मास्टरशेफ इंडिया’ सीजन आठ में पहली बार जज के पैनल में शामिल हुईं शेफ पूजा ढींगरा का मानना है कि हर इंडस्ट्री की तरह कमर्शियल किचन में भी पुरुषों का ही वर्चस्व रहा है। वह कहती हैं कि समाज में पुरुष और महिला के बराबरी की बात तो होती है, लेकिन यह बात कितनी सार्थक है, यह सोचने वाली बात है। पूजा ढींगरा की ‘अमर उजाला’ से एक खास बातचीत।
पुरुषों के मुकाबले इस प्रोफेशन में महिलाएं बहुत कम हैं, इसकी क्या वजह मानती हैं आप ?
इसमें बहुत सारे कल्चरल फैक्टर हैं। बाकी इंडस्ट्री की तरह यह इंडस्ट्री भी पुरुष प्रधान इंडस्ट्री रही है। महिलाएं यह नहीं कर सकती है, ऐसी धारणा लोगों की रही है। पुरुष और महिला के बराबरी की बात तो हो रही है, लेकिन अभी भी सवाल यही है कि बराबरी कितनी बढ़ी है। खैर, अभी बदलाव हो रहा है, बहुत सारी औरते अब इस प्रोफेशन में आने लगी हैं। लेकिन यह बदलाव बहुत धीरे हो रहा है।
किचन में खाना बनाने और कमर्शियल किचन में खाना बनाने में कितना अंतर होता है?
घर के किचन में जो सामग्री उपलब्ध है, उसी में आप अपनी सुविधा अनुसार शांति से अपना टाइम लेकर खाना बना सकते हैं। वहां कोई आप को जज नहीं कर रहा है। लेकिन जब आप कमर्शियल किचन में खाना बना रहे होते हैं तो उसने बहुत सारे अलग अलग एलिमेंट्स आ जाते हैं। जैसे कि वो आप मास्टरशेफ इंडिया को ही देख लीजिए। यहां एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा है। यहां समय का दबाव है। हर दिन यहां नई नई चुनौतियां होती हैं। जब आपको कोई जज रहा होता है, तो मन में हमेशा इस बात का डर होता है कि कहीं आप से गलती तो नहीं हो रही है। और, इस डर से गलती हो जाती है। लेकिन ऐसे माहौल में आप को बहुत संयम बरतने की जरूरत होती है।
लेकिन जब आपको कोई जज कर रहा होता है तो कहीं ना कहीं बेहतर काम करने की गुंजाइश भी तो होती है ?
बिल्कुल होती है, लेकिन अगर मन में डर की भावना न हो तो। मैंने अक्सर देखा है कि अगर किसी इंसान के काम में बार-बार गलतियां निकाली जाएं तो उसके मन में यह डर बैठ जाता है कि कहीं उससे कोई गलती तो नहीं हो रही है। कुछ लोग तो काबिल बन गए है, वह खुद को जताते हैं कि वो कितने काबिल हैं। लेकिन वह भूल जाते हैं कि कभी वह भी इस प्रोफेशन में नए रहे होंगे और उनसे भी गलतियां हुई होगी। मेरा अपना मानना है कि किसी इंसान के काम में गलती निकालने के बजाय अगर उसे प्यार से समझाया जाए तो वह बेहतर काम कर सकता है।
आपने कब सोचा कि इस प्रोफेशन में करियर बनाना है?
मेरे परिवार के सभी लोग खाने पीने के बहुत शौकीन है। घर पर हमेशा खाने की ही चर्चा होती रहती थी। सुबह का नाश्ता हो गया तो सोचते थे कि लंच में क्या खाना बनेगा, लंच हो गया तो रात के डिनर की प्लानिंग करते थे। मेरे पिता जी घर खुद खाना बनाते हैं, उनका एक रेसिपी चैनल है। जहां अपने अनुभव शेयर करते रहते हैं। तो कहीं न कहीं बचपन में झुकाव तो इस प्रोफेशन की तरह रहा है, लेकिन मैं निर्णय नहीं ले पा रही थी कि जीवन में करना क्या है।
और, वह निर्णय कब लिया आपने?
वैसे जब मैं छह साल की थी तब अपने बुआ से केक बनाना सीखा था। तब ऐसा कुछ नही सोचा था कि आगे चल कर मुझे इस प्रोफेशन में करियर बनाना है। जब मैं 16 साल की हुई तो मन में बार बार यही सवाल घूम रहा था कि क्या इसमें मेरा भविष्य बन सकता है? औरतें यह कर सकती हैं कि नहीं, यह सब कैसे होगा ? इसी कशमकश में थी, तब सोचा कि लॉयर बनना है और मैंने पहले लॉ स्कूल ज्वाइन कर लिया। लेकिन वहां मन नहीं लगा और दो हफ्ते के बाद लॉ की पढ़ाई छोड़ दी।
फिर?
जब मैं 18 साल की हुई तो होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई करने स्विट्जरलैंड चली गई। वहां चार साल तक होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई करने के बाद होटल में कुछ दिनों तक काम किया। उसके बाद पेरिस प्रेस्टीज कुक सीखने गई। पेरिस में एक साल तक प्रेस्टीज कुक सीखने के बाद मुंबई आ गई और यहां आकर मैंने सबसे पहले अपना ‘ले15 कैफे’ खोला। अभी तो मेरे बहुत सारे रेस्टोरेंट हैं, जिसमें मैंने पेरिस की रेसिपी के साथ-साथ भारतीय व्यंजन को भी शामिल किया है।
आपकी तरह जो लड़कियां शेफ बनाना चाहती हैं, उनको क्या संदेश देना चाहेंगी?
यही कि अगर इस प्रोफेशन में आपका आने का सपना है तो अपने सपने को जरूर पूरा करें। जिंदगी के हर मोड़ पर आपका हौसला तोड़ने वाले लोग मिलेंगे, लेकिन आपको अपने दिल की सुननी है। अगर आप ठान ले तो जिंदगी में कुछ भी मुश्किल नहीं है। अच्छी बात यह है कि अब इस प्रोफेशन में भी माहिलाओं की सहभागिता बढ़ रही है।