यह है तंबुओं की नगरी प्रयागराज, जहां इन दिनों माघ मेले का आयोजन हाे रहा है। सनातन की सदियों पुरानी परंपराएं देखनी है तो इस मेले में आइए। यहां कल्पवासी कल्पवास के दिनों में दान तो करते ही हैं साथ ही दान की एडवांस बुकिंग भी करते हैं। कल्पवासी जिस तीर्थ पुराेहित के शिविर में कल्पवास करते हैं, वही तीर्थ पुरोहित इन कल्पवासियों का पूरा बही खाता भी बनाते हैं। कल्पवास के दिनों में ही तीर्थ पुरोहित उस खाते में एडवांस बुकिंग कर ले लेते हैं। इसका मतलब यह होता है कि जब गांव में गेहूं की फसल कटेगी तो कल्पवासी उसमें से अनाज दान करेगा। वह अनाज कितना दान करेगा यह उस बही खाते में लिखा जाता है। गेहूं की फसल कटने पर तीर्थ पुरोहित या उनका कोई आदमी जाकर वह दान रूपी अनाज लाता है। दान में सिर्फ अनाज ही नहीं बल्कि कल्पवासी अपनी इच्छा से कुछ भी दान कर सकता है।
कल्पवासी बोले, स्वेच्छा से करते हैं दान
अयोध्या के रहने वाले देवेंद्र पांडेय लगातार 6 वर्षों से कल्पवास करने आते हैं। देवेंद्र बताते हैं स्वेच्छा से हम सब यह बही खाते में यह लिखा देते हैं कि गेहूं की कटाई के समय कितना अनाज अपने तीर्थ पुरोहित को दान करेंगे। इसके लिए कोई दबाव नहीं होता है। अपने सामर्थ्य के अनुसार दान किया जाता है। सुल्तानपुर लंभुआ से आए सुमिरन यादव भी यहां परिवार के साथ कल्पवास कर रहे हैं। कहते हैं कि यह कल्पवास का समय है। हम जितना ज्यादा हो सकता है दान करते हैं। इतना ही नहीं यहां से जाने के बाद भी दान देते हैं। तीर्थ पुरोहित जितेंद्र कुमार बच्चा कहते हैं कि यह हमारी वर्षों पुरानी पंरपरा है जिसे हम लोग आज भी निभाते हैं। हमारे पास सात पुश्तों की पूरी सूची होती है।
कई पीढ़ियों से चली आ रही बही खाते की परंपरा
तीर्थ पुरोहित सुरेंद्र गौर बताते हैं कि इस डिजिटल जमाने में हम लोग अपनी पुरानी परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। कई पीढ़ियों से बही खाते मेंटेन किए जाते हैं। यहां कई साल पहले कल्पवास करने आए कल्पवासियों का भी विवरण इस बही खाते में मिल जाएगा। इसके लिए नाम, गांव का नाम, तहसील जनपद आदि बताना होगा। इसे पूरी तरह से संजो कर रखा जाता है।