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गांवों में महिला-पुरुष की मजदूरी का अंतर घटा, मनरेगा की अहम भूमिका: ILO

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 ILO ने यह भी कहा है कि पूरे देश में स्थिति अलग-अलग है और ग्रामीण इलाकों में जीवन स्तर में बदलाव स्थानीय स्तर पर योजना को लागू किए जाने पर निर्भर है।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने एक ताजा रिपोर्ट में कहा है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी ऐक्ट (मनरेगा) पेश किए जाने और ग्रामीण इलाकों में इसके विस्तार से पुरुष और महिला को दिए जाने वाली मजदूरी का अंतर कम हुआ है, साथ ही इससे न्यूनतम वेतन कानून का अनुपालन बढ़ा है। शहरी और ग्रामीण इलाकों में रोजगार और वेतन में भेदभाव को लेकर आए शोध पत्र में आईएलओ ने यह बताया है।

यह भी उल्लेख किया गया है कि ग्रामीण इलाकों में औपचारिक वेतनभोगी श्रमिकों और कैजुअल श्रमिकों को मिलने वाली मजदूरी के बीच अंतर भी रोजगार गारंटी योजना लागू होने के बाद कम हुआ है।

पत्र में कहा गया है, ‘मनरेगा लागू होने और इसके विस्तार से न्यूनतम वेतन के नियम का अनुपालन बढ़ा है। औपचारिक वेतनभोगी श्रमिकों और अंशकालिक श्रमिकों के वेतन में अंतर भी कम हुआ है। इसी तरह से ग्रामीण इलाकों में पुरुष व महिलाओं को मिलने वाले वेतन के बीच अंतर भी कम हुआ है। अन्य वजहों के साथ मनरेगा कार्यक्रम ने इन सकारात्मक धारणाओं में अहम भूमिका अदा की है।’

हालांकि आईएलओ ने यह भी कहा है कि पूरे देश में स्थिति अलग-अलग है और ग्रामीण इलाकों में जीवन स्तर में बदलाव स्थानीय स्तर पर योजना को लागू किए जाने पर निर्भर है। आगे शोधपत्र में यह भी कहा गया है कि हाल के वर्षों में ग्रामीण भारतीयों के वेतन की क्रय शक्ति की स्थिति खराब रही है।

इसमें कहा गया है, ‘महंगाई के आंकड़े और वित्त मंत्रालय के भारतीय श्रम ब्यूरो द्वारा प्रकाशित ग्रामीण मासिक वेतन सूचकांक से पता चलता है कि ग्रामीण भारतीय वेतन की क्रय शक्ति की धारणा हाल के वर्षों में ऋणात्मक रही है। इसे देखते हुए 2022-23 की आर्थिक समीक्षा में वित्त मंत्रालय ने वास्तविक ग्रामीण वेतन (यह महंगाई के हिसाब से समायोजित ग्रामीण वेतन है) में ऋणात्मक वृद्धि का उल्लेख किया है। इसकी वजह अप्रैल से नवंबर 2022 के बीच बढ़ी महंगाई है।’

आईएलओ की रिपोर्ट में 58 देशों के सांख्यिकीय साक्ष्यों से पता चलता है कि गांवों में लोगों को शहरों की तुलना में रोजगार मिलने की ज्यादा गुंजाइश रहती है, लेकिन उनकी श्रम सुरक्षा अपर्याप्त है और वेतन भी कम मिलता है।

खासकर ग्रामीण कामगारों को औसतन शहरी कामगारों की तुलना में घंटे के आधार पर 24 प्रतिशत कम वेतन मिलता है और इस अंतर के आधे मामले में ही शिक्षा, काम के अनुभव और पेशे की श्रेणी को वजह बताया जा सकता है।’

 

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