सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है। नवंबर 2022 तक उत्तर प्रदेश में माननीयों पर सबसे अधिक 1,377 मामले दर्ज हैं। इसके बाद बिहार और महाराष्ट्र का स्थान आता है, जहां क्रमश: 546 और 482 मामले हैं। यह जानकारी सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में दायर एक रिपोर्ट में न्याय मित्र वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया और वकील स्नेहा कलिता ने दी। रिपोर्ट में कहा गया है कि दिसंबर 2018 में माननीयों के खिलाफ लंबित मामलों की संख्या 4,122 थी, जो दिसंबर 2021 में बढ़कर 4,974 और नवंबर 2022 में 5,097 हो गई।
हालांकि, इस पूरक रिपोर्ट में राजस्थान, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को शामिल नहीं किया गया है। वहां कुल लंबित मामलों के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट मौजूदा व पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका पर मंगलवार को विचार करने वाला है।
41 फीसदी केस पांच साल से अधिक पुराने
रिपोर्ट में कहा गया कि लंबित कुल मामलों में से 41 फीसदी मामले पांच साल से अधिक पुराने हैं। बावजूद इसके कि यह अदालत इससे संबंधित मामले से संबंधित वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की जनहित याचिका को देख रही है। शीर्ष अदालत ने कानून निर्माताओं के खिलाफ मुकदमे में तेजी लाने के लिए समय-समय पर विभिन्न अंतरिम आदेश पारित किए हैं।
सबसे अधिक लंबित केस ओडिशा में
रिपोर्ट के अनुसार, पांच साल से अधिक समय से लंबित मामलों की सबसे अधिक संख्या ओडिशा राज्य (71 फीसदी) में है। इसके बाद बिहार (69 फीसदी) और उत्तर प्रदेश (52 फीसदी) हैं। इसमें मेघालय के आंकड़े शामिल नहीं हैं, क्योंकि वहां चार मामले लंबित हैं और सभी मामले पांच वर्ष से अधिक पुराने हैं।
51 सांसदों पर मनी लॉन्ड्रिंग के मामले
इससे पहले हंसारिया ने 14 नवंबर को दाखिल अपनी 17वीं स्थिति रिपोर्ट में कहा था कि 51 सांसदों पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामले दर्ज किए हैं, जबकि इतनी ही संख्या में सांसद सीबीआई की ओर से दर्ज मामलों का सामना कर रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि 71 विधायक/एमएलसी धन शोधन निवारण अधिनियम(पीएमएलए), 2002 के तहत अपराधों से उत्पन्न मामलों में आरोपी हैं।