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मुख्तार के फैलते साम्राज्य को हर बार बनारस से मिली मात, सियासी विजय रथ भी 2009 में हुआ धराशायी

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माफिया मुख्तार अंसारी के फैलते साम्राज्य को बनारस से हर बार मात मिली। ब्रिजेश सिंह गैंग के वर्चस्व की वजह से माफिया बनारस में ज्यादा सक्रिय नहीं हो पाया था। सियासी विजय रथ भी 2009 में धराशायी हो गया था। अब आजीवन कारावास से खौफ मिट्टी में मिल गया है।

पूर्वांचल दहशत का पर्याय बन चुके माफिया मुख्तार अंसारी के फैलते साम्राज्य को हर बार बनारस से मात मिली है। जरायम की दुनिया से लेकर सियासी सफर में उसे काशी की धरती ने कभी स्वीकार नहीं किया। अपराध की दुनिया में उसे माफिया ब्रिजेश सिंह गैंग ने कड़ी टक्कर दी और उसे बनारस में पैर नहीं जमाने दिया। इसके बाद उसने 2009 में राजनीतिक गलियारे के जरिये बनारस में एंट्री का प्रयास किया था, मगर उसे यहां मुंह की खानी पड़ी थी। 32 साल पहले व्यापारी नेता अवधेश राय की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के बाद अब माफिया का खौफ फिर से मिट्टी में मिल गया है।
मुख्तार अंसारी ने बनारस में रंगदारी और अपरहण के अपने अवैध धंधे को पनपाने का प्रयास किया। बनारस में अपना वर्चस्व कायम करने के लिए ही उसने अवधेश राय की दिनदहाड़े हत्या को अंजाम दिया। इस घटना के बाद अवधेश राय के छोटे भाई और कांग्रेस के प्रांतीय अध्यक्ष अजय राय ने भी सियासत का रास्ता चुना और भाजपा में सक्रिय हुए।

इस बीच मुख्तार बनारस में अपने पांव पसारने में जुटा, मगर 1996 में अजय राय भाजपा के टिकट पर कोलसला (वर्तमान में पिंडरा) से विधायक बने और उन्होंने मुख्तार से सीधा मुकाबला शुरू किया। इस बीच जरायम की दुनिया में मुख्तार अंसारी के धूर विरोधी ब्रिजेश सिंह गैंग ने भी उसके खिलाफ मोर्चाबंदी शुरू की। इससे मुख्तार अंसारी के पांव बनारस में कमजोर हुआ।

इसके बाद मुख्तार ने वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में बनारस से ताल ठोककर भाजपा के दिग्गज नेता डा. मुरली मनोहर जोशी को चुनौती दी। इस चुनाव में बसपा से मुख्तार अंसारी ने भाजपा प्रत्याशी डा. मुरली मनोहर जोशी को कड़ी टक्क्कर दी थी और महज साढ़े 17 हजार मतों से पराजित हुआ था।

इसमें कांग्रेस से राजेश मिश्रा और सपा से अजय राय भी मैदान में थे। 32 साल पहले अवधेश राय की हत्या के मामले में अदालत से आजीवन कारावास की सजा पाने वाले माफिया मुख्तार अंसारी को एक बार यहां मात मिली है।
मुख्तार में था सियासत और अपराध का गठजोड़
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र नेता के रूप में राजनीति में प्रवेश करने का प्रयास किया, मगर यहां उसे बहुत आधार नहीं मिला तो वह गाजीपुर लौट गया। वहां सबसे पहले भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से मुख्तार ने राजनीति में भाग्य आजमाया और उसे पहली बार गाजीपुर सदर सीट पर उसे हार मिली।
1996 में उसने बसपा का दामन थामा और इसके बाद वह लगातार पांच बार विधायक बना। हालांकि वर्ष 2010 में बसपा चीफ ने मुख्तार को पार्टी से निकाल दिया था और उसने कौमी एकता दल नाम की पार्टी बना ली थी। वर्ष 2017 के चुनाव से पहले कौमी एकता दल का विलय फिर बसपा में हो गया था।
मुख्तार अंसारी ने बनारस में खुद को मजबूत करने के लिए कई बार प्रयास किया। लोकसभा चुनाव 2009 में तो बनारस के लिए दुर्भाग्य की तरह दिखने लगा था। काशी में यदि माफिया चुनाव जीत जाता तो सोचिए क्या छवि हमारे शहर की बनती। भगवान का शुक्र था कि कड़ी टक्कर में उसे हार मिली और हम सब ने राहत की सांस ली थी।
एसटीएफ में रहने के दौरान कई बार मुख्तार अंसारी के गैंग के खिलाफ कार्रवाई की। राजनीतिक संरक्षण होने के कारण हमारे ऊपर दबाव भी रहता था। मुख्तार अंसारी के खिलाफ वाराणसी के न्यायालय के आजीवन कारावास की सजा अपराधियों के खिलाफ नजीर है।

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