सपा के राज्यसभा सांसद और I.N.D.I.A गठबंधन की कोऑर्डिनेशन कमेटी के सदस्य जावेद अली कहते हैं कि उनकी पार्टी मध्यप्रदेश में चुनाव लड़ेगी। उनका कहना है कि समाजवादी पार्टी लगातार मध्यप्रदेश के कुछ जिलों की कई विधानसभा सीटों पर लगातार मेहनत करती आई है। इसलिए मध्यप्रदेश में उनके कार्यकर्ताओं के बीच में चुनाव लड़ने की लगातार मांग भी उठ रही है…
उत्तर प्रदेश के घोसी में हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी I.N.D.I.A गठबंधन का प्रत्याशी घोषित हुआ था। चर्चा तभी शुरू हो गई थी कि यह उपचुनाव गठबंधन का बड़ा रोड मैप लेकर आगे बढ़ेगा। लेकिन फिलहाल अन्य राज्यों में होने वाले विधानसभा के चुनाव में ऐसा होता हुआ नहीं दिख रहा है। क्योंकि समाजवादी पार्टी ने मध्यप्रदेश में अपने छह प्रत्याशियों की घोषणा कर कांग्रेस पर दबाव की रणनीति बनानी शुरू कर दी है। माना यही जा रहा है कि मध्यप्रदेश में अगर कांग्रेस इन सीटों के साथ समाजवादी पार्टी की ओर से मांगी जा रही अन्य सीटों पर सहमति जताती है, तो उसको उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की ओर से मनमुताबिक सीटें मिलने की संभावनाएं बढ़ सकती हैं। समाजवादी पार्टी के नेताओं का मानना है कि उनकी पार्टी मध्यप्रदेश में लगातार न सिर्फ मेहनत कर रही है, बल्कि कई चुनाव में उनके प्रत्याशी जीते भी हैं। इसलिए उनकी पार्टी की दावेदारी मध्यप्रदेश में विधानसभा के चुनाव में मजबूती से रखी जा रही है।
समाजवादी पार्टी ने मध्यप्रदेश की छह विधानसभा सीटों पर बगैर I.N.D.I.A गठबंधन में शामिल दलों की सहमति से प्रत्याशी की घोषणा कर सियासी समीकरणों को नई दिशा दे दी है। समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद और I.N.D.I.A गठबंधन की कोऑर्डिनेशन कमेटी के सदस्य जावेद अली कहते हैं कि उनकी पार्टी मध्यप्रदेश में चुनाव लड़ेगी। उनका कहना है कि समाजवादी पार्टी लगातार मध्यप्रदेश के कुछ जिलों की कई विधानसभा सीटों पर लगातार मेहनत करती आई है। इसलिए मध्यप्रदेश में उनके कार्यकर्ताओं के बीच में चुनाव लड़ने की लगातार मांग भी उठ रही है। जावेद अली कहते हैं कि लगातार समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव मध्यप्रदेश में दौरे भी करते रहे हैं। यही वजह है कि 6 प्रत्याशी समाजवादी पार्टी की ओर से घोषित किए जा चुके हैं। जबकि कुछ अन्य सीटों पर तैयारियां चल रही हैं। यह पूछे जाने पर कि जब I.N.D.I.A गठबंधन बन चुका है और आपकी पार्टी भी उसमें शामिल है, तो प्रत्याशियों को आपसी सहमति से मैदान में उतारना चाहिए, इस पर समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद जावेद अली कहते हैं कि उन्होंने कांग्रेस पार्टी के प्रमुख नेताओं से इस संबंध में बात की है। कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि राज्य में चुनाव लड़ने के सभी सियासी समीकरणों के लिहाज से मध्यप्रदेश कांग्रेस के नेता उनसे संपर्क कर आगे की रणनीति पर चर्चा करेंगे।
