रघुवर को ब्याह के जब किशोरी जी जनकपुर से अयोध्या पहुंचीं तो अपने साथ कुलदेवी को लेकर आई थीं। मां सीता के ससुर राजा दशरथ ने उन्हें कुलदेवी के लिए खास मंदिर अयोध्या में बनवाकर दिया था।
देखि सीय सोभा सुखु पावा। हृदयं सराहत बचनु न आवा।।
यानी, सीता की शोभा देखकर श्रीराम ने सुख पाया। हृदय में वे उसकी सराहना करते हैं लेकिन मुख से वचन नहीं निकलते। मानो ब्रह्मा जी ने अपनी सारी निपुणता को मूर्तिमान कर संसार को प्रकट करके दिखा दिया हो।
आस्था के आंकड़े नहीं होते। अयोध्या के हर चौथे घर में मंदिर है और हर पांचवें घर में संत या पुजारी। कहा जाता है अयोध्या में राम और सीता के 10 हजार मठ-मंदिर हैं। हर मंदिर में राम और सीता तीन से चार जोड़ों में बैठे हैं। और पूजे जाते हैं। लेकिन यहां एक ऐसा भी मंदिर है जहां खुद माता सीता पूजा करती थीं। ये है रामपथ पर हनुमानगढ़ी और सरयू के बीच बना छोटी देवकाली मंदिर। ये सिद्धपीठ बड़ी देवकाली के अलावा अयोध्या का एकमात्र देवी मंदिर भी हैं।
रघुवर को ब्याह के जब किशोरी जी जनकपुर से अयोध्या पहुंचीं तो अपने साथ कुलदेवी को लेकर आई थीं। मां सीता के ससुर राजा दशरथ ने उन्हें कुलदेवी के लिए खास मंदिर अयोध्या में बनवाकर दिया था। यही मंदिर है छोटी देवकाली। मंदिर के पुजारी अजय द्विवेदी कहते हैं कि यहां देवी की पूजा गौरी, काली और मंगला गौरी तीन रूपों में होती है। जबकि शृंगार सिंदूर वर्ण में किया जाता है। त्रेतायुग में बने इस मंदिर ने भी मुगलों के आक्रमण झेले हैं। फिर इसका भी पुनर्निर्माण करवाया गया, एक बार राजा महाराजाओं ने और दूसरी बार दशरथ महल के महंत ने। मां सीता बाकी रानियों के साथ इस मंदिर में पूजा करने आती थीं।
ससुर दशरथ ने कुलदेवी का मंदिर बनवाया तो सास कैकेयी ने सीता को एक महल मुंह दिखाई में दिया था। इस कनक भवन में अयोध्या का सबसे खूबसूरत विग्रह है। यहां राम और सीता तीन जोड़ी विग्रह में विराजमान हैं। देशभर के भक्त यहां अपनी परेशानियां राम-सीता को बताने के लिए चिट्ठी लिखते हैं।
हर महीने दो सौ से तीन सौ चिट्ठियां यहां पहुंचती हैं। मंदिर के मैनेजर दिनेश कुमार कहते हैं देश के किसी भी कोने से अगर कोई चिट्ठी पर पता – कनक भवन अयोध्या लिखकर भेज देगा तो वो यहां सकुशल पहुंच जाती हैं। ये सभी चिट्ठियां रात को शयन आरती के बाद राम और सीता के सिरहाने रख दी जाती हैं। मान्यता है कि जब दिन के कामकाज से फारिग होकर भगवान आराम करने जाते हैं तो भक्तों की ये चिट्ठियां पढ़ते हैं। इन चिट्ठियों में क्या लिखा होता है कोई नहीं जानता। इन्हें खोलने की मनाही है। जब चिट्ठियां पुरानी हो जाती हैं तो उन्हें सरयू में प्रवाहित कर दिया जाता है।
हर दिन शाम को आरती के बाद कनक भवन में सीता-राम को पद गाकर सुनाए जाते हैं। मिथिला बिहारी दास उर्फ हाईटेक बाबा अयोध्या में एपल का फोन इस्तेमाल करनेवाले पहले संत हैं। मोटर बाइक पर घूमते हैं और हर दिन किशोरी जी को पद सुनाने यहां जरूर आते हैं।
शयन आरती के बाद वो और बाकी संत जरूर गाते हैं…
कबहुँक अंब, अवसर पाइ। मेरिऔ सुधि द्याइबी, कछु करुन-कथा चलाइ॥
जानकी जगजननी जनकी किये बचन सहाइ। तरै तुलसीदास भव भव नाथ-गुन-गन गाइ॥
वैसे तो अयोध्या राजा दशरथ और श्रीराम की नगरी है। लेकिन जब सीता यहां ब्याह कर आईं तो उनके साथ मिथिला के लोग, वहां के संत और भगवान भी साथ आ गए। यही वजह है कि यहां वो लोग भी रहते हैं जो राम को पाहुन या फिर दामाद कहते हैं।