‘मेड इन हेवन 2’ सीरीज पर बीते दिन दलित लेखिका याशिका दत्त ने आरोप लगाया। वहीं, अब शो की क्रिएटर्स जोया अख्तर और रीमा कागती दावों पर पलटवार करती नजर आई हैं।
वेब सीरीज ‘मेड इन हेवन 2’ अपनी रिलीज के बाद से ही सुर्खियों में है। 15 अगस्त के दिन लेखिका याशिका दत्त ने सोशल मीडिया पर सीरीज के निर्माताओं के खिलाफ मुहीम छेड़ दी। दलित लेखिका ने आरोप लगाया कि मेकर्स ने उन्हें श्रेय दिए बिना ही उनके जीवन की कहानी को दर्शाया। याशिका ने दावा किया कि एपिसोड में राधिका आप्टे का किरदार उनके जीवन पर आधारित था। वहीं, लेखिका के इन आरोपों पर अब शो की क्रिएटर्स जोया अख्तर और रीमा कागती ने चुप्पी तोड़ी है। साथ ही लंबा नोट लिखकर अपना पक्ष साफ किया है।
क्रिएटर्स का याशिका दत्त को जवाब
जोया अख्तर और रीमा कागती ने सीरीज में राधिका आप्टे के किरदार को काल्पनिक बताया है। क्रिएटर्स ने कहा, ‘हम लेखिका याशिका दत्त के संदर्भ में भ्रामक रिपोर्टों और टिप्पणियों से बहुत परेशान हैं, जो शादी के इर्द-गिर्द बने शो मेड इन हेवन में अपने योगदान के लिए औपचारिक श्रेय का दावा कर रही हैं। योजनाकार और उल्लेखनीय दुल्हनें जो हमारे समाज में गहराई तक व्याप्त पूर्वाग्रहों को चुनौती देती हैं। एपिसोड 5 – ‘द हार्ट स्किप्स ए बीट’ में, हम एक काल्पनिक चरित्र पल्लवी मेनके के जीवन पर नजर डालते हैं।’
जोया अख्तर और रीमा कागती की सफाई
क्रिएटर्स ने आगे लिखा, ‘पल्लवी मेनके विदर्भ क्षेत्र की एक महाराष्ट्रीयन अंबेडकरवादी हैं, जिन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की है। वह जाति-निरपेक्ष उपनाम का उपयोग करके बड़ी हुईं, और उन्हें पल्लवी कुमार कहा जाता था। उन्होंने अब अपना मूल उपनाम मेनके पुनः प्राप्त कर लिया है, जो दलित समुदाय के सदस्य के रूप में उनकी वास्तविक पहचान का प्रतीक है। पल्लवी मेनके एक अकादमिक हैं, जो कोलंबिया में पढ़ाती हैं, और उनके प्रोफेसर के रूप में नियुक्त होने की संभावना है।’
याशिका के दावों को ठहराया गलत
जोया अख्तर और रीमा कागती ने राधिका के चरित्र के बारे में विस्तार से बताया कि यह याशिका के जीवन या उनकी ‘किताब कमिंग आउट एज दलित’ से कैसे अलग है। उनके बयान में आगे कहा गया, ‘वह एमनेस्टी पुरस्कार की प्राप्तकर्ता हैं। यह सब उन्हें उनके भावी ससुराल वालों का सम्मान दिलाता है, जो एक अलग जाति से हैं। साथ ही, उनके ससुराल वालों का मानना है कि एक दलित के रूप में उनकी पहचान को कालीन के नीचे दबा देना ही बेहतर है। एपिसोड का मुख्य संघर्ष यह है कि क्या पल्लवी को शादी की उन रस्मों के लिए लड़ना चाहिए जो उनकी पहचान का प्रतीक हैं, या नहीं। उपरोक्त में से कुछ भी याशिका दत्त के जीवन या उनकी किताब – ‘कमिंग आउट एज दलित’ से नहीं लिया गया है। हम किसी भी दावे से स्पष्ट रूप से इनकार करते हैं कि सुश्री दत्त का जीवन या कार्य हमारे द्वारा हथियाया गया था।’
‘कमिंग आउट’ शब्द पर दी यह सफाई
बयान में ‘कमिंग आउट’ वाक्यांश के उपयोग को भी संबोधित किया गया है, यह देखते हुए कि इसकी उत्पत्ति 1950 के दशक में हुई थी, और इसलिए यह याशिका की किताब से नहीं लिया गया था। कमिंग आउट 1950 का अकादमिक एलजीबीटीक्यूआईए शब्द है, जिसका इस्तेमाल पहली बार 2007 में भारतीय जाति पहचान के संदर्भ में श्री सुमित बौद्ध द्वारा किया गया था। उन्होंने तारशी के लिए लिखे एक लेख में इसका इस्तेमाल किया था। एक दशक बाद इसका उपयोग सुश्री दत्त ने अपनी पुस्तक में किया। तब से यह शब्द जाति-पहचान को पुनः प्राप्त करने के लिए आम बोलचाल का विषय बन गया है।’