चंद्रमा की तरफ तेजी से बढ़ते चंद्रयान-3 ने शुक्रवार यानी चार जुलाई को धरती से चांद के बीच करीब दो-तिहाई से अधिक दूरी तय कर चुका था। इसके एक दिन बाद यानी पांच अगस्त को इसने चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर लिया था।
चंद्रयान-3 के चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करने के एक दिन बाद रविवार को इसरो ने एक वीडियो जारी किया। इस वीडियो में ‘चंद्रयान-3’ से ली गईं चंद्रमा की तस्वीरें दिखाई गईं हैं। अंतरिक्ष एजेंसी ने वीडियो के साथ लिखा कि ‘चंद्रयान -3’ मिशन से चंद्रमा का दृश्य, जब पांच अगस्त को उसे चंद्रमा की कक्षा में स्थापित किया जा रहा था।वीडियो के जरिए जारी तस्वीरों में चंद्रमा को नीले हरे रंगों में दिखाया गया है। चांद पर कई गड्ढे भी नजर आ रहे हैं। वीडियो रविवार देर रात होने वाले दूसरे बड़े मनूवर (manoeuvre) से कुछ घंटे पहले जारी किया गया। इस बीच, रविवार को भारतीय समयानुसार लगभग रात 11 बजे चंद्रयान-3 की कक्षा को घटाया गया। अंतरिक्षयान सफलतापूर्वक एक योजनाबद्ध कक्षा कटौती प्रक्रिया से गुजरा। इंजनों की रेट्रोफायरिंग ने इसे चंद्रमा की सतह के और करीब ला दिया है। चंद्रयान चांद की सतह से फिलहाल 170 किमी x 4313 किमी की दूरी पर है।
बीते दिन चंद्रमा की कक्षा में किया गया था स्थापित
इससे पहले चंद्रमा की तरफ तेजी से बढ़ते चंद्रयान-3 ने शुक्रवार यानी चार जुलाई को धरती से चांद के बीच करीब दो-तिहाई से अधिक दूरी तय कर चुका था। इसके एक दिन बाद यानी पांच अगस्त को इसने चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर लिया। चंद्रयान-3 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से 14 जुलाई को लॉन्च किया गया था।
धीरे-धीरे चांद के करीब पहुंचेगा मिशन
चंद्रयान-3 को नौ अगस्त को दोपहर दो बजे के आसपास चंद्रमा की तीसरी कक्षा में प्रविष्ट कराया जाएगा। इसके बाद 14 अगस्त और 16 अगस्त को इसे क्रमश: चौथी और पांचवीं कक्षा में पहुंचाने की कोशिश की जाएगी।
कैसा रहा चंद्रयान-3 का सफर?
15 जुलाई को चंद्रयान-3 ने सफलतापूर्वक पृथ्वी की पहली कक्षा में प्रवेश किया था। इसके बाद चंद्रयान ने 17 जुलाई को पृथ्वी की दूसरी और 18 जुलाई को पृथ्वी की तीसरी कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश किया। इसके बाद 20 जुलाई को चंद्रयान ने पृथ्वी की चौथी और 25 जुलाई को पृथ्वी की पांचवीं कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश किया था। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने एक अगस्त को भारत के बहुप्रतीक्षित अभियान चंद्रयान-3 अंतरिक्षयान को पृथ्वी की कक्षा से निकालकर सफलतापूर्वक चांद की कक्षा की तरफ रवाना किया था। पांच अगस्त को चंद्रयान सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में स्थापित हो गया था।
लॉन्चिंग कब हुई?
मिशन ने 14 जुलाई को दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा केन्द्र से उड़ान भरी और अगर सब कुछ योजना के अनुसार होता है तो यह 23 या 24 अगस्त को चंद्रमा पर उतरेगा। मिशन को चंद्रमा के उस हिस्से तक भेजा जा रहा है, जिसे डार्क साइड ऑफ मून कहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यह हिस्सा पृथ्वी के सामने नहीं आता।
क्यों खास है चंद्रयान-3 की यात्रा?
फिलहाल मिशन चंद्रमा की अपनी यात्रा पर है, जो बेहद खास है। इससे पहले चंद्रयान-3 को इसरो के ‘बाहुबली’ रॉकेट एलवीएम3 से भेजा गया। दरअसल, पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बाहर निकलने के लिए बूस्टर या कहें शक्तिशाली रॉकेट यान के साथ उड़ते हैं। अगर आप सीधे चांद पर जाना चाहते हैं, तो आपको बड़े और शक्तिशाली रॉकेट की जरूरत होगी। इसमें ईंधन की भी अधिक आवश्यकता होती है, जिसका सीधा असर प्रोजेक्ट के बजट पर पड़ता है। यानी अगर हम चंद्रमा की दूरी सीधे पृथ्वी से तय करेंगे तो हमें ज्यादा खर्च करना पड़ेगा। नासा भी ऐसा ही करता है लेकिन इसरो का चंद्र मिशन सस्ता है क्योंकि वह चंद्रयान को सीधे चंद्रमा पर नहीं भेज रहा है।
सभी मिशन दो से चार दिन में पहुंच गए, हमें इतना समय क्यों लग रहा?
एक निश्चित दूरी के बाद चंद्रयान को आगे की यात्रा अकेले ही पूरी करनी होती है। चीन हो या रूस, सभी मिशन दो से चार दिन में पहुंच गए। सभी ने जंबो रॉकेट का इस्तेमाल किया। चीन और अमेरिका 1000 करोड़ से ज्यादा खर्च करते हैं लेकिन इसरो का रॉकेट 500-600 करोड़ में लॉन्च होता है। दरअसल, इसरो के पास ऐसा कोई शक्तिशाली रॉकेट नहीं है जो यान को सीधे चंद्रमा की कक्षा में ले जा सके। पृथ्वी से चंद्रमा तक की दूरी महज चार दिन की ही है।