उत्तर प्रदेश के उपभोक्ताओं व उपभोक्ता संगठनों ने बिजली दरों में किसी भी तरह की वृद्धि का विरोध करते हुए घपलों-घोटालों पर रोक लगाने व दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। यह मांग बिजली कंपनियों की ओर से 2022-23 के लिए दाखिल वार्षिक राजस्व आवश्यकता (एआरआर) व स्लैब परिवर्तन के प्रस्ताव पर राज्य विद्युत नियामक आयोग द्वारा मंगलवार को हुई जनसुनवाई के दौरान की गई।
पहले दिन पश्चिमांचल व दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम तथा केस्को की बिजली दर से संबंधित जनसुनवाई की गई। दिलचस्प रहा कि आयोग ने बिना दरों के स्लैब परिवर्तन प्रस्ताव का प्रस्तुतीकरण देखने से इन्कार कर दिया। आयोग के अध्यक्ष ने यह कहते हुए प्रस्तुतीकरण रोका कि जब समाचार पत्रों में इसका प्रकाशन नहीं हुआ है और इसमें दरें नहीं प्रस्तावित की गई हैं तो इसका क्या औचित्य है?
आयोग के इस रुख से लगातार तीसरे साल भी बिजली कंपनियों की स्लैब परिवर्तन की कोशिशों के परवान चढ़ने पर सवालिया निशान लग गया है। नियामक आयोग के अध्यक्ष आरपी सिंह, सदस्य कौशल किशोर शर्मा व वीके श्रीवास्तव की पूर्ण पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जनसुनवाई की।
आंकड़ों पर सवाल: राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने एआरआर के आंकड़ों पर सवाल उठाते हुए कहा कि बिजनेस प्लान में नियामक आयोग ने 2022-23 के लिए 10.67 प्रतिशत वितरण हानियां तय की हैं जबकि एआरआर में वितरण हानियां 17.5 प्रतिशत दिखाई गई हैं, जो गलत है। उन्होंने कहा कि बिजली कंपनियों पर उपभोक्ताओं का 22,045 करोड़ रुपये निकल रहा है। ऐसे में दरों में कमी होनी चाहिए। उन्होंने स्लैब परिवर्तन के प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि बिना सार्वजनिक प्रकाशन के इसे सुनवाई में शामिल किया जाना आयोग की अवमानना है। इसके अलावा वर्मा ने विदेशी कोयले की खरीद पर रोक की मांग की। कहा कि इससे उपभोक्ताओं पर भार पड़ेगा। निजी घरानों से महंगी बिजली खरीद पर भी सवाल उठाया। परिषद ने टोरेंट पावर पर आंकड़े छिपाने का आरोप लगाते हुए उसके साथ किए गए अनुबंध को भी रद्द करने की मांग की।
अन्य मुद्दे भी उठाए गए: जनसुनवाई में मीटर, बिलिंग, भार में टेंपरेरी सरेंडर की सुविधा, डीएमआरसी ने दरें कम करने, उद्योगों के मामलों में भार की कमी के लिए दो वर्ष की समयसीमा को कम करने की मांग के साथ ओपेन एक्सेस, नेट मीटरिंग आदि के मामले भी उठाए गए।