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लखनऊ के सरकारी अस्पतालों से दवाएं ‘गायब’, इमरजेंसी इंजेक्शन भी खत्म

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सांकेतिक तस्वीर।

राजधानी के सरकारी अस्पतालों में दवाओं और इंजेक्शन का संकट गहरा गया है। इन दवाओं व टिटबैक, पैरासिटामॉल इंजेक्शन की आपूर्ति जल्द शुरू न हुई तो इलाज करना मुश्किल होगा। चिंता की बात यह है कि कई इमरजेंसी दवाएं-इंजेक्शन भी नहीं हैं। अस्पताल लोकल पर्चेज के जरिये इमरजेंसी मेडिसिन खरीदकर किसी तरह काम चला रहे हैं। बलरामपुर अस्पताल, सिविल, लोकबंधु अस्पताल, बीआरडी महानगर, ठाकुरगंज संयुक्त चिकित्सालय समेत अन्य अस्पतालों ने ड्रग कॉर्पोरेशन को 100 दवाओं की सूची भेजी है। उधर, अफसरों ने जल्द आपूर्ति होने का दावा किया है।

सरकारी अस्पतालों में दवा आपूर्ति की जिम्मेदारी ड्रग कॉर्पोरेशन की है। हालांकि, यह मांग के अनुरूप इनकी आपूर्ति नहीं कर पा रही है। ऐसे में अस्पतालों से कई दवाएं गायब हो चुकी हैं। अस्पतालों ने हवाला दिया कि जल्द ये दवाएं नहीं भेजी गईं तो उनके यहां बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा। एक समस्या यह भी है कि लोकल पर्चेज के बजट से बड़ी मात्रा में ये दवाएं नहीं खरीदी जा सकती है।

बलरामपुर अस्पताल में यूरोलॉजी, एंटीबॉयोटिक, त्वचा, आर्थोपैडिक, न्यूरो समेत कई इमरजेंसी इंजेक्शन तक नहीं है। इस संबंध में निदेशक डॉ. रमेश गोयल ने बताया कि ड्रग कॉर्पोरेशन के अफसरों ने जल्द ही दवा आपूर्ति करने का आश्वासन दिया है। इसी तरह लोकबंधु अस्पताल से 50 तरह की दवाओं की मांग की गई है। चिकित्सा अधीक्षक डॉ. अजय के मुताबिक, सूची भेज दी गई है, उम्मीद है जल्द दवाएं मिल जाएंगी।

मरीजों की सेहत पर भारी पड़ रहे आदेश
सरकारी अस्पतालों में दवाओं की खरीदारी के लिए दिए गए आदेश मरीजों की सेहत पर भारी पड़ रहे हैं। करोड़ों का बजट होने के बाद भी अस्पताल अपने स्तर से दवाएं नहीं खरीद पा रहे हैं। इसका कारण यह है कि अस्पताल एक वित्तीय वर्ष में महज 20 हजार रुपये की दवाएं ही खरीद सकते हैं, जबकि इससे सिर्फ दस दिन का ही काम चलता है। इसके बाद अस्पताल फिर ड्रग कॉर्पोरेशन से दवाएं आने की राह तकते रहते हैं।

दवा कंपनी समय पर नहीं कर रही आपूर्ति
ड्रग कॉर्पोरेशन ने जिन कंपनियों को दवा आपूर्ति का ठेका दिया है, वे तय समय पर आपूर्ति नहीं कर पा रही हैं। ऐसे में सामान्य दवाओं से लेकर इमरजेंसी ड्रग तक गायब हो चुकी है। इसके बावजूद ड्रग कॉर्पोरेशन दवा कंपनियों पर मेहरबान है। समय पर दवा न देने वाली कंपनियों को काली सूची में डालने की संस्तुति तक नहीं की जा रही है।

जनऔषधि केंद्र पर महज 50 तरह की दवाएं
सरकारी अस्पतालों में खुले जन औषधि केंद्रों पर भी सभी दवाएं नहीं हैं। ऐसे में मरीजों को मजबूरन बाहर से दवाएं लेनी पड़ रही है। अफसरों का कहना है जनऔषधि केंद्रों पर 400 तरह की दवाएं होनी चाहिए, लेकिन सभी केंद्रों पर 40-50 तरह की सामान्य दवाएं ही मिल पा रही है। जन औषधि केंद्रों में उनकी सूची में दी गईं 400 दवाएं आ जाएं तो अस्पताल पर लोड कम होगा।

ये दवाएं हो चुकी हैं खत्म 

  • एमाक्सीक्लेव – बच्चों का सिरप
  • कैल्शियम – सिरप
  • एंटासिड  – गैस का सिरप
  • एलकॉसाल – पेशाब संबंधी दवा
  • कार्बामिजापिन- मानसिक की दवा
  • एनोविट क्रीम- पाइल्स की क्रीम
  • डायलिसिस फ्लयूड
  • लोसारटेन 50 एमजी- बीपी की दवा
  • सिपरोफ्लाक्सीन 500 एमजी – एंटीबॉयोटिक
  • सिफेक्जीन – एंटीबॉयोटिक

ये इंजेक्शन भी हो चुके गायब
टिटबैक, रेनटेक, पैरासिटामॉल, इंट्रोजर्मिना, एंडोस्ट्रान, डोपामाइन, एडनलिन इंजेक्शन व विटामिन के।

व्यवस्था ठीक करने के लिए बुलाई है बैठक
सरकारी अस्पतालों में दवाओं की व्यवस्था सही करने के लिए बैठक रखी गई है। अस्पताल प्रभारियों को अपने स्तर पर सस्ती दवाएं खरीदने पर फैसला लिया जाएगा। ड्रग कॉर्पोरेशन के जरिये आपूर्ति कुछ बाधित है। मरीजों का इलाज न बंद हो, इसके लिए व्यवस्था की जा रही है।

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