प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव के साथ भाजपा का कुनबा भी परेशान नजर आ रहा है। इसी बीच चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक की जिम्मेदारी केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को सौंपी गई। तोमर सीएम शिवराज के करीबी माने जाते हैं। ऐसे में चौहान थोड़ी राहत ले सकते हैं…
इन दिनों मध्यप्रदेश भाजपा बैचेन नजर आ रही है। विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश भाजपा के कप्तान बदले जाने की चर्चा थी। कप्तान तो नहीं बदला गया, लेकिन दिल्ली दरबार ने सीधे कमान अपने हाथों में ले ली। चुनाव तक मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के चुनावी प्रबंधन-संगठन की लगाम अमित शाह के हाथों में रहेगी। यही संदेश देने के लिए बीते दिनों गृहमंत्री राजधानी पहुंचे थे। पदाधिकारियों की बैठक में उन्होंने इशारा दिया था कि चुनाव से जुड़े से कामकाज उनके भेजे गए सिपहसालार ही देखेंगे। इससे सीएम शिवराज चौहान भी असहज है। प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव के साथ भाजपा का कुनबा भी परेशान नजर आ रहा है। इसी बीच चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक की जिम्मेदारी केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को सौंपी गई। तोमर सीएम शिवराज के करीबी माने जाते हैं। ऐसे में चौहान थोड़ी राहत ले सकते हैं। हालांकि वीडी शर्मा को भोपाल अब दिल्ली के हिसाब से चलाना होगा। भाजपा आलाकमान के निर्णयों से यह साफ लग रहा है कि हिंदी पट्टी के अहम प्रदेश के चुनाव और सत्ता भाजपा के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं। हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में हार के बाद पार्टी मध्यप्रदेश में चुनावी छाछ फूंक-फूंक कर पीना चाहती है।
विजय संकल्प यात्राओं में शिवराज नहीं होंगे चेहरा
शिवराज सरकार में कद्दावर मंत्री रहे एक विधायक अमर उजाला से चर्चा में कहते हैं कि पिछले 19 साल से भाजपा सत्ता में है। पहले चुनावी साल में भाजपा की यात्राओं का मुख्य चेहरा सीएम शिवराज सिंह हुआ करते थे, लेकिन इस बार पार्टी ने अपनी रणनीति बदल दी है। इससे सीएम और उनका गुट थोड़ा असहज है। प्रदेश में इस बार यात्राएं तो निकलेंगी, लेकिन इनमें चेहरा एक नहीं होगा। बल्कि क्षेत्र के हिसाब से वहां के नेता को ही तवज्जो दी जाएगी। 2018 के विधानसभा चुनावों में सीएम शिवराज सिंह ने जन आशीर्वाद यात्रा निकाली थी। तब भीड़ तो बहुत जुटी लेकिन पार्टी को उस हिसाब से वोट नहीं मिले। इसलिए इस बार पार्टी ने अलग-अलग क्षेत्रों में यात्राएं निकालने का निर्णय लिया है। आज एमपी भाजपा में कई पॉवर सेंटर बन गए हैं। इसलिए हाईकमान समन्वय बनाने का काम कर रहा है। पार्टी संगठन ने तय किया है कि प्रदेश में जितनी भी यात्राएं निकलेंगी, उनमें कोई अकेला चेहरा नहीं होगा। भाजपा से जुड़े सूत्र कहते हैं कि अमित शाह ने जब भोपाल की बैठक ली थी, तब उन्होंने पूरा ब्योरा और फीडबैक लिया था। इस दौरान ही उन्होंने फैसला लिया था कि प्रदेश में विजय संकल्प यात्रा निकाली जाएगी, लेकिन इसमें एक चेहरा नहीं होगा। इन यात्राओं को चार जोन में बांटा जाएगा। अलग-अलग यात्रा निकालकर यह संदेश दिया जाएगा कि अब प्रदेश में कोई बड़ा नहीं सब एक बराबर हैं। जिस जोन में यात्रा निकलेगी वहां के स्थानीय और बड़े नेता ही उसके सर्वेसर्वा होंगे।
