पूर्वांचल की प्रतिष्ठापरक आजमगढ़ लोकसभा सीट पर बृहस्पतिवार को उपचुनाव के लिए मतदान में मतदाताओं की सुस्ती प्रत्याशियों का इम्तिहान कड़ा कर दिया है। तीन साल पहले हुए चुनाव के मुकाबले मतदान में 20 फीसदी की गिरावट ने सियासी पंडितों को भी असमंजस में डाल दिया है। विधानसभा चुनाव में क्लीन स्वीप कर सपा को पूर्वांचल में मजबूत करने वाले आजमगढ़ में इस बार भी यादव और मुस्लिम मतदाताओं का निर्णय ही अहम माना जा रहा है। फिलहाल 50 फीसदी से कम मतदान से अप्रत्याशित निर्णय के भी कयास शुरू हो गए हैं।
सपा मुखिया अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद खाली हुई आजमगढ़ लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव को मतदान बूथों पर दूरी बनाए 50 फीसदी से ज्यादा मतदाताओं ने रोचक बना दिया है। कारण, वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने भाजपा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ को दो लाख 59 हजार मतों से हराया था।
उपचुनाव में सपा की परंपरागत सीट बन चुकी आजमगढ़ में सैफई परिवार से जुड़ाव के लिए सपा ने पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव को यहां भेजा। उधर, भाजपा ने दिनेश लाल यादव निरहुआ पर ही भरोसा जताते हुए, अपने यादव मतों पर कब्जे के प्रयास को जारी रखा। इस बीच बसपा ने अपने मुस्लिम-दलित फार्मूले के आधार पर शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को उतारकर मुकाबले को रोमांचक बना दिया।
फिलहाल आम चुनाव के मुकाबले उप चुनाव में कम मतदान की उम्मीद होती है, मगर आजमगढ़ में 20 फीसदी कम मतदान ने चुनावी चक्रव्यूह को और पेचीदा कर दिया है। यहां बता दें कि उपचुनाव में आजमगढ़ फतह के लिए सभी दलों ने एड़ी चोटी का जोर लगाया और हर वर्ग को रिझाने में जुटे रहे। भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य सहित प्रदेश के तमाम दिग्गज डटे रहे। उधर, सपा की ओर पूर्व मंत्री आजम खां, स्वामी प्रसाद मौर्य व सुभासपा प्रमुख ओपी राजभर सहित अन्य लोगों ने माहौल बनाने का प्रयास किया। उधर, बसपा का विश्वास अपने अपने फार्मूले पर है। ऐसे में उपचुनाव के परिणाम पर सबकी निगाह टिकी है।
हार जीत से अलग होने के चलते मतदाताओं का कम रुझान
आजमगढ़। 2019 के सामान्य लोकसभा चुनाव की अपेक्षा 2022 के उपचुनाव में मतदान प्रतिशत काफी कम हुआ है। इसके पीछे के कारणों की बात की जाए तो मौसम की तल्खी व सामान्य के बजाए उपचुनाव का होना माना जा रहा है। इसके साथ ही सरकार बनने व बिगड़ने में इस उपचुनाव का कोई मतलब नहीं है। इस सोच की वजह से भी मतदाता खुल कर मतदान को आगे नहीं आया है। वहीं सामान्य निर्वाचन की तरह उपचुनाव में जागरूकता कार्यक्रमों के आयोजन की कमी भी एक कारण के रूप में देखा जा रहा है।
सामान्य लोकसभा चुनाव अभी 2024 में होगा और 2019 के लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ सीट पर कुल मतदान प्रतिशत 67.84 रहा था। आम चुनाव में निर्वाचन आयोग की जागरुकता भी मतदान फीसदी बढ़ाने में एक बड़ा कारण होती है, मगर उप चुनाव में उस तरह का प्रयास नहीं होता है। 2019 के आम चुनाव की अपेक्षा 19.26 प्रतिशत कम मतदान हुआ। देर शाम जिला प्रशासन द्वारा जारी अंतिम आंकड़ों में उपचुनाव का पोलिंग प्रतिशत 48.58 रहा।
सबके लिए खास है आजमगढ़ की जीत
आजमगढ़ लोकसभा सीट पर कब्जा सपा, भाजपा और बसपा के लिए बेहद खास है। वर्ष 2014 में भाजपा के प्रचंड लहर में तत्कालीन सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने आजमगढ़ में अपने तिलिस्म को बरकरार रखा था। इसके बाद अखिलेश यादव ने इस विरासत को संभाला। उधर, सपा के मजबूत गढ़ बन चुके आजमगढ़ में भाजपा हर हाल में जीत हासिल कर पूर्वांचल में कायम अपने वर्चस्व को बढ़ाना चाहती है। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल में एक सीट पर सिमटी बसपा अपनी खोई जमीन वापस चाहती है। फिलहाल उपचुनाव से सपा मुखिया अखिलेश यादव की दूरी को सियासी पंडित आत्मविश्वास और मजबूरी के तराजू में तौल रहे हैं। कुल मिलाकर आजमगढ़ की जीत व हार सभी दलों के लिए संदेश होगी।