हालांकि जानकारों का मानना है कि समाजवादी पार्टी ने मध्यप्रदेश में छह सीटों पर अपने प्रत्याशी की घोषणा कर कांग्रेस के ऊपर प्रेशर पॉलिटिक्स का दांव खेला है। राजनीतिक विश्लेषक हिमांशु पुनिया कहते हैं कि अगर सियासी समीकरणों की बात की जाए, तो मध्यप्रदेश में बीते कुछ समय में समाजवादी पार्टी का कोई ग्राफ नहीं बढ़ा है। उनका कहना है कि 2018 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के एक प्रत्याशी चुनाव जीते जरूर थे, लेकिन बाद में हुए सियासी उलट फेर में उन्होंने पार्टी का दामन छोड़ दिया था। उससे पहले 2013 के विधानसभा चुनाव में भी समाजवादी पार्टी का कोई खाता मध्यप्रदेश में नहीं खुला था। वह कहते हैं कि 2003 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 7 सीटें जीती थीं। जबकि 1998 के विधानसभा चुनाव में चार प्रत्याशी समाजवादी पार्टी के हिस्से मध्यप्रदेश में आए थे। जबकि 2008 के विधानसभा चुनाव में भी समाजवादी पार्टी ने एक सीट जीती थी। उसके बाद से मध्यप्रदेश में समाजवादी पार्टी भारी संख्या में प्रत्याशियों की जीत के लिहाज से कभी बड़ी पार्टी के तौर पर नहीं उभर पाई। यही वजह है कि अब जब I.N.D.I.A गठबंधन में समाजवादी पार्टी और मध्यप्रदेश में बड़ी पार्टी कांग्रेस का गठबंधन हो चुका है, तो समाजवादी पार्टी की ओर से ज्यादा से ज्यादा सीटों की मांग कांग्रेस पर एक तरह से सियासी दबाव जैसी ही माना जा सकता है।
हालांकि समाजवादी पार्टी के नेताओं का मानना है कि मध्यप्रदेश में उनका कुछ जिलों और विधानसभा सीटों पर मजबूत जनाधार रहा है। इसलिए उनकी पार्टी ने मध्यप्रदेश में कोई प्रेशर पॉलिटिक्स न करते हुए अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने के लिहाज से गठबंधन में भी सीट देने की मांग रखी है। समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद जावेद अली कहते हैं कि उनकी पार्टी ने पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर रही विधानसभा सीटों और जीती गई विधानसभा सीट पर अपनी दावेदारी पेश की है। मध्यप्रदेश की परसवाड़ा, पृथ्वीपुर, बालाघाट, गुढ़ा और निवाड़ी में समाजवादी पार्टी दूसरे नंबर पर 2018 के चुनाव में रही थी। जबकि एक विधानसभा सीट जीती भी थी। राज्यसभा सांसद जावेद अली कहते हैं कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में किसी भी तरीके के विवाद की कोई स्थिति नहीं है। उनकी मांग को कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने न सिर्फ सुना, बल्कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नेताओं से बात कर आगे की रणनीति बनाने के लिए भी कहा है। उनका कहना है कि विरोधियों के पास जब किसी तरीके की कोई बात नहीं बचती है, तो वह ऐसे माहौल में प्रेशर पॉलिटिक्स या गठबंधन में किसी तरह के विरोधाभास की बातें फैलाना शुरू कर देते हैं।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि उत्तर प्रदेश की सीमा से लगते हुए मध्यप्रदेश के जिलों में समाजवादी पार्टी का कुछ असर मुलायम सिंह यादव के जमाने से रहा है। उसमें रीवा, दतिया, सतना, ग्वालियर, भिंड, मुरैना, पन्ना और छतरपुर जैसे जिले शामिल हैं। हिमांशु पूनिया कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपनी बड़ी हिस्सेदारी की आस लगाए बैठी है। क्योंकि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ही सीटों के बंटवारे में अहम भूमिका में होगी। इसलिए मध्यप्रदेश में समाजवादी पार्टी की ओर से मांगी गई सीटों में कांग्रेस अगर अड़ जाती है, तो उसका असर लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को मिलने वाली सीटों पर भी पड़ सकता है। वह मानते हैं कि इसी सियासी समीकरण को देखते हुए मध्यप्रदेश में कांग्रेस समाजवादी पार्टी को सीटें देने का दांव खेल सकती है। ताकि उत्तर प्रदेश में वह मजबूती के साथ अपनी तय सीटों के लिहाज से समाजवादी पार्टी से समझौता कर सके।