देश की आजादी मिलने से लेकर आज तक पुराने संसद भवन ने कई गौरवान्वित करने वाले क्षण देखे हैं। देश का आइन लिखने का काम संसद के सेंट्रल हॉल में हुआ। तो देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने ऐतिहासिक ट्रिस्ट विद डेस्टिनी भाषण भी इसी संसद में दिया।
संसद का विशेष सत्र 18 सितंबर से शुरू हो गया है जो 22 सितंबर तक चलेगा। इस सत्र में पहले दिन की कार्रवाई और अंतिम बार पुराने संसद भवन में हुई। वहीं बाकी दिन की कार्रवाई नए संसद भवन में होनी है। गणेश चतुर्थी के दिन यानी आज नए भवन में कार्यवाही की शुरुआत होगी।
देश की राजधानी कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित की घोषणा के साथ रायसीना के स्थल को नए संसद भवन बनाने की बात हुई। कहा जाता है कि शुरुआत में राष्ट्रपति भवन में संसद बनाए जाने की सोच थी। हालांकि, 1919 के मोंटेगू-चेम्सफोर्ड सुधार के अपनाने के साथ देश का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था में विस्तार करने का निर्णय लिया गया। इसका मतलब था कि नए संसद भवन के निर्माण के लिए और अधिक जगह की जरूरत थी।
आखिरकार 1921 का साल आया जब भारत की लोकतांत्रिक भावना का प्रतीक पुरानी इमारत बनना शुरू हुई। इसकी डिजाइन ब्रिटिश वास्तुकार एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर द्वारा की गई थी। भवन के आकार के बारे में प्रारंभिक विचार-विमर्श के बाद, दोनों आर्किटेक्ट हर्बर्ट बेकर और एडविन लुटियंस द्वारा एक गोलाकार आकार को अंतिम रूप दिया गया था क्योंकि यह काउंसिल हाउस के लिए एक कालेजियम डिजाइन का अनुभव देती थी। ऐसा माना जाता है कि मध्यप्रदेश के मुरैना में स्थित चौसठ योगिनी मंदिर के अद्वितीय गोलाकार आकार ने परिषद भवन के डिजाइन को प्रेरित किया था, हालांकि इसके कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं। इसकी डिजाइन के कारण शुरुआत में इसे सर्कुलर हॉउस कहा जाता था।
पुराने संसद भवन के निर्माण में छह वर्ष (1921-1927) लगे। मूल रूप से ‘हाउस ऑफ पार्लियामेंट’ कही जाने वाली इस इमारत में ब्रिटिश सरकार की विधान परिषद कार्यरत थी। 28 मई 2023 को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा संसद के नए भवन का उद्घाटन किया गया। पुरानी संसद भवन, एक वास्तुशिल्प वैभव और एक ऐतिहासिक मील का पत्थर जिसने लगभग एक सदी तक भारत की नियति का मार्गदर्शन किया और जिसकी शानदार विरासत अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई। इसका उद्घाटन 18 जनवरी, 1927 को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन द्वारा किया गया था। उस समय 83 लाख रुपये में बने भवन को वर्ष 1927 में प्रयोग में लाया गया।
पुराने संसद भवन में तीन अहम खंड हैं लोकसभा, राज्यसभा और सेंट्रल हॉल। देश की आजादी मिलने से लेकर आज तक इसने कई गौरवान्वित करने वाले क्षण देखे हैं। देश का आईन लिखने की काम संसद के सेंट्रल हॉल में हुआ। देश का संविधान लिखने के लिए संविधान सभा का गठन किया। इस संविधान सभा की पहली बैठक नौ अगस्त 1946 के दिन सेंट्रल हॉल में हुई। इसके साथ ही यहां संविधान बंनने की प्रक्रिया शुरू हो गई।
उधर देश आजादी हासिल करने के लिए भी बेसब्री से इंतजार कर रहा था। संसद का सेंट्रल हॉल ही था जहां 14-15 अगस्त 1947 की रात सत्ता का हस्तांतरण हुआ। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का ऐतिहासिक ट्रिस्ट विद डेस्टिनी भाषण भी इसी सेंट्रल हॉल में दिया गया।
