लेकर वर्तमान तक यानी 128 वर्ष का नजूल रजिस्टर और विवरण ही उपलब्ध नहीं है।
शासन के सूत्रों के मुताबिक बड़ी संख्या में नजूल रजिस्टर जानबूझकर गायब करा दिए गए ताकि रिकार्ड ही न मिले। अभी तक जिला प्रशासन को 30 फीसदी रिकार्ड भी नहीं मिले हैं। ऐसे में हर जमीन की भौगोलिक स्थिति के आधार पर रिपोर्ट तैयार की जाएगी।
यूपी नजूल भूमि प्रबंधन समिति की 2020 की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि पूरे राज्य में करीब 15000 नजूल भूमि हैं। क्षेत्रफल के हिसाब से नजूल भूमि 15 हजार हेक्टेयर (24,700 से 37,000 एकड़) तक है। हालांकि वास्तविक आंकड़ा 25 हजार हेक्टेयर से ज्यादा है। इन्हें सरकारी अनुदान अधिनियम, 1895 और उसके बाद के सरकारी अनुदान अधिनियम, 1960 के तहत जारी अनुदान के रूप में विभिन्न निजी व्यक्तियों और निजी संस्थाओं को पट्टे पर दिया गया है।