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सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस का नया दांव, हिंसा को मुद्दा बनाने की कोशिश

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इस बार भी एमएनएफ, कांग्रेस और जेडपीएम के बीच त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं। सत्तारूढ़ एमएनएफ-भाजपा गठबंधन ने विकास सहित पूर्वोत्तर में चरणबद्ध तरीके से अफ्सपा खत्म किए जाने, उग्रवादी संगठनों का खात्मा होने जैसे मामलों को मुद्दा बनाया है।

Mizoram Election Congress new bet to return to power trying to make violence an issue

मिजोराम में बीते विधानसभा चुनाव में प्रदेश की सत्ता गंवाते ही कांग्रेस ने पूर्वोत्तर भारत का अपना अंतिम किला गंवा दिया था। राज्य में ऐसे समय में चुनाव हो रहे हैं जब पड़ोसी राज्य मणिपुर जातीय हिंसा में उलझा हुआ है।

कांग्रेस पूर्वोत्तर में कथित अशांति को मुद्दा बना कर मिजोरम में सत्ता हासिल करना चाहती है। वहीं, भाजपा राजग की सत्ता बरकरार रख पूर्वोत्तर में ताकत का संदेश देना चाहती है।

बीते चुनाव में राजग की सहयोगी मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) ने 40 सदस्यीय विधानसभा सभा में अपने दम पर बहुमत हासिल की थी। एमएनएफ की सहयोगी भाजपा को एक, जबकि तब सत्ता में रही कांग्रेस को महज पांच सीटें मिली थीं।

जोराम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) ने 8 सीटें जीत कांग्रेस को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था। मणिपुर में कुकी बनाम मैतई के बीच जंग से चिंतित मुख्यमंत्री जोरामथंगा केंद्र से कई बार हिंसा पर रोक लगाने की अपील की है।

फिर त्रिकोणीय मुकाबले के आसार
इस बार भी एमएनएफ, कांग्रेस और जेडपीएम के बीच त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं। सत्तारूढ़ एमएनएफ-भाजपा गठबंधन ने विकास सहित पूर्वोत्तर में चरणबद्ध तरीके से अफ्सपा खत्म किए जाने, उग्रवादी संगठनों का खात्मा होने जैसे मामलों को मुद्दा बनाया है। हालांकि एमएनएफ मणिपुर हिंसा के मुद्दा बनने से असहज है।

लगातार दो जीत के बाद हारी थी कांग्रेस
मिजोरम कभी कांग्रेस का गढ़ रहा है। पार्टी ने 2013 व 2008 में बड़ी जीत दर्ज की थी। बीते चुनाव में हार से पूर्वोत्तर में अपना इकलौता राज्य भी गंवा दिया था।

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