रिपोर्ट के मुताबिक, 21 राज्यों के 262 जिलों में कोरोना से पहले और बाद के अंतराल के बीच बाल तस्करी के मामले बढ़े हैं। इस अवधि में 18 वर्ष से कम उम्र के 13,549 बच्चों को बचाया गया है। बचाए गए बच्चों में 80% की आयु 13 से 18 वर्ष की थी, जबकि 13% की उम्र नौ से 12 वर्ष थी। इसमें 2% से अधिक नौ वर्ष से भी कम उम्र के बच्चे शामिल थे।
बाल तस्करी के मामले में यूपी, बिहार और आंध्र प्रदेश सबसे आगे हैं। इन तीन राज्यों में साल 2016 और 2022 के बीच सबसे अधिक बच्चों की तस्करी की गई है, जबकि दिल्ली में कोरोनाकाल के बाद इन मामलों में 68 फीसदी वृद्धि हुई है। मानव तस्करी के खिलाफ विश्व दिवस के मौके पर रविवार को एक निजी संगठन की ओर से किए गए अध्ययन में इसका खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक, 21 राज्यों के 262 जिलों में कोरोना से पहले और बाद के अंतराल के बीच बाल तस्करी के मामले बढ़े हैं। इस अवधि में 18 वर्ष से कम उम्र के 13,549 बच्चों को बचाया गया है। बचाए गए बच्चों में 80% की आयु 13 से 18 वर्ष की थी, जबकि 13% की उम्र नौ से 12 वर्ष थी। इसमें 2% से अधिक नौ वर्ष से भी कम उम्र के बच्चे शामिल थे।
उत्तर प्रदेश में 18 गुना हुई मामलों में वृद्धि
उत्तर प्रदेश में कोरोना से पहले 2019 तक बाल तस्करी के मामलों की संख्या 267 थी, लेकिन कोरोना के बाद (2021-2022) में यह तेजी से बढ़कर 1,214 हो गई। इसी तरह कर्नाटक में भी 18 गुना वृद्धि देखी गई।
होटलों और ढाबों में बाल मजदूरों की संख्या अधिक
होटल और ढाबों में बाल मजदूरी करने वाले सबसे अधिक 15.6 प्रतिशत हैं। इसके बाद ऑटोमोबाइल या परिवहन उद्योग में 13 प्रतिशत और कपड़ा उद्योग 11.18 प्रतिशत है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पांच और आठ साल की उम्र के बच्चे कॉस्मेटिक उद्योग में लगे पाए गए जबकि, रिपोर्ट में विभिन्न राज्यों में बाल तस्करी के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। रिपोर्ट में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की चिल्ड्रन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) और गेम्स24×7 के अध्ययन के आंकड़ों को भी संकलित किया गया है।