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कमजोर सीटों पर उम्मीदवारों का एलान पहले करेगी भाजपा; लोकसभा चुनाव में खास फॉर्मूला अपनाएगी पार्टी

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पार्टी सूत्रों के मुताबिक, जिन 144 सीटों पर पार्टी दूसरे और तीसरे स्थान पर रही थी, उनमें से आधी सीटों पर चुनाव घोषित होने से पहले उम्मीदवार घोषित करने के लिए जरूरी प्रक्रिया की शुरुआत कर दी गई है।

भाजपा मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव की तर्ज पर लोकसभा चुनाव में कमजोर सीटों पर चुनाव कार्यक्रम घोषित होने से पहले ही उम्मीदवारों की घोषणा कर देगी। इसके लिए पार्टी में अभी से उन 144 सीटों पर मंथन शुरू हो गया है, जहां बीते चुनाव में भाजपा दूसरे और तीसरे स्थान पर रही थी। पार्टी सत्ता विरोधी रुझान को कम करने, छोटे और बड़े अंतर से हासिल हुई जीत वाली सीटों के लिए भी नई रणनीति बना रही है।

पार्टी सूत्रों के मुताबिक, जिन 144 सीटों पर पार्टी दूसरे और तीसरे स्थान पर रही थी, उनमें से आधी सीटों पर चुनाव घोषित होने से पहले उम्मीदवार घोषित करने के लिए जरूरी प्रक्रिया की शुरुआत कर दी गई है। पार्टी के रणनीतिकारों को लगता है कि ऐसा करने से एक तो विपक्ष पर दबाव बनेगा, दूसरा उम्मीदवार को चुनाव तैयारियों के लिए अतिरिक्त समय मिलेगा।

विपक्षी नेताओं को घर में घेरने की रणनीति
पार्टी की रणनीति विपक्ष के बड़े नेताओं को उसके घर में ही घेरने की है। इसके लिए पार्टी ने देश भर की 40 हाईप्रोफाइल सीटों का चयन किया है। पार्टी की योजना इन सीटों पर सोशल इंजीनियरिंग, लोकप्रियता और दूसरे पैमाने पर खरा उतरने वाली शख्सियतों को मैदान में उतारने की है। इससे विपक्ष के बड़े नेताओं के सामने अपनी ही सीट पर बड़ी चुनौती खड़ी होगी। पार्टी की रणनीति इन सीटों पर भी रणनीतिक दृष्टि से जरूरी होने पर चुनाव घोषित होने से पहले ही उम्मीदवार घोषित करने की है।

बड़ी संख्या में काटे जाएंगे टिकट
बीते लोकसभा चुनाव में सत्ता विरोधी रुझान को कम करने के लिए भाजपा ने करीब एक तिहाई सांसदों के टिकट काटे थे। इस बार भी कम से कम एक चौथाई सांसद टिकट पाने से वंचित रहेंगे। पार्टी ने कई स्तर पर एक-एक सीट का आकलन किया है। इनमें एक चौथाई सांसदों के खिलाफ मतदाताओं और स्थानीय कार्यकर्ताओं में गहरा रोष है। इसके लिए कई सीटों पर सांसद नए सामाजिक समीकरण में फिट नहीं बैठ रहे। इससे निपटने के लिए भी कई सांसदों के या तो टिकट कटेंगे या उनकी सीटों में बदलाव होगा।

ब्रांड मोदी पहले की तरह लोकप्रिय
पार्टी के रणनीतिकारों का कहना है कि ब्रांड मोदी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। मुख्य समस्या सांसदों की अलोकप्रियता है। साल 2004 के चुनाव में वाजपेयी की लोकप्रियता में कमी नहीं थी, मगर सांसदों के खिलाफ नाराजगी के कारण भाजपा सत्ता नहीं बचा सकती। यही कारण है कि पार्टी नेतृत्व सांसदों के खिलाफ नाराजगी का असर चुनाव परिणाम पर नहीं पड़ने देने के लिए अलोकप्रिय सांसदों को टिकट से वंचित करेगी।

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