इसका खुलासा जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर आधारित अंतर सरकारी मंच इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन बायोडायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेज (आईपीबीईएस) की नई रिपोर्ट ‘द असेसमेंट रिपोर्ट ऑन इनवेसिव एलियन स्पीशीज एंड देयर कंट्रोल’ में किया गया है।
दुनिया भर में 60 फीसदी पौधों और जानवरों के विलुप्त होने की वजह विदेशी आक्रामक प्रजातियां हैं। यह प्रति वर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्था को 35 लाख करोड़ (42,300 करोड़ डॉलर) से ज्यादा की चपत लगा रही हैं। यदि 1970 के बाद से देखें तो नुकसान की यह दर हर दशक चार गुना बढ़ रहीइसका खुलासा जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर आधारित अंतर सरकारी मंच इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन बायोडायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेज (आईपीबीईएस) की नई रिपोर्ट ‘द असेसमेंट रिपोर्ट ऑन इनवेसिव एलियन स्पीशीज एंड देयर कंट्रोल’ में किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में 37,000 से ज्यादा विदेशी प्रजातियां हैं। इनमें से करीब 3500 से ज्यादा आक्रामक श्रेणी की हैं, जो स्थानीय जैवविविधता के लिए खतरनाक बन चुकी हैं। इसके अलावा हर साल 200 नई विदेशी प्रजातियां इनमें जुड़ रही हैं। विदेशी प्रजातियों से तात्पर्य पौधों, जानवरों और सूक्ष्मजीवों से है, जिन्हें इंसान उनके मूल आवासों से दूसरी नई जगहों पर ले जाता है। इनमें से आक्रामक प्रजातियां पर्यावरण और जैवविविधता के साथ-साथ इंसानों के लिए भी खतरा बन रही हैं। यह प्रजातियां स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचे और जीविका को भी खतरे में डाल रही हैं।
मत्स्य पालन को भारी नुकसान
रिपोर्ट में आक्रामक प्रजातियों में तालाबों को ढंक देने वाली जलकुम्भी से लेकर पक्षियों के अंडे खाने वाले चूहे, केकड़े, चिट्रिड फंगस, सीप, पेड़-पौधे, एशियन हॉर्नेट, गिलहरी और सांप तक शामिल हैं। इसी प्रकार यूरोपीय तटीय केकड़ा न्यू इंग्लैंड में शेलफिश को प्रभावित कर रहा है। इसी तरह कैरेबियन फाल्स मसल्स, देशी क्लैम और सीपों को नष्ट कर रहे है। इनकी वजह से भारत में भी स्थानीय मत्स्य पालन को भारी नुकसान हो रहा है।इसका खुलासा जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर आधारित अंतर सरकारी मंच इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन बायोडायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेज (आईपीबीईएस) की नई रिपोर्ट ‘द असेसमेंट रिपोर्ट ऑन इनवेसिव एलियन स्पीशीज एंड देयर कंट्रोल’ में किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में 37,000 से ज्यादा विदेशी प्रजातियां हैं। इनमें से करीब 3500 से ज्यादा आक्रामक श्रेणी की हैं, जो स्थानीय जैवविविधता के लिए खतरनाक बन चुकी हैं। इसके अलावा हर साल 200 नई विदेशी प्रजातियां इनमें जुड़ रही हैं। विदेशी प्रजातियों से तात्पर्य पौधों, जानवरों और सूक्ष्मजीवों से है, जिन्हें इंसान उनके मूल आवासों से दूसरी नई जगहों पर ले जाता है। इनमें से आक्रामक प्रजातियां पर्यावरण और जैवविविधता के साथ-साथ इंसानों के लिए भी खतरा बन रही हैं। यह प्रजातियां स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचे और जीविका को भी खतरे में डाल रही हैं।
मत्स्य पालन को भारी नुकसान
रिपोर्ट में आक्रामक प्रजातियों में तालाबों को ढंक देने वाली जलकुम्भी से लेकर पक्षियों के अंडे खाने वाले चूहे, केकड़े, चिट्रिड फंगस, सीप, पेड़-पौधे, एशियन हॉर्नेट, गिलहरी और सांप तक शामिल हैं। इसी प्रकार यूरोपीय तटीय केकड़ा न्यू इंग्लैंड में शेलफिश को प्रभावित कर रहा है। इसी तरह कैरेबियन फाल्स मसल्स, देशी क्लैम और सीपों को नष्ट कर रहे है। इनकी वजह से भारत में भी स्थानीय मत्स्य पालन को भारी नुकसान हो रहा है।