अब शिवराज के पास अब ‘विकास पर्व’ का सहारा
भाजपा हाईकमान ने किसी एक चेहरे के सहारे पूरे प्रदेश में जन आशीर्वाद यात्रा या अन्य कोई यात्रा नहीं निकालने के निर्देश दिए हैं। बावजूद इसके अपने मन की करने के लिए सीएम शिवराज सिंह चौहान ने बीच का रास्ता निकाल लिया है। इससे उन्हें न अमित शाह और संगठन के निर्देशों की अनदेखी करनी होगी और न ही अपनी इच्छा को ताक पर रखना होगा। चुनाव से पहले सीएम शिवराज ने मतदाताओं तक पहुंचने के लिए विकास पर्व कार्यक्रम का सहारा लिया है। 16 जुलाई से 14 अगस्त तक मनाए जाने वाले इस कार्यक्रम के दौरान सीएम दो लाख करोड़ से अधिक कार्यों के लोकार्पण-भूमिपूजन करेंगे। इस दौरान वो किसी न किसी जिले या गांव में रात्रि विश्राम भी करेंगे।
अमर उजाला से चर्चा में संगठन से जुड़े एक नेता कहते हैं, भाजपा हाईकमान सीएम चौहान को बैकफुट पर लाने और अंकुश लगाने की कोशिश कर रहा है। इसलिए उन्हें अब तक प्रदेश में जन आशीर्वाद यात्रा निकालने की अनुमति नहीं मिली। भोपाल में अमित शाह के साथ हुई बैठक में इस तरह की यात्रा निकालने को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई। लेकिन जैसे ही यह खबरें सामने आने लगीं कि जन आशीर्वाद यात्रा का स्वरुप बदला जाएगा। इसमें क्षेत्रवार दिग्गज नेताओं को जिम्मेदारी दी जाएगी। इन यात्राओं में मुख्य चेहरा चौहान का नहीं होगा। तभी उन्होंने सरकार के विकास पर्व कार्यक्रम के जरिए मतदाताओं तक पहुंचने का फैसला लिया। इस कार्यक्रम के जरिए उन्होंने साबित कर दिया कि वे रुकने वाले नहीं हैं। उन्होंने साफ संदेश भी दिया कि प्रदेश में कोई भी नया पदाधिकारी या टीम आ जाए लेकिन उनके वन मैन शो को रोक पाना इतना आसान नहीं है। हालांकि अब यह बात देखने वाली होगी कि शिवराज के इस तोड़ पर हाईकमान क्या करता है।
इसलिए भूपेंद्र यादव को मिली एमपी की जिम्मेदारी
केंद्रीय नेतृत्व का जितना दखल मध्यप्रदेश में 2023 के विधानसभा चुनाव में है, उतना पिछले चुनाव में नहीं था। इस चुनाव की तरह 2018 के विधानसभा चुनाव में मैनेजमेंट की जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के पास ही थी। लेकिन पहली बार प्रदेश चुनाव प्रभारी के अलावा सह प्रभारी के तौर पर केंद्रीय मंत्री को जिम्मेदारी सौंपी गई है, जबकि पिछले चुनाव में चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान को बनाया गया था। 2018 के चुनाव में प्रदेश प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे का कोई सहयोगी नहीं था, लेकिन इस बार प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव के दो सहयोगी पंकजा मुंडे व रामशंकर कठेरिया नियुक्ति किए गए हैं।
भाजपा सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय नेतृत्व ने केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को मध्यप्रदेश का चुनावी प्रभारी बनाकर एक तीर से तीन निशाने साधने की कोशिश की है। इस बार चुनाव की पूरी जिम्मेदारी केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की है। यादव, शाह के साथ भाजपा की संगठनात्मक रणनीतियां तय करने के लिए जाने जाते हैं। चाहे 2013 का विधानसभा चुनाव हो या फिर 2014 का झारखंड और 2017 में हुए गुजरात का चुनाव या फिर उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव। इन राज्यों में यादव ने पर्दे के पीछे रहकर अहम रोल निभाया है।
सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद से पार्टी में गुटबाजी के मामले तेजी से सामने आ रहे हैं। टिकट वितरण से पहले ही नेताओं के बीच खींचतान देखी जा रही है। इसी असंतोष को थामने के लिए भूपेंद्र यादव को जिम्मेदारी दी गई है। यादव ने इससे पहले मध्यप्रदेश में कभी काम नहीं किया है, लेकिन वे यहां के नेताओं से संपर्क में रहते है। पार्टी को लगता इससे आपसी गुटबाजी को कंट्रोल करने में सफलता मिल सकती है। यादव विधानसभा वार सर्वे रिपोर्ट के आधार पर उम्मीदवारों का पैनल तैयार करेंगे। वे सत्ता और संगठन में होने वाले महत्वपूर्ण फैसलों में सीधा दखल कर सकेंगे।
तोमर मैनेजमेंट देखेंगे और रूठों को मनाएंगे
केंद्रीय मंत्री तोमर को विधानसभा चुनावों के लिए चुनाव प्रबंधन समिति का संयोजक बनाया गया है। वे चुनावी घोषणा पत्र से लेकर मीडिया, चुनावी प्रचार सामग्री, नारे, होर्डिंग से लेकर मुद्दे तय करने की जिम्मेदारी रहेगी। इसके अलावा प्रधानमंत्री समेत अन्य केंद्रीय नेताओं के दौरे व सभाएं की तारीखें व स्थान का चयन करने का अधिकार भी तोमर के पास रहेगा। भाजपा सूत्रों का कहना है कि पूरे प्रदेश में पार्टी के कई वरिष्ठ नेता, वरिष्ठ विधायक-सांसद, पूर्व विधायक और पूर्व सांसद संगठन से नाराज हैं। जबकि कई संगठन से जुड़े नेता पिछले दो से तीन सालों से सक्रिय नहीं हैं। चुनाव से पहले तोमर ऐसे सभी नेताओं को मनाएंगे। इसके बाद अनुभव के आधार पर उन्हें चुनाव में जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। चुनाव के लिए बनने वाली कई समितियों में इन नेताओं को एडजस्ट भी किया जाएगा।
स्टार प्रचारक होंगे सिंधिया, वीडी-कैलाश की भूमिका भी बढ़ी
- विधानसभा चुनाव में भले ही अभी तीन माह का वक्त है। इसलिए ऐसे में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की चुनाव में क्या भूमिका होगी, यह स्पष्ट नहीं है। सिंधिया कोर ग्रुप में शामिल हैं। ऐसे में उम्मीदवारों के चयन सहित अन्य फैसलों में उनकी भूमिका अहम होगी। भाजपा सूत्रों का कहना है कि सिंधिया चुनाव में स्टार प्रचारक रहेंगे। प्रदेश में उनकी सभाएं व रैलियां होंगी। खासकर ग्वालियर-चंबल इलाके में उन्हें ज्यादा सक्रिय किया जाएगा। क्योंकि तमाम सर्वे में ग्वालियर-चंबल में बीजेपी की हालत कमजोर बताई जा रही है।
- अब राज्य में प्रदेश अध्यक्ष बदले जाने की कयासों पर विराम लग गया है। अब यह साफ है कि चुनाव तक प्रदेश संगठन की कमान वीडी शर्मा के हाथों में ही रहेगी। शर्मा चुनाव से जुड़े हर फैसले में शामिल होंगे। उम्मीदवारों के टिकट वितरण से लेकर जिलों में चुनाव समितियों के गठन में उनकी भूमिका होगी। चुनाव प्रचार से लेकर बूथ मैनेजमेंट और टिकट वितरण में उनका दखल रहेगा। शर्मा अगले तीन महीने तक जिलों के दौरे कर संगठनात्मक मजबूती पर भी फोकस करेंगे।
- भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की भी इन चुनावों में भूमिका बढ़ी है। कोर ग्रुप में होने वाले फैसले में उनकी भागीदारी होगी। इसके अलावा केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें पॉलिटिकल फीडबैक की अहम जिम्मेदारी सौंपी है। ऐसा पहली बार हुआ है, जब भाजपा ने पॉलिटिकल फीडबैक विंग बनाई है। जो राजनीतिक घटनाक्रमों की जानकारी जुटाने के साथ-साथ योग्य उम्मीदवारों के चयन, जातीय समीकरण व सकारात्मक मुद्दों को साधने की रणनीति पर काम करेगी। यह विंग केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की निगरानी में काम करेगी।