सुदीक्षा तिरुमलेश एक दुर्लभ माइटोकॉन्ड्रियल बीमारी से पीड़ित थीं। पिछले हफ्ते दिल का दौरा पड़ने के बाद उसकी मृत्यु हो गई। उसके परिवार ने शुक्रवार को उसका नाम सार्वजनिक करने के लिए अदालत से आदेश की मांग की थी, जिसने उन्हें इसकी अनुमति दे दी।
ब्रिटेन में अदालती प्रतिबंध हटने के बाद पहली बार भारतीय मूल की किशोरी का नाम सार्वजनिक किया गया है। किशोरी एक दुर्लभ बीमारी से पीड़ित थी। उसके परिजन उसे नैदानिक परीक्षण के लिए विदेश ले जाना चाहते थे। उन्हें उम्मीद थी कि इससे उसकी जीने की संभावना बढ़ सकती है। लेकिन उन्हें इसके लिए अनुमति नहीं दी गई थी। इसके लिए वह कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे। लेकिन, बीच में ही किशोरी की मृत्यु हो गई। सुदीक्षा तिरुमलेश (19 वर्षीय) एक दुर्लभ माइटोकॉन्ड्रियल डिसऑर्डर से पीड़ित थीं। पिछले हफ्ते दिल का दौरा पड़ने के बाद उसकी मृत्यु हो गई। उसके परिवार ने शुक्रवार को उसका नाम सार्वजनिक करने के लिए अदालत से आदेश की मांग की थी, जिसने उन्हें इसकी अनुमति दे दी।लंदन में रॉयल कोर्ट ऑफ जस्टिस के बाहर एक बयान पढ़ते हुए उसके भाई वर्षा चेल्लामल तिरुमलेश ने कहा, “आखिरकार, एक साल के संघर्ष और दिल के दर्द के बाद हम बिना किसी डर के सार्वजनिक रूप से अपनी खूबसूरत बेटी और बहन का नाम कह सकते हैं। उसका नाम सुदीक्षा था। वह सुदीक्षा तिरुमलेश थी, एसटी नहीं।” इस दौरान सुदीक्षा के माता-पिता तिरुमलेश चेल्लामल हेमचंद्रन और रेवती मलेश तिरुमलेश भी साथ में खड़ी थीं। उन्होंने कहा, सुदीक्षा एक अद्भुत बेटी और बहन थी, जिसे हम हमेशा यादों में संजोकर रखेंगे। हम उसके बिना जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं। अदालत सोमवार को इस बारे में फैसला सुना सकती है कि क्या राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) ट्रस्ट और सुदीक्षा का इलाज करने वाले चिकित्सकों का भी नाम लिया जा सकता है। परिवार का कहना है कि वे अपनी कहानी खुलकर बताना चाहते हैं और इसी तरह की स्थिति में दूसरों की मदद करना चाहते हैं।उन्होंने कहा,’हम आज सुदीक्षा के लिए और उसी की तरह की स्थिति का सामना कर रहे अन्य लोगों के लिए न्याय चाहते हैं। हम कभी बदला लेने के लिए बाहर नहीं जाएंगे, हम सिर्फ न्याय चाहते हैं। हम अपनी और सुदीक्षा की कहानी बताने में सक्षम हैं। खबरों के मुताबिक, सुदीक्षा ने बीमारी से लड़ने का दृढ़ संकल्प लिया था और नैदानिक परीक्षणों के लिए उत्तरी अमेरिका या कनाडा जाना चाहती थी। लेकिन, कथित तौर पर उसके परिवार और उसकी देखभाल करने वाले चिकित्सा विशेषज्ञों के बीच इस बात पर असहमति थी कि किशोरी के सर्वोत्तम हित में क्या है।