नौ दिसंबर 1946 को संविधान के निर्माण के लिए पहली बैठक हुई। वहीं आजादी के बाद 29 अगस्त 1947 को संविधान सभा की ड्राफ्टिंग समिति का गठन किया गया। डॉ. भीम राव आंबेडकर अध्यक्षता में समिति ने संविधान का एक मसौदा तैयार किया था। इस तरह से भारत के संविधान के निर्माण में कुल दो साल, 11 माह, 17 दिन का समय लगा।
26 नवंबर 1949 को संविधान सभा में भारत का संविधान पारित किया और दो महीने बाद 26 जनवरी 1950 को संविधान को लागू किया। इसे लागू करने के लिए दो महीने का समय इसलिए लगा, क्योंकि 26 जनवरी 1930 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया था। इसी दिन को गणतंत्र दिवस के तौर पर भारत ने मनाने का फैसला करते हुए संविधान लागू किया।
भारत का संविधान बनकर लागू हो चुका था और अब बारी थी आजाद देश की बागडोर संभालने की। इसके लिए आजाद भारत का पहला लोकसभा चुनाव अक्टूबर 1951 से लेकर फरवरी 1952 के बीच हुआ था। यह लोकसभा चुनाव 489 सीटों पर लड़ा गया था। चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) ने 364 सीटें जीतीं और पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के पहले निर्वाचित प्रधानमंत्री बने।
पुराने संसद भवन से कुछ कड़वी यादें भी जुड़ी हुई हैं। दरअसल, 25 जून 1975 की अर्धरात्रि को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने देश पर आपातकाल थोप दिया। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर आपातकाल की घोषणा कर दी। 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक भारत में आपातकाल घोषित रहा।
करीब दो दशक पहले तारीख 13 दिसंबर 2001, सुबह तक सब कुछ सामान्य था। संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो चुका था। विपक्षी सांसद ताबूत सरकार के खिलाफ राज्यसभा और लोकसभा में हंगामा काट रहे थे। सदन को 45 मिनट के लिए स्थगित कर दिया गया था। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी संसद से घर की ओर जा चुके थे। हालांकि, उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी समेत अन्य सांसद संसद में ही मौजूद थे। तभी सफेद एंबेसडर कार से जैश-ए-मुहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के पांच आतंकी संसद भवन परिसर में प्रवेश करते हैं। जहां एक आतंकी संसद भवन के गेट पर ही खुद को बम से उड़ा लेता है, वहीं दूसरे गोलियां बरसाने लगते हैं।
संसद भवन पर हुए इस हमले में सुरक्षाबलों ने सभी आतंकियों को मार गिराया था। इसमें संसद के एक माली, दो सुरक्षाकर्मी और दिल्ली पुलिस के छह जवान भी शहीद हो गए। इस आतंकी हमले के पीछे मोहम्मद अफजल गुरु, एसए आर गिलानी और शौकत हुसैन समेत पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई शामिल थे। 12 साल बाद नौ फरवरी 2013 को अफजल गुरु को फांसी दे दी गई थी।
पुराना संसद भवन कई चर्चित कानूनों का भी साक्षी रहा है। इसी में एक कानून है वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) जिसके लिए 30 जून 2017 की आधी रात को विशेष सत्र बुलाया गया था। केंद्र की मोदी सरकार ने जीएसटी को लागू करने के लिए संसद के सेंट्रल हॉल में आयोजित किया था। अगले एक जुलाई को देश में जीएसटी का कानून लागू कर दिया गया।
देश का पुराना संसद भवन जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के चौंकाने वाले फैसले का भी गवाह बना। पांच अगस्त 2019 को वह तारीख थी जिस दिन राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म कर दिया है। इसी दौरान जम्मू कश्मीर और लद्दाख दो अलग-अलग केंद्र शासित राज्य के गठन का भी एलान किया।