नियम 198 के तहत ऐसी व्यवस्था है जिसमें सदन के सदस्य लोकसभा अध्यक्ष को सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे सकते हैं। संसद के गठन के बाद से अब तक लोकसभा में कुल 27 अविश्वास प्रस्ताव लाए गए जिनमें से 15 प्रस्ताव इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए लाए गए थे।
मणिपुर मुद्दे को लेकर विपक्ष आज लोकसभा में सरकार के खिलाफ ‘अविश्वास’ प्रस्ताव लाने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए दूसरा मौका होगा जब वे इसका सामना करेंगे। इससे पहले मोदी सरकार को 2018 में अपने पहले ‘अविश्वास’ प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था। तब यह प्रस्ताव भारी अंतर से गिर गया था।
आजादी के बाद से यह 28वां अविश्वास प्रस्ताव होगा। फिलहाल भाजपा नीत एनडीए इसे सामना करने की तैयारी में है। वहीं, विपक्ष इसको लेकर सरकार के खिलाफ हमलावर है। आखिर अविश्वास प्रस्ताव होता क्या है? सबसे पहले संसद में यह कब आया? अब तक आए 27 अविश्वास प्रस्ताव में कब क्या हुआ? इनमें से कितने प्रस्ताव सफल हुए? प्रस्तावों में मतों का आंकड़ा क्या रहा? आइये जानते हैं…
दरअसल, संविधान में अविश्वास प्रस्ताव का कोई जिक्र नहीं है। लेकिन, अनुच्छेद 118 के तहत हर सदन अपनी प्रक्रिया बना सकता है, जबकि नियम 198 के तहत ऐसी व्यवस्था है जिसमें सदन के सदस्य लोकसभा अध्यक्ष को सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे सकते हैं। 26 विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ ने मोदी सरकार के खिलाफ मंगलवार को अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला किया। बुधवार को लोकसभा अध्यक्ष ने विपक्ष के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। हालांकि, लोकसभा अध्यक्ष ने बहस के समय अभी नहीं दिया है। इसे सभी दलों से चर्चा के बाद तय करने की बात कही है।
प्रस्ताव पारित कराने के लिए सबसे पहले विपक्षी सांसदों को लोकसभा अध्यक्ष को इसकी लिखित सूचना देनी होती है। इसके बाद स्पीकर उस दल के किसी सांसद से इसे पेश करने के लिए कहते हैं। यह अविश्वास प्रस्ताव बहस के लिए तभी स्वीकार होता है जब कम से कम प्रस्ताव पेश करने वाले सांसद के पास 50 सदस्यों का समर्थन हासिल हो। यानी, अविश्वास प्रस्ताव पेश करने वाले सांसद के प्रस्ताव पर कुल 50 सांसदों का हस्ताक्षर होना चाहिए। लोकसभा अध्यक्ष की मंजूरी मिलने के बाद 10 दिन के अंदर इस पर चर्चा कराई जाती है। चर्चा के बाद स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग कराते हैं या फिर कोई फैसला ले सकते हैं।
संसद के गठन के बाद से अब तक लोकसभा में कुल 27 अविश्वास प्रस्ताव लाए गए। दो-तिहाई (27 में से 18) ऐसे प्रस्ताव 1960 और 1980 के दशक के बीच आए। तीसरी और चौथी लोकसभा में छह-छह ऐसे प्रस्ताव आए। पांचवीं लोकसभा में चार प्रस्ताव आए। हालांकि, पिछले तीन दशकों में ‘अविश्वास’ प्रस्तावों की संख्या में काफी कमी आई है, इस दौरान केवल पांच ऐसे प्रस्ताव आए। आजादी के बाद पहले 13 वर्षों में एक भी प्रस्ताव नहीं उठाया गया। भारतीय संसद के इतिहास में पहला अविश्वास प्रस्ताव पंडित जाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में अगस्त 1963 में जे.