चातुर्मास में प्रवचन के दौरान जीयर स्वामी ने कहा कि धन के लालच में किसी के साथ विश्वासघात नहीं करनी चाहिए। हो सकता है कि थोड़े से धन में काम चलाना पड़े या थोड़ी सी परेशानी उठानी पड़े, वह सही है। लेकिन सुख भोगने के लालच में यदि किसी मित्र या व्यक्ति के साथ धन के लोभ में विश्वासघात किया जाए तो यह कत्तई उचित नहीं है। इसे बहुत बड़ा दोष लगता है।
स्वामी जी ने कहा कि भागवत कथा अनुष्ठान पूर्वक सुनने पर कल्याण होता है। कथा सुनने के समय संसारिकता से अलग एकाग्रचित्त होने पर फल प्राप्ति होती है। भगवान की कृपा होने पर पति-पत्नी में मधुरता रहती है। यदि पत्नी कर्कशा हो और घर में बच्चों की किलकारी भी नहीं हो, तो सुख-शांति नहीं रहती । उन्होंने कहा कि जो पाप दुराग्रह के साथ हो, वह महापाप है। ब्राह्मण, गाय, परिजन व महापुरुषों की हत्या और विश्वासी के साथ विश्वासघात करना महापाप की श्रेणी में आता है। शराब पीने, जुआ खेलने, हत्या करने और न्यायालय में मुकदमा करने वाले की सम्पति प्राय: नष्ट हो जाती है। ऐसे लोगों के प्रति किसी का दयाभाव नहीं होता। ये साधन का दुरुपयोग और दुराग्रह युक्त पाप के भागी होते हैं। उन्होंने कहा कि मांस, मनुष्य के लिए उचित नहीं। मांस खाने के लिये परपोषी जीवों का कुतर्क नहीं देना चाहिए। मुनष्य के शरीर की संरचना परपोषी जीवों से अलग है। यदि मुनष्य छह माह कच्चा मांस खा ले तो चर्म रोग के साथ ही उसका पाचन तंत्र बुरी तरह कुप्रभावित हो जाएगा। अपने स्वार्थ और गलत इच्छा की पूर्ति के लिए कुतर्क का सहारा नहीं लेना चाहिए।