अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में फेफड़ों के कैंसर के मामलों की संख्या 2013-14 में 940 से दोगुनी होकर 2015-16 में 2,082 हुई। फिलहाल 2023 में यह संख्या 4200 तक पहुंच गई है जो बढ़ते वायु प्रदूषण के समय के साथ मेल खाता है।
फेफड़ों का कैंसर दुनियाभर में सबसे आम कैंसरों में से एक है, जिससे हर साल 18 लाख लोगों की मृत्यु होती है। यानी कुल कैंसर मृत्युदर में 20% इसकी वजह से। इसके पीछे मोटापा, धूम्रपान या शराब सहित अन्य कारण भी हैं, लेकिन सबसे भयावह वजह वायु प्रदूषण है। ज्यादातर ऐसे युवा भी इसकी चपेट में आ रहे हैं, जो धूम्रपान नहीं करते।130 करोड़ से भी ज्यादा आबादी वाले भारत में 2.6 अरब से अधिक फेफड़ें हैं, जिन्हें देखभाल और इलाज की जरूरत है। प्रदूषण के कारण हमारे यहां धूम्रपान न करने वालों के भी फेफड़े खराब हो रहे हैं, विशेषकर युवा और महिलाएं इसकी चपेट में आ रहे हैं। विश्व फेफड़े का कैंसर दिवस के मौके पर दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. श्याम अग्रवाल का कहना है कि फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित धूम्रपान न करने वालों की संख्या 30 से 40 फीसदी तक बढ़ रही है।
साल-दर-साल बढ़ रहे रोगी
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में फेफड़ों के कैंसर के मामलों की संख्या 2013-14 में 940 से दोगुनी होकर 2015-16 में 2,082 हुई। फिलहाल 2023 में यह संख्या 4200 तक पहुंच गई है जो बढ़ते वायु प्रदूषण के समय के साथ मेल खाता है। एम्स के पूर्व निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया का कहना है कि अभी तक कई चिकित्सा अध्ययनों में फेफड़ों के कैंसर और घर के अंदर के प्रदूषण, विशेष रूप से कोयला और बायोमास जलाने के बीच संबंधों का पता चला है।