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EFTA देशों को वित्तीय सेवाओं के लिए तरजीही राष्ट्र का दर्जा नहीं, क्या है भारत के इस कदम का मतलब?

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समझौते में कहा गया है कि विदेशी बैंकों को शाखा खोलने या पूर्ण स्वामित्व वाली इकाई गठित करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित शर्तों को पूरा करना होगा।

भारत ने यूरोप के चार देशों के साथ किए गए यूरोपीय मुक्त व्यापार समझौते (EFTA) में उन देशों को वित्तीय सेवाओं के लिए सर्वा​धिक तरजीही राष्ट्र (MFN) का दर्जा नहीं दिया है। इसका मतलब है कि भारत भविष्य में किसी अन्य व्यापारिक भागीदार को वित्तीय सेवा बाजार में ज्यादा पहुंच की सुविधा देता है तो EFTA देश भारत से वैसी ही सुविधा की मांग नहीं कर सकते। ईएफटीए में ​स्विट्जरलैंड भी शामिल हैं, जो भारत का प्रमुख व्यापारिक साझेदार है।

ईएफटीए के एक अ​धिकारी ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया, ‘भारत ने ऑस्ट्रेलिया को वित्तीय सेवा क्षेत्र में स्वत: सबसे तरजीही राष्ट्र का दर्जा दिया है। भारत से हमें सामान्य तरजीही राष्ट्र की सुविधा नहीं मिलने हम हैरान और निराश थे। वित्त मंत्रालय में शीर्ष स्तर पर चर्चा हुई मगर वे इस पर सहमत नहीं हुए। इसलिए समझौते में हमारे लिए वित्तीय सेवाओं के मामले में सर्वा​धिक तरजीही राष्ट्र का प्रावधान नहीं जोड़ा गया।’

स्वत: तरजीही राष्ट्र का दर्जा मिलने से अगर भारत भविष्य में अन्य व्यापारिक भागीदारों को वित्तीय सेवाओं में बेहतर बाजार पहुंच की सुविधा देता है तो ईएफटीए देशों को भी यह सुविधा अपने आप मिल जाती। सामान्य तरजीही राष्ट्र का दर्जा मिलने पर ईएफटीए भारत से अन्य भागीदारों की तरह बाजार पहुंच देने की मांग कर सकता था।

भारत की ओर से व्यापार वार्ताकार रह चुके एक व्यक्ति ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, ‘वित्तीय क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया की बड़ी दखल नहीं है। इसलिए उसे वित्तीय सेवाओं के लिए तरजीही राष्ट्र का दर्जा देने में भारत को कोई परेशानी नहीं हुई। भारत ने ईएफटीए देशों को यह दर्जा इसलिए नहीं दिया क्योंकि ​स्विट्जरलैंड जैसे देशों के साथ पहुंच के मामले में नरमी बरतने से वित्तीय प्रवाह पर उसका नियंत्रण कम हो सकता है। इसके साथ ही घरेलू बाजार में वित्तीय सेवा प्रदाताओं के लिए प्रतिस्पर्धा काफी बढ़ सकती थी।’

इस बारे में जानकारी के लिए वित्त मंत्रालय को ईमेल भेजा गया, लेकिन खबर लिखे जाने तक जवाब नहीं आया। ईएफटीए के साथ किए गए मुक्त व्यापार करार में कहा गया है, ‘वित्तीय सेवाओं में ठोस वादे सेवाओं और व्यापार पर सामान्य समझौते और वित्तीय सेवाओं के अनुबंध के तहत किए जाते हैं। ये वादे या संकल्प देसी कानूनों, नियमों, कायदों, दिशानिर्देशों और भारतीय रिजर्व बैंक, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड, भारतीय बीमा नियामक तथा विकास प्रा​धिकरण सहित अन्य सक्षम संस्थाओं के नियम और शर्तों से जुड़े हैं।’

समझौते में कहा गया है कि विदेशी बैंकों को शाखा खोलने या पूर्ण स्वामित्व वाली इकाई गठित करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित शर्तों को पूरा करना होगा।

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