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संसद का मानसून सत्र आज से, विपक्ष की मणिपुर हिंसा पर चर्चा की मांग

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संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा है कि सरकार मानसून सत्र में मणिपुर समेत सभी मुद्दों पर चर्चा कराने के लिए तैयार है, बशर्ते कि वे नियमों के तहत और अध्यक्ष से स्वीकृत हों।

मणिपुर हिंसा, महंगाई, दिल्ली अध्यादेश समेत कई मुद्दों पर केंद्र सरकार और विपक्ष के बीच जारी तकरार के बीच संसद के मानसून सत्र का आगाज आज से होगा। विपक्ष इन मुद्दों पर सरकार को घेरने की तैयारी में है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बुधवार को सर्वदलीय बैठक में सभी दलों से जन सरोकारों से जुड़े मुद्दे उठाने और विधेयकों पर सार्थक चर्चा की अपील की।

मणिपुर पर चर्चा के लिए सरकार तैयार
सर्वदलीय बैठक के बाद संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि सरकार मानसून सत्र में मणिपुर समेत सभी मुद्दों पर चर्चा कराने के लिए तैयार है, बशर्ते कि वे नियमों के तहत और अध्यक्ष से स्वीकृत हों। वहीं, कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि ताली दोनों हाथों से बजती है और अगर सरकार चाहती है कि संसद की कार्यवाही सुचारू तरीके से चले तो उसे विपक्ष की मांगें माननी पड़ेंगी।

मीडिया से बातचीत में जोशी ने कहा कि सभी दल मणिपुर पर चर्चा की मांग कर रहे हैं। राज्यसभा के चेयरमैन और लोकसभा के स्पीकर जब भी कोई तिथि और समय तय करेंगे, सरकार मणिपुर के मुद्दे पर चर्चा कराने के लिए तैयार है। मणिपुर के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान की विपक्ष की मांग के बारे पूछे जाने पर जोशी ने कहा, सरकार जब चर्चा के लिए तैयार है, तब इस तरह की मांग संसद में व्यवधान पैदा करने की चेतावनी देने जैसा है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय पूर्वोत्तर राज्यों के मुद्दे पर नोडल मंत्रालय है।

दिल्ली अध्यादेश समेत 31 बिल होंगे पेश
मानसून सत्र 20 जुलाई से 11 अगस्त तक चलेगा। इस सत्र में सरकार दिल्ली अध्यादेश, डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण, वन संरक्षण संशोधन सहित 31 विधेयक पेश करेगी। जोशी ने कहा कि मानसून सत्र के दौरान संसद में 31 विधेयक पेश किए जाएंगे।

दवा लाइसेंस को विनियमित करने में केंद्र का होगा हस्तक्षेप
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने दवा, चिकित्सा उपकरण और सौंदर्य प्रसाधनों को विनियमित करने के लिए एक नया विधेयक तैयार किया है, जिसे इसी मानसून सत्र में पेश किया जाएगा। इस विधेयक के मसौदे में सरकार ने स्पष्ट किया है कि दवा लाइसेंस को विनियमित करने का अधिकार पूरी तरह से राज्य सरकार के हवाले नहीं रखा जा सकता है। इसमें केंद्रीय नियामक संगठन का भी हस्तक्षेप होगा।

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