5 फुट कद वाले इस एक्टर ने अपने मदमस्त अंदाज से लाखों लोगों को गुदगुदाया। इनके अंदर टैलेंट तो कूट-कूट कर भरा था, तभी तो बड़े-बड़े स्टार इनके रिकॉर्ड को नहीं तोड़ पाए थे।
‘मूंछें हों तो नत्थूलाल जैसी वर्ना न हों’
अपने छह दशक के करियर में मुकरी ने दिलीप कुमार से लेकर अमिताभ बच्चन तक उस दौर के हर बड़े स्टार के साथ काम किया और नाम कमाया। हालांकि, उन्हें पहचान मिली अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘शराबी’ से, जिसमें उनका डायलॉग ‘मूंछें हों तो नत्थूलाल जैसी वर्ना न हों’ खूब फेमस हुआ। मुकरी अब इस दुनिया में तो नहीं हैं, लेकिन उनके किस्से-कहानी आज भी चर्चित हैं।
कॉमेडी से रचा इतिहास
वैसे भी सिनेमा सिर्फ हीरो, हीरोइन और खलनायक तक ही सीमित नहीं होता। एक फिल्म को पूरा करने में कई किरदारों का योगदान होता है। कई ऐसे किरदार होते हैं, जो फिल्म में भले लीड रोल में ना हों,लेकिन इनकी मौजूदगी पूरी फिल्म को बदल देती है। अपनी कॉमेडी से इतिहास रचने वाले मुकरी ने अपने हर किरदार से लोगों को हर बार हंसाया और हर बार हैरान भी किया।
रायगढ़ के उरन में हुआ जन्म
मुकरी का जन्म 5 जनवरी 1922 को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के उरन में हुआ था। मुकरी के पिता का नाम हिसामुद्दीन उमर मुकरी और मां का नाम अमीना बेगम था। मुकरी के अब्बा बच्चों को कुरान पढ़ाया करते थे। मुकरी का जन्म हुआ तो इनके माता-पिता ने इन्हें मोहम्मद उमर मुकरी नाम दिया। मुकरी ने एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि इनके पूर्वज अफगानिस्तान से भारत आकर बसे थे।
रूढ़ीवादी कोंकणी मुस्लिम परिवार में हुआ जन्म
वह एक रूढ़िवादी कोंकणी मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखते थे। इसलिए किसी ने कभी सोचा भी नहीं था कि मुकरी कभी इतने बड़े कॉमेडियन बन जाएंगे। मुकरी जब स्कूल में थे तभी से उनका रुझान एक्टिंग की ओर होने लगा। मुकरी के बड़े भाई मुंबई में रहते थे। ऐसे में उन्होंने मुकरी को मुंबई बुला लिया और यहां अंजुमन इस्लाम नाम के स्कूल में दाखिला ले लिया। यूसुफ खान यानी दिलीप कुमार भी इसी स्कूल में पढ़ा करते थे।
स्कूल में दिलीप कुमार के जूनियर थे मुकरी
दिलीप कुमार स्कूल में मुकरी के सीनियर थे, जबकि उनके भाई नासिर खान मुकरी के क्लासमेट थे। लेकिन, इसके बाद भी मुकरी की दोस्ती नासिर से ज्यादा दिलीप कुमार से रही। अंजुमन हाई स्कूल में रहते हुए ही मुकरी को एक नाटक में काम करने का मौका मिला था। इस नाटक में मुकरी ‘खान बहादुर’ नाम के किरदार में थे। इस नाटक के बाद मुकरी ने तय कर लिया कि वो आगे जाकर एक्टर ही बनेंगे।
दिलीप कुमार ने दिलाया काम
पढ़ाई पूरी करने के बाद मुकरी और दिलीप कुमार अपनी-अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गए। कुछ समय तक परिवार के दबाव में मुकरी काजी बन गए। वो मदरसे में बच्चों को कुरान भी पढ़ाते थे। मुकरी इस काम से खुश नहीं थे, क्योंकि वो तो एक्टिंग करना चाहते थे। इस काम को छोड़कर उन्होंने कुछ समय तक सरकारी नौकरी भी की। एक दिन मस्जिद में उनकी मुलाकात एक बार फिर अपने दोस्त दिलीप कुमार से हो गई। मुकरी ने दिलीप कुमार को अपने मन की बात बताई। दिलीप कुमार तब खुद भी फिल्मी दुनिया में जगह बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे।
600 से ज्यादा फिल्मों में किया काम
दिलीप कुमार ने किसी तरह मुकरी को महबूब खान और के. आसिफ जैसे फिल्ममेकर्स की फिल्मों में असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम दिलवाया और इस तरह उनकी फिल्मों में एंट्री हो गई। साल 1945 में दिलीप कुमार की फिल्म प्रतिमा में मुकरी को पहली बार एक्टिंग का मौका मिला था। मुकरी ने अपने करियर में ‘शराबी’, ‘नसीब’, ‘लावारिस’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘महान’, ‘अमर अकबर एन्थॉनी’, ‘कुली’, ‘मदर इंडिया’, ‘गोपी’, ‘कोहिनूर’, ‘बॉम्बे टू गोवा’, ‘फरिश्ते’, ‘जादूगर’ जैसी कई फिल्मों में काम किया उसे लोग शायद ही कभी भूल पाएंगे। अपने पूरे करियर में मुकरी ने तकरीबन 600 फिल्मों में अलग-अलग किरदार निभाए हैं।