माननीयों को अभियोजन से छूट के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पुनर्विचार याचिका की सुनवाई के दौरान बुधवार को सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सवाल किया कि क्या सिर्फ कानून के दुरुपयोग की आशंका पर राजनीतिक भ्रष्टाचार को छूट दे देनी चाहिए।
माननीयों को अभियोजन से छूट के आदेश पर पुनर्विचार याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा कि क्या सिर्फ कानून के दुरुपयोग की आशंका पर राजनीतिक भ्रष्टाचार को छूट दे देनी चाहिए। इस पर वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन ने कहा, चूंकि दुरुपयोग की यह आशंका ऐतिहासिक काल से संसदीय विशेषाधिकार देने के मूल में रही है, इसलिए अदालत से सिर्फ वही जारी रखने के लिए कहा जा रहा है जो समय की कसौटी पर खरा उतरा है।
पीवी नरसिम्हा राव के मामले (जेएमएम रिश्वत मामला) में पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले के 25 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने 20 सितंबर को इस मामले को सात सदस्यीय संविधान पीठ को भेजा था। 1998 के उस फैसले में कहा गया था कि सांसद व विधायक को अभियोजन से छूट है, भले ही उन्होंने सदन में वोट देने के लिए पैसे लिए हों।
फैसले में हस्तक्षेप न करने का किया अनुरोध
रामचंद्रन ने इससे पहले अदालत से अनुरोध किया कि वह सावधानीपूर्वक विचार किए गए और पूरी तरह तार्किक 1998 के फैसले में हस्तक्षेप न करे। सीजेआई की सात सदस्यीय संविधान पीठ ने संसद और राज्य विधानसभाओं में भाषण देने या वोट के लिए रिश्वत लेने पर सांसदों और विधायकों को अभियोजन से छूट देने के शीर्ष अदालत के 1998 के फैसले पर बुधवार को पुनर्विचार सुनवाई शुरू की।
रामचंद्रन ने कहा, उस फैसले को सुनाने वाली पीठ सांविधानिक नैतिकता से अनजान नहीं थी और उसके दृष्टिकोण में छेड़छाड़ करने का कोई आधार नहीं है। राजनीतिक भ्रष्टाचार जीवन का सत्य है और कानून का दुरुपयोग भी उतना ही जीवन का तथ्य है। यह अदालत उन नागरिकों व कानून निर्माताओं (माननीयों) की मदद करने आई है, जिन्हें अन्यायपूर्ण उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है। रामचंद्रन ने कहा कि कानून निर्माताओं को अन्यायपूर्ण उत्पीड़न से बचाने के लिए अभियोजन से छूट दी गई है। इस पर पीठ ने कहा, हम अभियोजन से छूट के साथ-साथ इस पहलू पर भी विचार करेंगे कि आपराधिकता का तत्व होने पर क्या कानून निर्माताओं को छूट दी जानी चाहिए? सुनवाई बृहस्पतिवार को जारी रहेगी।
…जब दूसरा माननीय उसे स्वीकार करे
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, इस तथ्य को देखते हुए विवाद को संभवत: कम किया जा सकता है कि रिश्वत का अपराध तब पूरा होता है जब रिश्वत दी जाती है और दूसरा माननीय उसे स्वीकार कर लेता है। यहां अनुच्छेद 105 के बजाय भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत सवाल है। अनुच्छेद 105 माननीयों को उपलब्ध निर्माताओं को उपलब्ध छूट से जुड़ा है। पीठ ने 1998 के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि तब यह माना गया था कि आपराधिकता के बावजूद माननीयों को छूट उपलब्ध है। हमें छूट के मुद्दे को निपटाना होगा।
माननीयों को दूसरे नागरिकों से अलग करना उद्देश्य नहीं
शीर्ष अदालत ने कहा कि सांविधानिक प्रावधानों का उद्देश्य स्पष्ट रूप से संसद या विधानसभा के सदस्यों (जो देश के सामान्य आपराधिक कानून से प्रतिरक्षा के मामले में उच्च विशेषाधिकार प्राप्त करते हैं) को देश के दूसरे नागरिकों से अलग करना नहीं है। पीठ ने कहा था, कानूनी स्थिति यह दर्शाती है कि नरसिम्हा राव मामले में निर्णय गलत है। एकमात्र सवाल यह है कि क्या हमें भविष्य में किसी समय इस मुद्दे के उठने का इंतजार करना चाहिए या कोई कानून बनाना चाहिए। हमें अपना फैसला भविष्य में अनिश्चित दिन के लिए नहीं टालना चाहिए।