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कम बर्फबारी से सिकुड़ सकते हैं हिमालय के ग्लेशियर, पेयजल संकट भी गहराएगा, हिमाचल के हालात चिंताजनक

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जनवरी में भी मौसम शुष्क रहने के आसार हैं। इसका असर हिमालयन रेंज के हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के करीब 9,500 छोटे-बड़े ग्लेशियरों पर भी असर पड़ेगा। ग्लोबल वार्मिंग से पहले से ही सिकुड़ रहे ग्लेशियरों के लिए नवंबर से जनवरी तक होने वाली बर्फबारी संजीवनी होती है।

Kullu : The glaciers of the Himalayas can shrink from the snow, and the drinking water crisis will also deepen

हिमाचल प्रदेश में पिछले डेढ़ माह से बर्फबारी और तीन माह से बारिश न होने से सूखे जैसे हालत हो गए हैं। जनवरी में भी मौसम शुष्क रहने के आसार हैं। इसका असर हिमालयन रेंज के हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के करीब 9,500 छोटे-बड़े ग्लेशियरों पर भी असर पड़ेगा। ग्लोबल वार्मिंग से पहले से ही सिकुड़ रहे ग्लेशियरों के लिए नवंबर से जनवरी तक होने वाली बर्फबारी संजीवनी होती है। ग्लेशियर पर शोध कर रहे विशेषज्ञों का मानना है कि इस दौर की बर्फबारी ज्यादा टिकाऊ मानी जाती है। मौसम ने साथ न दिया तो नदी-नालों का जलस्तर घटने से पेयजल स्रोत सूखने का संकट भी गहरा सकता है।

गोविंद वल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान अल्मोड़ा के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जेसी कुनियाल का कहना है कि लगभग एक दशक से हिमालयी क्षेत्रों में असमय बर्फबारी हो रही है। ग्लेशियरों पर दिसंबर व जनवरी में बर्फ की एक मोटी परत जमना जरूरी है। इससे ग्लेशियरों का दायरा बढ़ता है और उनके पिघलने की रफ्तार रुकती है। हिमालयी क्षेत्रों में मौसम चक्र लगातार बदल रहा है। इस वजह से ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार भी बढ़ रही है। 

इसलिए नहीं टिकती फरवरी-मार्च की बर्फ
दिसंबर और जनवरी की बर्फबारी ग्लेशियरों को मजबूती देती है। फरवरी और मार्च में होने वाली बर्फ ज्यादा समय तक नहीं टिक पाती है। वरिष्ठ वैज्ञानिक डाॅ. जेसी कुनियाल के अनुसार मकर संक्रांति के बाद सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं और तापमान बढ़ने से बर्फ जल्दी पिघल पाती है। इसके अलावा इस दौरान पहाड़ों में पर्यटन गतिविधियां भी बढ़ जाती हैं।

सबसे ज्यादा संकट छोटे ग्लेशियरों पर 
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के ताजा सर्वे के मुताबिक हिमालयन रेंज में कुल 9,500 छोटे-बड़े ग्लेशियर हैं। इनमें हिमाचल प्रदेश के चिनाब बेसिन में 989, रावी बेसिन में 94, सतलुज बेसिन में 258 और ब्यास बेसिन में 144 ग्लेशियर हैं। इनमें अधिकतर छोटे ग्लेशियर हैं और इनकी औसतन लंबाई एक से दो वर्ग किलोमीटर है। बर्फबारी न होने का सबसे ज्यादा खतरा इन्हीं ग्लेशियरों पर है। इसके अलावा बड़ा शिगरी, छोटा शिगरी, कुलटी, शिपिंग, डिंग कर्मो, तपन, ग्याफांग, मणिमहेश, शिली, शमुंद्री, बोलूनाग, तारागिरि, चंद्रा, भागा, कुगती, लैंगर, दोक्षा, नीलकंठ, मिलंग, मुकिला, मियाड़, लेडी ऑफ केलांग, गैंगस्टैंग, सोनापानी, गोरा, तकडुंग, मंथोरा, करपट, उलथांपू, थारोंग, शाह, पटसेऊ, हामटा, पंचनाला सहित सैकड़ों ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं।

हिम पर्वतों का सौंदर्य पड़ा फीका, दिखने लगे काले
बागेश्वर (शंकर पांडेय)। जलवायु परिवर्तन का असर हिम पर्वतों पर पड़ने लगा है। कभी साल भर बर्फ से लकदक रहने वाले हिम पर्वतों का सौंदर्य इस बार फीका पड़ गया है। बर्फबारी न होने से जनवरी में ही ये पर्वत काले पड़ गए हैं। दस साल पहले तक हिमालयी क्षेत्र के जो गांव नवंबर से मार्च तक बर्फ से लकदक रहते थे, आज उन गांवों में जनवरी में भी बारिश नहीं है। सर्दियों में बारिश और बर्फबारी नहीं होने का असर क्षेत्र के जनजीवन पर भी पड़ रहा है।

  • बागेश्वर और पिथौरागढ़ की सीमा पर गोगिना और कीमू गांव हिमालय की तलहटी पर बसे हैं। इन गांवों के ठीक सामने नामिक, हीरामणि और बनकटिया ग्लेशियर हैं। नामिक ग्लेशियर से ही रामगंगा पूर्वी नदी निकलती है। ग्रामीण बताते हैं कि इन हिम पर्वत और ग्लेशियरों की बर्फ धीरे-धीरे कम हो रही है। 10 से 15 साल पहले की तुलना में हिम पर्वत अधिक काले दिखने लगे हैं। 
  • पहले नवंबर के मध्य से क्षेत्र में बर्फबारी शुरू हो जाती थी। मार्च के मध्य तक गांव बर्फ से लकदक रहते थे। इस बार जनवरी तक बारिश न होने से हिम पर्वतों की सफेदी भी लुप्त हो रही है। 

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