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कांग्रेस के साथ से भी नहीं बनेगी आप की बात, दिल्ली अध्यादेश गिराने 17 अतिरिक्त मत की जरूरत

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संसद के मानसून सत्र में दिल्ली अध्यादेश पर सरकार और विपक्ष के बीच जोर आजमाइश तय है। इस मामले में आम आदमी पार्टी (आप) ने कांग्रेस का साथ मिलने से राहत की सांस ली है।

संसद के मानसून सत्र में दिल्ली अध्यादेश पर सरकार और विपक्ष के बीच जोर आजमाइश तय है। इस मामले में आम आदमी पार्टी (आप) ने कांग्रेस का साथ मिलने से राहत की सांस ली है। हालांकि, आंकड़े बताते हैं कि उच्च सदन राज्यसभा में अध्यादेश का भविष्य भाजपा और विपक्षी एकता से समान दूरी बनाकर चल रहे बीजेडी और वाईएसआरपी तय करेंगे। इसके अलावा एक सदस्य वाले बीएसपी, टीडीपी और जेडीएस की भूमिका भी अहम होगी।

दरअसल, 24 जुलाई के बाद उच्च सदन की स्थिति में थोड़ा बदलाव होगा। आठ पद रिक्त होने के कारण सदन के सदस्यों की संख्या 238 होगी। ऐसे में अध्यादेश को पारित कराने या इसे गिराने के लिए 120 सदस्यों के समर्थन की जरूरत पड़ेगी। अध्यादेश पर सरकार को इस समय 112 सदस्यों का समर्थन हासिल है, जबकि एक मंच पर आने की कोशिश कर रहे विपक्षी दलों के सदस्यों की संख्या 103 तक ही पहुंच रही है।

थोड़े उलटफेर से ही भाजपा के हाथ होगी बाजी
अध्यादेश पर राज्यसभा में मामूली उलटफेर से भाजपा के हाथ बाजी लग जाएगी। मसलन अगर नौ-नौ सदस्यों वाले बीजेडी और वाईएसआरसीपी ने मतदान से दूरी बनाई, कुछ सदस्य अनुपस्थित रहे या फिर भाजपा को बीएसपी, जेडीएस और टीडीपी का साथ मिला तो अध्यादेश को मंजूरी मिल जाएगी। दरअसल, 24 जुलाई के बाद भाजपा के सांसदों की संख्या 93 हो जाएगी। सहयोगियों के 12, पांच मनोनीत और दो निर्दलीय के समर्थन से यह आंकड़ा 112 हो जाएगा।

विपक्ष की राह कठिन
अध्यादेश पर विपक्ष की राह बेहद कठिन है। अध्यादेश विरोधी सभी दलों की संयुक्त ताकत महज 103 सांसदों की है। यह आंकड़ा अध्यादेश गिराने के लिए जरूरी 120 सदस्यों से 17 कम है। बीजेडी-वाईएसआरसीपी, बीएसपी, जेडीएस, टीडीपी विपक्षी एकता की मुहिम में शामिल नहीं हैं। हालांकि, अनुच्छेद-370 और तीन तलाक विधेयक पर इन दलों ने कभी मतदान से दूरी बनाकर तो कभी विधेयक का समर्थन कर सरकार का साथ दिया है।

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