मामला छह साल पुराना है। 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में एल्गार परिषद सम्मेलन आयोजित किया गया था। इस पर पुणे पुलिस का कहना था कि कार्यक्रम माओवादियों द्वारा वित्त पोषित किया गया था। पुलिस ने आरोप लगाया कि भड़काऊ भाषणों के कारण एक दिन बाद पुणे के कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक पर हिंसा हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में सामाजिक कार्यकर्ता वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा को जमानत दे दी। दोनों पांच साल से जेल में हैं। जस्टिस अनिरुद्ध बोस व जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा, इसमें कोई शक नहीं कि दोनों पर गंभीर आरोप हैं लेकिन सिर्फ इस कारण से हम उनको जमानत देने से इन्कार नहीं कर सकते।
शीर्ष अदालत ने इस तथ्य पर गौर किया कि वे पांच वर्ष से हिरासत में हैं। पीठ ने दोनों को कई शर्तों पर जमानत दी। निर्देश दिया कि आरोपी महाराष्ट्र से बाहर नहीं जाएंगे और मोबाइल हमेशा खुला रखेंगे। पीठ ने कहा, जमानत शर्तों का उल्लंघन होने पर एनआईए उनकी जमानत रद्द करने की मांग करने के लिए स्वतंत्र है। बॉम्बे हाईकोर्ट से जमानत याचिका खारिज होने के बाद दोनों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। यह मामला पुणे में 31 दिसंबर 2017 को एल्गार परिषद के एक कार्यक्रम से जुड़ा है और पुणे पुलिस का कहना है कि इसके लिए धन माओवादियों ने दिया था। पुलिस का आरोप है कि कार्यक्रम के दौरान दिए गए भड़काऊ भाषणों के कारण अगले दिन कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक में हिंसा भड़की थी।
जानिये, सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
कोर्ट का कहना है कि सिर्फ कुछ साहित्य रखने से गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के प्रावधानों को आकर्षित नहीं करेगा। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा की वास्ताविक संलिप्तता किसी तीसरे से सामने नहीं आई है। बता दें, कार्यकर्ताओं ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जमानत याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि हिंसक कृत्यों का प्रचार करने वाले सिर्फ कुछ साहित्य रखने से यूएपीए की धारा 15 (1) (बी) के प्रावधानों को आकर्षित नहीं करेगा। पीठ का कहना है कि हमारा निष्कर्ष है कि 1967 अधिनियम की धारा 15 (1) (बी) के तहत अपीलकर्ताओं के खिलाफ किसी भी मामले को सच माना जा सकता है। एनआईए का कहना है कि सुरेंद्र गाडलिंग और रोना विल्सन सहित गिरफ्तार सह-आरोपियों के पास से बरामद विभिन्न पत्र और अन्य सामग्रियों से सामने आता है कि गोंजाल्विस और फरेरा की भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के साथ संलिप्तता है।
अब जानिए, क्या है पूरा मामला
मामला छह साल पुराना है। 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में एल्गार परिषद सम्मेलन आयोजित किया गया था। इस पर पुणे पुलिस का कहना था कि कार्यक्रम माओवादियों द्वारा वित्त पोषित किया गया था। पुलिस ने आरोप लगाया कि भड़काऊ भाषणों के कारण एक दिन बाद पुणे के कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक पर हिंसा हुई थी।
कोर्ट ने दिए यह निर्देश
कार्यकर्ताओं को जमानत देते वक्त शीर्ष अदालत की बेंच ने निर्देश दिए कि कार्यकर्ताओं के मोबाइल चौबीसों घंटे चार्ज और चालू रहने चाहिए। वे अपने मोबाइल फोन की लोकेशन 24 घंटे ऑन रखेंगे। उनका फोन एनआईए के आईओ के साथ जोड़ा जाएगा। जिससे वह आपके सटीक स्थान की पहचान कर सकें। आप सप्ताह में एक बार जांच अधिकारी को रिपोर्ट करेंगे। दोनों को पुलिस के समक्ष अपना पासपोर्ट जमा कराना होगा। एनआईए को अपना पता बताना होगा।