ईसीपी के कार्यक्रम से पता चलता है कि नए सिरे से परिसीमन में लगभग चार महीने लगेंगे, जिसका अर्थ है कि देश में आम चुनाव प्रांतीय और राष्ट्रीय असेंबली के विघटन के 90 दिनों के भीतर नहीं हो सकते हैं।
पाकिस्तान के शीर्ष चुनावी निकाय ने निर्धारित 90 दिनों की अवधि से परे चुनाव स्थगित करने के अपने कदम का बचाव करते हुए कहा है कि निर्वाचन क्षेत्रों के नए सिरे से परिसीमन के बिना मतदाताओं को संसद में सच्चा प्रतिनिधित्व नहीं मिलेगा। नौ अगस्त को नेशनल असेंबली भंग होने के बाद पाकिस्तान चुनाव आयोग (ईसीपी) मुश्किल स्थिति में फंस गया है।
ईसीपी दोनों संवैधानिक दायित्वों को एक साथ पूरा नहीं कर सकता है और दूसरे की खातिर एक का उल्लंघन करना पड़ेगा, यह वही है जो वह करना चाहता है। चुनाव आयोग ने गुरुवार को इस महीने की शुरुआत में काउंसिल ऑफ कॉमन इंटरेस्ट (सीसीआई) द्वारा अनुमोदित नई जनगणना के अनुसार किए जाने वाले नए परिसीमन के कार्यक्रम की घोषणा की। तय कार्यक्रम के मुताबिक, देशभर में निर्वाचन क्षेत्रों का नया परिसीमन इस साल दिसंबर में अधिसूचित किया जाएगा।
चुनाव आयोग ने चुनाव में देरी करने के अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा कि चुनाव कराने के लिए यह प्रक्रिया एक संवैधानिक आवश्यकता थी और निर्वाचन क्षेत्रों के नए परिसीमन और अपडेटेड मतदाता सूची के बिना मतदाताओं को संसद में सच्चा प्रतिनिधित्व नहीं मिलेगा।
चुनाव आयोग ने कहा, निर्वाचन क्षेत्रों के नए सिरे से परिसीमन और अपडेटेड मतदाता सूची के बिना निर्वाचन क्षेत्रों के मतदाताओं, चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों में से किसी को भी संसद और प्रांतीय विधानसभाओं में सच्चा प्रतिनिधित्व नहीं मिलेगा, जो संविधान द्वारा परिकल्पित संवैधानिक लोकतंत्र का मूल सिद्धांत है।
पाक मीडिया ने बताया कि जनगणना परिणामों की आधिकारिक अधिसूचना के बाद परिसीमन के सवाल पर एक लिखित आदेश में कहा गया कि संविधान के तहत कर्तव्य की पूर्ति सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचन क्षेत्रों का ताजा परिसीमन आवश्यक था। चुनाव आयोग ने कहा कि मतदाताओं, राजनीतिक दलों और चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि चुनाव ईमानदारी, न्यायपूर्ण और निष्पक्ष रूप से आयोजित किए जाएं, यह कदम आवश्यक था।
ईसीपी की विस्तृत प्रतिक्रिया से पता चलता है कि चुनाव में देरी करने का उसका निर्णय तब तक अंतिम है जब तक कि इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी जाती। सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले के माध्यम से चुनाव निकाय को समय पर चुनाव कराने के लिए मजबूर किया है।