संघ के वरिष्ठ प्रचारक रंगा हरि की पुस्तक पृथ्वी सूक्त के लोकार्पण कार्यक्रम में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि मानव जीवन का असली लक्ष्य अपने लिए सुख हासिल करना नहीं, बल्कि ज्ञान हासिल करना है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, भारत ने दुनिया को विविधता में एकता नहीं, विविधता ही एकता का मंत्र दिया है। अलग-अलग विचारों के बीच दुनिया कैसे एक रह सकती है, यह विचार भारत की सभ्यता और संस्कृति से उपजा है।
एकता का आधार तलाशना होगा
संघ प्रमुख भागवत ने कहा कि राज्यों के समूह से बने राष्ट्र आज अलग-अलग कारणों से एक हैं। यहां राज्यों का समूह ही राष्ट्र है। राष्ट्र तभी तक है जब तक राज्य है। अमेरिका और यूरोपीय संघ की एकता का आधार आर्थिक है। यह स्थाई भाव नहीं है। स्थाई भाव का आधार भारत के विचारों में है।
भारत ने दुनिया को बताया है कि विविधता में एकता नहीं, बल्कि विविधता ही एकता है। ऐसा पूरी धरती और दुनिया को एक मानने के कारण हुआ है। भारत ने दुनिया को बताया है कि इस एकता का आधार ढूंढ़ना होगा। वह इसलिए कि मनुष्य एक साथ तो आ सकते हैं, मगर इनका एक साथ रहना मुश्किल है।
अलग-अलग रहने पर नहीं, बल्कि साथ रहने पर विवाद होते हैं। ऐसे में भारत ने दुनिया को एक मानने का आधार दिया है। दुनिया को बताया है कि कैसे अलग-अलग विचार, अलग-अलग पूजा पद्धत्ति को मानने वाले एक रह सकते हैं।
सुरक्षा की भावना से आया विचार
संघ प्रमुख ने कहा कि भारत सदियों तक समुद्र और पहाड़ की सीमाओं के कारण सुरक्षित रहा। सुरक्षा के कारण अतीत में समृद्धि आई और इसी सुरक्षा और समृद्धि की भावना से उपजी स्थिरता की भावना ने नए विचार को जन्म दिया। हमने वसुधैव कुटंबकम के मंत्र से दुनिया को एक रहने का आधार दिया।
जी-20 में दिखी भारतीय संस्कृति… संघ प्रमुख ने कहा कि भारत के इस विचार का प्रकटीकरण जी-20 सम्मेलन में दिखा जो कि मुख्य रूप से आर्थिक नीतियां तय करने वाला समूह है। इस मंच के जरिये भारत ने अपनी पुरानी संस्कृति, शिक्षा और अनुभव के आधार पर वसुधैव कुटुंबकम के मंत्र को अपनाया।
जब प्रणब बोले-दुनिया हमें नहीं सिखा सकती, संघ प्रमुख ने दिवंगत राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात के दौरान हुई बातचीत साझा की। उन्होंने कहा, घर वापसी मामले में विवाद के बीच हुई इस मुलाकात में अस्वस्थ होने के बावजूद उन्होंने पर्याप्त समय दिया।
तब मुखर्जी ने कहा पहले कहा कि दुनिया हमें नहीं सिखा सकती। वह इसलिए कि संविधान बनाने वाले ज्यादातर लोग धर्मनिरपेक्ष थे, उससे भी हजारों साल पहले देश के लोग धर्मनिरपेक्ष थे।