बी. कृपलानी ने रखा था। भारत-चीन युद्ध के तुरंत बाद आए इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल 62 वोट पड़े थे और विरोध में 347 वोट पड़े थे और सरकार चलती रही थी।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सबसे ज्यादा बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा। 15 वर्षों तक प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा ने आज तक आए सभी ‘अविश्वास’ प्रस्तावों में से आधे से अधिक का सामना किया। 27 प्रस्तावों में से 15 प्रस्ताव उनके प्रधानमंत्री रहते हुए लाए गए थे।
दो साल से भी कम समय तक प्रधानमंत्री रहे लाल बहादुर शास्त्री को ऐसे तीन प्रस्तावों का सामना करना पड़ा। पूरे पांच साल तक अल्पमत सरकार चलाने वाले पीवी नरसिम्हा राव को भी ऐसे तीन प्रस्तावों का सामना करना पड़ा। मनमोहन सिंह एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्हें 10 साल तक पद पर रहने के बावजूद ऐसे किसी प्रस्ताव का सामना नहीं करना पड़ा।
संसद के कुल 22 अलग-अलग सदस्यों ने इन 27 ‘अविश्वास’ प्रस्तावों का प्रस्ताव रखा। सीपीआई (एम) सांसद ज्योतिर्मय बसु ने इन 27 प्रस्तावों में से सबसे अधिक चार प्रस्ताव रखे। उन्होंने अपने चारों प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ रखे थे। अटल बिहारी वाजपेयी और मधु लिमये ने दो-दो प्रस्ताव पेश किए। अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्ष में रहते हुए पहला प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ पेश था और दूसरा नरसिंह राव सरकार के विरुद्ध। 2003 में सोनिया गांधी ने भी ‘अविश्वास’ प्रस्ताव पेश किया था।
ये दूसरी बार होगा जबकि मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा रहा है। इससे पहले भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को 20 जुलाई 2018 को अपने पहले ‘अविश्वास’ प्रस्ताव का सामना करना पड़ा और प्रस्ताव भारी अंतर से हार गया। यह अविश्वास प्रस्ताव चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी द्वारा लाया गया था।
अब तक आए 27 प्रस्तावों में से 26 प्रस्ताव मतदान के चरण में पहुंचे। अगर इतिहास पर नजर डालें तो सिर्फ वाईबी चव्हाण द्वारा 1979 में प्रस्तावित अविश्वास प्रस्ताव के चलते मोरारजी देसाई की सरकार गिरा दी गई थी। मोरारजी देसाई के शासन काल में उनकी सरकार के खिलाफ दो बार अविश्वास प्रस्ताव लाए गए थे। पहले प्रस्ताव के दौरान घटक दलों में आपसी मतभेद होने की वजह से प्रस्ताव पारित नहीं हो सका लेकिन दूसरी बार जैसे ही देसाई को हार का अंदाजा हुआ उन्होंने मतविभाजन से पहले ही इस्तीफा दे दिया था। यह एकमात्र मौका है जब मतदान नहीं हुआ। बाकी 26 अवसरों में से 22 का निर्णय मतविभाजन द्वारा किया गया जबकि अन्य चार का फैसला ‘ध्वनि मत’ द्वारा किया गया।
22 प्रस्तावों के दौरान मत विभाजन हुआ। इनमें 1993 में सीपीआई (एम) के अजॉय मुखोपाध्याय द्वारा प्रस्तावित प्रस्ताव पर सबसे कड़ा मतदान हुआ था जब पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे। इस दौरान प्रस्ताव केवल 14 (पक्ष में 251 और विपक्ष में 265) के अंतर से गिर गया था। अंतर के मामले में, 22 प्रस्तावों में से नौ प्रस्ताव 200 से अधिक मतों के अंतर से गिर गए, जबकि 10 अन्य प्रस्ताव 100 और 200 मतों के अंतर से पास नहीं हो सके। बाकी तीन प्रस्ताव 100 से कम मतों के अंतर से गिर गए।