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ओपीएस पर केंद्रीय गृह मंत्री ने जिस कमेटी का जिक्र किया, उसमें पुरानी पेंशन नहीं, बल्कि NPS लिखा है

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केंद्रीय गृह मंत्री शाह से एक प्रेसवार्ता के दौरान ओपीएस को लेकर सवाल पूछा गया था। उस बाबत शाह ने कहा, इस विषय में एक कमेटी बनाई गई है। उस पर काम हो रहा है। कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद उस पर विचार किया जाएगा…

देश में ‘पुरानी पेंशन’ बहाली को लेकर बहस छिड़ गई है। कर्मचारी नेताओं का कहना है कि जो भी राजनीतिक दल, ओपीएस का विरोध करेगा, उसे सियासी नुकसान उठाना पड़ेगा। ओपीएस को लेकर हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक विधानसभा चुनाव का उदाहरण दिया जा रहा है। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस पार्टी ने पुरानी पेंशन बहाली को अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया था। नतीजा, दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार बन गई। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी ओपीएस का मुद्दा उठा है। राजस्थान में कांग्रेस सरकार, ओपीएस लागू कर चुकी है, अब उसे कानूनी आधार देने की गारंटी दी गई है। चुनाव प्रचार के बीच जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से पुरानी पेंशन को लेकर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा, ‘हमने विचार के लिए एक कमेटी बनाई है। वह कमेटी उस पर काम कर रही है। जैसे ही कमेटी की रिपोर्ट आएगी, हम उस पर विचार करेंगे। दूसरी तरफ कर्मचारी संगठनों के नेताओं का कहना है कि केंद्र सरकार के जिस कार्यालय ज्ञापन में कमेटी के गठन की बात कही गई है, उसमें कहीं भी ‘ओपीएस’ जैसे शब्द नहीं लिखे हैं। कार्यालय ज्ञापन में केवल ‘एनपीएस’ में सुधार का जिक्र किया गया है।

शाह के बयान पर गहलोत का पलटवार

केंद्रीय गृह मंत्री शाह से एक प्रेसवार्ता के दौरान ओपीएस को लेकर सवाल पूछा गया था। उस बाबत शाह ने कहा, इस विषय में एक कमेटी बनाई गई है। उस पर काम हो रहा है। कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद उस पर विचार किया जाएगा। इस बयान पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा, इसके लिए ‘कमेटी नहीं, कमिटमेंट (प्रतिबद्धता) एवं गारंटी चाहिए। कांग्रेस कहती है ओपीएस की गारंटी। भाजपा कहती है कमेटी। ये फर्क है कांग्रेस और भाजपा में, गारंटी और कमेटी के बीच। कांग्रेस पार्टी ने राजस्थान में ओपीएस लागू की है। अब चुनावी गारंटी में ओपीएस को कानूनी दर्जा प्रदान करने की बात कही है। गहलोत ने कहा, हम गारंटी दे रहे हैं। हमने अभी ओपीएस लागू किया है, अब इस संबंध में कानून बनाकर हमेशा के लिए स्थायी बना देंगे।

