सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए निर्वाचक मंडल (Electoral College) से सजायाफ्ता सांसदों और विधायकों को अयोग्य ठहराने की याचिका पर सोमवार को विचार करने से इनकार कर दिया।मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने अधिवक्ता दुष्यंत पराशर द्वारा पेश की गई सतवीर सिंह की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि राष्ट्रपति निर्वाचित हो चुके हैं और कार्रवाई का कारण मौजूद नहीं है।
अधिवक्ता पराशर ने तर्क दिया कि इस अदालत द्वारा 2019 में पीयूसीएल बनाम भारत संघ (सांसदों की स्वत: अयोग्यता से संबंधित) मामले में राजनीति के गैर-अपराधीकरण को पहले ही तय किया जा चुका है। इसके बावजूद राष्ट्रपति चुनाव के निर्वाचक मंडल में अभी भी दागी सांसद-विधायक शामिल हैं। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने कहा कि चूंकि मामला खत्म हो गया है, इसलिए अदालत इस याचिका पर विचार नहीं करेगी। पाराशर ने अदालत के विचार से सहमति व्यक्त की और कहा कि हालांकि कार्रवाई का कारण खत्म हो गया है, लेकिन क्या राष्ट्रपति चुनाव के निर्वाचक मंडल को दागी सांसदों से छुटकारा मिलेगा।
पीठ ने कहा कि आप इसे अपने मुवक्किल को बता दें। हम इस याचिका को खारिज कर रहे हैं। बता दें कि इससे पहले 18 जुलाई को दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी राष्ट्रपति चुनाव में वोट डालने से आपराधिक मामलों में कैद सजायाफ्ता सांसदों को रोकने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था। याचिका 70 वर्षीय बढ़ई सतवीर सिंह ने दायर की थी।
याचिकाकर्ता सतवीर सिंह ने कहा कि वह निर्वाचक मंडल से संसद और राज्यों की विधानसभाओं के उन सभी सदस्यों के नामों को हटाने की मांग कर रहे हैं, जिन्हें आपराधिक मामलों में कैद होने के कारण जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत अयोग्य घोषित किया गया है। उन्होंने यह दावा किया कि अधिकारी अयोग्यता से संबंधित कानून का पालन नहीं कर रहे हैं, ऐसे विधायकों को राष्ट्रपति चुनाव के निर्वाचक मंडल से हटाना आवश्यक है। चुनाव आयोग ने उच्च न्यायालय से कहा था कि राष्ट्रपति चुनाव से संबंधित सभी विवादों का निर्णय केवल सुप्रीम कोर्ट ही कर सकता है।