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शरद पवार ने पीएम मोदी की पीठ थपथपा कर क्या दिया संदेश, एक एक्शन से कई शिकार कर रहे मराठा सरदार

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पूर्व केंद्रीय मंत्री, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने मंगलवार को सार्वजनिक मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पीठ थपथपाई। पीठ थपथपाने का सीधा अर्थ शाबाशी से है। जानिए! ऐसा करके शरद पवार ने क्या संदेश दिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व, रुचि और व्यवहार को देखते हुए उनकी पीठ थपथपाना सबके बस की बात नहीं है। अमर उजाला ने इसके बाबत पड़ताल की। शरद पवार गुट के एक एनसीपी नेता ने कहा कि इसका मतलब आप लगाइए। मेरे लिए तो अर्थ स्पष्ट है। यह शरद पवार साहब का कद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पीठ थपथपा रहे हैं। इसे पूरे महाराष्ट्र की जनता देख रही है।

महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख ने कहा कि यह गैर राजनीतिक मंच था और शरद पवार ने शिष्टाचार का पालन किया। एनसीपी के एक अन्य नेता ने कहा कि शरद पवार के समारोह में जाने, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हाथ मिलाने आदि को मीडिया में गलत तरीके से पेश किया जा रहा है। यह सब प्रायोजित तरीके से एक तरफा हो रहा है। मुझे महसूस हो रहा है कि अगले एक दो दिन में शरद पवार साहब इस पर बोलेंगे। पूर्व केंद्रीय मंत्री का कहना है कि लोग इसे विपक्षी एकता से जोड़ रहे हैं। जबकि सच्चाई यह है कि शरद पवार मुंबई में होने वाली विपक्षी एकता बैठक में शामिल होंगे। अपनी राय भी रखेंगे।

क्या सोच रहे हैं प्रोफेशनल्स
कल्याण पाटील हों या मनोहर गायकवाड़, सबको प्रधानंमत्री की पीठ ठोंकने के बाद शरद पवार में बड़े नेता की छवि दिखाई दे रही है। एक्सिस बैंक के प्रोफेशनल दिनेश जगदाले, दूध कारोबारी अमित सावंत और कल्याण में रहने वाले सुशील सुर्वे का कहना है कि शरद पवार ने ठीक किया। वहां मंच पर प्रधानमंत्री थे। प्रधानमंत्री का स्वागत और सम्मान तो बनता है।

अमित सावंत का कहना है कि रहा सवाल उपमुख्यमंत्री अजीत पवार के राजनीतिक खेल का तो यह उनके चाचा शरद पवार के दिमाग की उपज हो सकती है। इन सभी से पूछिए तो कहते हैं महाराष्ट्र में कही भी किसी को इसमें संदेह नहीं है। लोग यही सोचते हैं कि शरद पवार ने अपनी बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य को देखते हुए यह राजनीतिक दांव खेला है। इन सभी का मानना है कि प्रधानमंत्री की पीठ थपथपाने का शरद पवार के पक्ष में अच्छा संदेश जाएगा। इससे पवार की राजनीतिक छवि को मजबूती मिलेगी।

हितेश सारंगी कहते हैं कि इसको लेकर शिवसेना नेता संजय राउत ने चाहे जो सलाह दी हो या फिर उद्धव ठाकरे को चाहे जो तकलीफ हो रही हो, लेकिन महाराष्ट्र के आम जनमानस को इससे परेशानी नहीं है। क्योंकि इस कार्यक्रम में कांग्रेस के नेता सुशील कुमार शिंदे भी उपस्थित थे।

शरद पवार जैसा नेता शिष्टाचार भी न निभाता क्या…
महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री और शरद पवार के करीबी अनिल देशमुख कहते हैं कि लोगों को बात का बतंगड़ नहीं बनाना चाहिए। यह एक गैर राजनीतिक समारोह था। प्रधानमंत्री को तिलक सम्मान से सम्मानित करने का निर्णय संस्था ने लिया था। शरद पवार ने शिष्टाचार निभाते हुए तीन महीने पहले प्रधानमंत्री मोदी को इसमें शामिल होने और सम्मान को स्वीकार करने के लिए चिट्ठी लिखी थी। देशमुख कहते हैं कि जब पवार साहब के निमंत्रण पर प्रधानमंत्री आए हैं और उन्होंने पवार की तरफ हाथ बढ़ा दिया तो क्या इतना भी शरद पवार शिष्टाचार में कच्चे हैं? क्या वह शिष्टाचार न निभाते? प्रधानमंत्री से हाथ न मिलाते?

अनिल देशमुख कहते हैं कि इससे शरद पवार की राजनीतिक सोच पर कोई असर नहीं पड़ा है। वह धर्म निरपेक्षता की राजनीति करेंगे। वह विपक्ष की एकता बैठक में शामिल होंगे और केंद्र सरकार के खिलाफ राजनीति में अपनी भूमिका निभाएंगे। संजय राउत के बयान पर देशमुख ने कहा कि यह राउत की निजी सोच है। संजय राउत को लग रहा होगा कि शरद पवार को ऐसा नहीं करना चाहिए, वैसा नहीं करना चाहिए। वह अपनी सोच के हिसाब से सही हो सकते हैं। इस बारे में मेरा केवल इतना कहना है कि शरद पवार की राजनीति का एक स्तर है। वह सतही तरीके से राजनीति करके शिष्टाचार नहीं भूलते। शेष लोग अनुमान लगाते रहें।

प्रधानमंत्री की पीठ थपथपाने के सवाल पर देशमुख ने कहा कि इसे भी उसी शिष्टाचार के हिस्से की तरह देखा जाना चाहिए। पवार प्रधानमंत्री से उम्र में बड़े हैं। मंच पर दोनों नेताओं ने स्थिति को देखकर शिष्टाचार के अनुरूप व्यवहार किया। इसमें गलत क्या है?

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