ओपीएस पर केंद्र सरकार ने कब, क्या कहा

जून में केंद्र सरकार ने पुरानी पेंशन व्यवस्था को दोबारा से लागू करने को लेकर अपना मत साफ कर दिया था। सरकार का कहना था कि मौजूदा एनपीएस यानी ‘नेशनल पेंशन स्कीम’ को वापस नहीं लिया जाएगा। उस वक्त एक मैसेज वायरल हो गया था। उसे केंद्रीय कैबिनेट के किसी दस्तावेज का हिस्सा बताया जा रहा था। उसमें लिखा था कि कर्मचारियों के वेलफेयर की खातिर केंद्र सरकार अब पुरानी पेंशन व्यवस्था को दोबारा से लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। जो भी कर्मचारी जनवरी 2004 के बाद सरकारी सेवा में आया है, उसे एनपीएस से बाहर निकाल कर ओपीएस में शामिल किया जाएगा। इसके लिए केंद्र सरकार ने राज्यों से भी अनुरोध किया है कि वह ओपीएस लागू होने के बाद राजस्व पर पड़ने वाले अतिरिक्त भार की समीक्षा करें। इस संबंध में 25 अगस्त तक रिपोर्ट भेजें। इस मैसेज के वायरल होने के बाद पीआईबी ने इसके तथ्यों की जांच पड़ताल की। पीआईबी ने कहा, केंद्रीय कैबिनेट की 29 मई को हुई बैठक में ऐसा कोई निर्णय नहीं लिया गया। ये मैसेज फर्जी है। 29 मई को रविवार था। उस दिन कैबिनेट की बैठक नहीं हुई। उक्त मैसेज पूरी तरह से भ्रामक व निराधार है। सरकार के सामने ऐसा कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है। इसके बाद संसद में प्रश्नकाल के दौरान वित्त मंत्रालय में राज्यमंत्री डॉ. भागवत किशनराव कराड ने कहा था कि पुरानी पेंशन योजना को फिर से बहाल करने का कोई भी प्रस्ताव सरकार के विचाराधीन नहीं है।

एनपीएस में सुधार करने के लिए कमेटी गठित

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में पुरानी पेंशन के मुद्दे पर एक कमेटी गठित करने की घोषणा की थी। वित्त मंत्रालय ने छह अप्रैल को वित्त सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन कर दिया। इस कमेटी में कार्मिक, लोक शिकायत व पेंशन मंत्रालय के सचिव, व्यय विभाग के विशेष सचिव और पेंशन फंड नियमन व विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) के अध्यक्ष को बतौर सदस्य, शामिल किया गया। कमेटी से कहा गया है कि वह नई पेंशन स्कीम ‘एनपीएस’ के मौजूदा फ्रेमवर्क और ढांचे के संदर्भ में बदलावों की सिफारिश करे। किस तरह से नई पेंशन स्कीम के तहत ‘पेंशन लाभ’ को और ज्यादा आकर्षक बनाया जाए, इस बाबत सुझाव दें। कार्यालय ज्ञापन में कमेटी से यह भी कहा गया कि वह इस बात का ख्याल रखें कि उसके सुझावों का आम जनता के हितों व बजटीय अनुशासन पर कोई विपरीत असर न हो। खास बात ये रही कि दो पन्नों के कार्यालय ज्ञापन में कहीं पर भी ‘ओपीएस’ नहीं लिखा था। उसमें केवल एनपीएस का जिक्र था।

18 साल बाद कर्मी को मिली इतनी पेंशन

ओपीएस के लिए गठित नेशनल ज्वाइंट काउंसिल ऑफ एक्शन (एनजेसीए) की संचालन समिति के वरिष्ठ सदस्य और एआईडीईएफ के महासचिव सी. श्रीकुमार का कहना है कि एनपीएस में कर्मियों जो पेंशन मिल रही है, उतनी तो बुढ़ावा पेंशन ही है। एनपीएस में शामिल कर्मी, 18 साल बाद रिटायर हो रहे हैं, उन्हें क्या मिला है। एक कर्मी को एनपीएस में 2417 रुपये मासिक पेंशन मिली है, दूसरे को 2506 रुपये और तीसरे कर्मी को 4,900 रुपये प्रतिमाह की पेंशन मिली है। अगर यही कर्मचारी पुरानी पेंशन व्यवस्था के दायरे में होते तो उन्हें प्रतिमाह क्रमश: 15250 रुपये, 17150 रुपये और 28450 रुपये मिलते। एनपीएस में कर्मियों द्वारा हर माह अपने वेतन का दस फीसदी शेयर डालने के बाद भी उन्हें रिटायरमेंट पर मामूली सी पेंशन मिलती है। देश में सरकारी कर्मियों, पेंशनरों, उनके परिवारों और रिश्तेदारों को मिलाकर वह संख्या दस करोड़ के पार पहुंच जाती है। अगर ओपीएस लागू नहीं होता है, तो लोकसभा चुनाव में भाजपा को राजनीतिक नुकसान झेलना होगा। कांग्रेस पार्टी ने ओपीएस को अपने चुनावी एजेंडे में शामिल किया है। कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश की जीत में ओपीएस की बड़ी भूमिका रही है।

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