एक समय में गठिया यानि अर्थराइटिस की बीमारी एक उम्र के बाद ही लोगों में नजर आती थी लेकिन अब इस बीमारी ने छोटे बच्चों और युवाओं को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया है. खास बात है कि यह बीमारी छोटे बच्चों के अलावा 14-15 साल तक के किशोर उम्र बच्चों में भी देखने को मिल रही है. जिसकी वजह से बच्चों को भी जोड़ों में दर्द और हाथ व पैरों में अकड़न की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है. विशेषज्ञों की मानें तो कोरोना वायरस के आने के बाद से बच्चों में अर्थराइटिस की समस्या बढ़ी है. वहीं डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों की चपेट में आए बच्चों में भी जुवेनाइल अर्थराइटिस के लक्षण दिखाई दे रहे हैं.
भारत की बात करें तो यहां प्रति 1 हजार बच्चे में से एक बच्चे में अर्थराइटिस की समस्या देखी जा रही है. यह क्रॉनिक और एक्यूट दोनों ही प्रकार की होती है. क्रॉनिक में यह जीवनपर्यंत रहती है जबकि एक्यूट में अचानक यह बीमारी शरीर में आती है लेकिन इलाज के बाद करीब 6 हफ्ते में ठीक हो जाती है. हालांकि इसका प्रभाव शरीर के अन्य अंगों जैसे हार्ट, किडनी और फेफडों पर भी पड़ रहा है. जिसकी वजह से इसकी गंभीरता बढ़ती जा रही है. दिल्ली स्थित राम मनोहर लोहिया अस्पताल में डिपार्टमेंट ऑफ ऑर्थोपेडिक्स में प्रोफेसर डॉ. सतीश कुमार बताते हैं कि 90 फीसदी अर्थराइटिस से प्रभावित बच्चों और बड़ों में भी इस बीमारी की शुरुआत हाथों की उंगलियों से होती है और फिर यह बढ़ जाती है.
कोविड, डेंगू और चिकनगुनिया के बाद बढ़े केसेज
डॉ. सतीश बताते हैं कि कोरोना वायरस के संक्रमण की चपेट में आए बच्चों और युवाओं में ये बीमारी एक्यूट स्तर पर दिखाई दे रही है. इसकी वजह है कि कोविड का वायरस यानि एंटीजन जैसे ही बच्चे के शरीर में जाता है तो शरीर उससे लड़ने के लिए एंटीबॉडी बनाता है. ऐसी स्थिति में एंटीजन और एंटीबॉडी के रिएक्शन की वजह से शरीर में अर्थराइटिस की समस्या हो जाती है. यही वजह है कि पोस्ट कोविड प्रभाव के रूप में देखा जा रहा है कि बच्चों को जोड़ों में दर्द, अंगों के अकड़ने आदि की समस्या बनी हुई है. हालांकि डेंगू या चिकनगुनिया से संक्रमित रह चुके बच्चों में भी ये परेशानी रहती है. खासतौर पर चिकनगुनिया में होने वाला जोड़ों का दर्द कभी कभी लंबे समय तक चलता है, यह भी अर्थराइटिस की वजह से हो सकता है. ऐसे में किसी भी वायरल इन्फेक्शन या बैक्टीरियल इन्फेक्शन से बचाव करना बेहद जरूरी है.
बच्चों के शारीरिक विकास पर पड़ रहा असर
डॉ. सतीश बताते हैं कि बच्चों के ज्यादातर मामलों में एक्यूट जुवेनाइल आईडियोपैथिक अर्थराइटिस के मामले देखने को मिलते हैं जो इलाज के बाद ठीक हो जाती है. हालांकि इसके बावजूद इस बीमारी का असर बड़े हो रहे बच्चों की हड्डियों के विकास पर पड़ता है. जिसकी वजह से बच्चों की लंबाई रुक सकती है या कम गति से बढ़ती है. इसके अलावा बच्चों के घुटने, हिप, हाथ के जोड़ों आदि में भी दर्द बना रह सकता है.
सुबह और शाम को दिखाई देते हैं लक्षण
प्रोफेसर कहते हैं कि जब भी किसी बच्चे या बड़े को गठिया या अर्थराइटिस की समस्या होती है तो इसके लक्षण जैसे ज्वाइंट पेन यानि जोड़ों का दर्द और जलन, त्वचा का लाल रहना आदि खासतौर पर सुबह या रात को दिखाई देते हैं. धूप चढ़ने के साथ-साथ इसके लक्षण कम होते जाते हैं लेकिन शाम होते ही और मौसम में ठंडक आते ही ये फिर बढ़ जाते हैं. इसके अलावा उंगलियों में दर्द, जोड़ों में दर्द, शरीर के किसी अंग में अकड़न, बुखार, आंखों में जलन, ज्वॉइंट पर लाल चकत्ते, थकान, भूख और वजन का घटना, तेज बुखार और लिम्फ नोड का सूजना जैसे लक्षण भी उभरते हैं.
बच्चों के माता-पिता बरतें ये खास सावधानी
. बच्चों को किसी भी प्रकार के वायरल या बैक्टीरियल इन्फेक्शन या वैक्टर बॉर्न डिजीज आदि से बचाने की कोशिश करें.
. बच्चों के कपड़ों और खान-पान को लेकर साफ-सफाई का ध्यान रखें.
. बच्चों को मच्छर जनित रोगों जैसे डेंगू और चिकनगुनिया आदि से बचाने के इंतजाम करें.
.चूंकि ये बीमारी ठंडक भरे मौसम में ज्यादा परेशान करती है इसलिए कोशिश करें कि बच्चों को जरूरी व्यायाम कराएं. ताकि शरीर में गर्मी को संरक्षित करने की क्षमता पैदा हो.
. बच्चों को विटामिन, मिनरल, प्रोटीन युक्त आहार दें.
. बच्चों में अगर कोई भी ज्वाइंट में दर्द या अन्य कोई लक्षण दिखाई दे तो बिना देर किए तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें.