सोमनाथ मंदिर का निर्माण जारी था। लेकिन उससे पूर्व ही तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के हाथों मंदिर में शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी। इसके बाद साल 1965 में मंदिर पूरी तरह तैयार हो सका था। इसका जिक्र एक किताब में विस्तार से मिलता है।
अयोध्या में भगवान राम का मंदिर बन रहा है। इसे लेकर एक विवाद इन दिनों चर्चा में बना हुआ है, जिसमें यह कहा जा रहा है कि राम मंदिर बनकर अभी तैयार नहीं हो सका है। ऐसे में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा करना अशुभ है। हालांकि ऐसा ही किस्सा पहले भी देखने को मिल चुका है। दरअसल एक किताब है। किताब का नाम है ‘प्रभास तीर्थ दर्शन सोमनाथ’। इस किताब के लेखक हैं जेडी परमार। इस किताब सोमनाथ मंदिर के निर्माण के ईर्द-गिर्द लिखी गई है। इस किताब के मुताबिक 19 अप्रैल 1950 को सौराष्ट्र के मुख्यमंत्री उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर ने सोमनाथ मंदिर की भूमिखनन विधि को संपन्न किया।
सोमनाथ मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा
इसके बाद मंदिर का निर्माण कार्य जारी रहा। सबसे पहले पत्थर से मंदिर में फर्श को तैयार किया गया। इसके बाद सोमनाथ मंदिर में गर्भगृह को तैयार किया गया। इसके बाद 11 मई 1951 को देश के तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने सोमनाथ मंदिर में भगवान शिव की प्राण प्रतिष्ठा की। बता दें कि जब प्राण-प्रतिष्ठा की गई, तो उस दौरान भी मंदिर का निर्माण कार्य जारी था। इसके बाद अंत में जब सभामंडर और शिखर का निर्माण पूरा हो गया तब सोमनाथ ट्रस्ट के तत्कालीन अध्यक्ष महाराजा जामसाहेब दिग्विजय सिंह ने महारूद्रयाग करवाया। 13 मई 1965 को सोमनाथ मंदिर में कलश प्रतिष्ठा की गई और कौशेय ध्वज को लहराया गया।
राम मंदिर पर विपक्ष का बवाल
बता दें कि सोमनाथ मंदिर में शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा काफी पहले हो गई। बावजूद इसके मंदिर का निर्माण कार्य जारी रहा। इसके बाद साल 1965 में पूरी तरह बनकर मंदिर तैयार हुआ। बता दें कि देश में इन दिनों राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा को लेकर एक विवाद चल रहा है। कुछ लोगों का कहना है कि मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हुए बगैर प्राण प्रतिष्ठा करना अशुभ है। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि पहले भी इतिहास में ऐसा कई बार हो चुका है। बता दें कि विपक्ष भी इसे लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर खूब निशाना साध रहा है।