अभियोजन पक्ष ने पहले अदालत से पॉलीग्राफ टेस्ट, वॉयस लेयर टेस्ट और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के लिए उनकी सहमति लेने का अनुरोध किया था। कुरुलकर के अभियोजक विजय फरगड़े का कहना है कि यह सभी परीक्षण अनावश्यक है।
हनीट्रैप में फंसे डीआरडीओ वैज्ञानिक मामले में महाराष्ट्र एटीएस ने अदालत से कहा कि वॉयस लेयर और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण परीक्षण के लिए उन्हें गिरफ्तार वैज्ञानिक के सहमति की आवश्यकता नहीं है।
पहले जानिए क्या है पूरा मामला
पुणे स्थित रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) की एक प्रयोगशाला के प्रमुख प्रदीप कुरुलकर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी से जुड़ी एक महिला की ओर आकर्षित थे। सोशल मीडिया पर पाकिस्तानी एजेंट जारा दासगुप्ता की आईडी थी। सोशल मीडिया पर प्रदीप और जारा की बातचीत शुरू हुई। दोनों के बीच थोड़ी नजदीकियां बढ़ गई। इस दौरान प्रदीप ने कई संवेदनशील जानकारियां जारा को दे दी। इसके बाद महाराष्ट्र पुलिस की एटीएस ने तीन मई को उन्हें गिरफ्तार कर लिया। एटीएस ने आरोपी के खिलाफ एक जुलाई को चार्जशीट दाखिल किया।
कोर्ट में दोनों पक्षों ने रखी आपनी बात
अभियोजन पक्ष ने पहले अदालत से पॉलीग्राफ टेस्ट, वॉयस लेयर टेस्ट और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के लिए उनकी सहमति लेने का अनुरोध किया था। कुरुलकर के अभियोजक विजय फरगड़े का कहना है कि यह सभी परीक्षण अनावश्यक है। परीक्षण के लिए मजबूर करना उनके मौलिक अधिकारों का हनन है। विजय ने कहा कि सभी टेस्ट के लिए कुरुलकर की सहमति आवश्यक है। क्योंकि, इस टेस्ट के माध्यम से साक्ष्य का उपयोग उसके खिलाफ किया जा सकता है। मामले में बचाव पक्ष के वकील ऋषिकेश गनु ने गोपनीय दस्तावेजों तक पहुंच का अनुरोध किया है। दस्तावेज बचाव के लिए आगे की कार्रवाई निर्धारित करने के लिए आवश्यक हैं।