देश के कुछ इलाकों में मई के आखिरी और जून के पहले सप्ताह में दक्षिण पश्चिमी मॉनसून में देरी और गर्म हवाओं के असर से करीब सभी आवश्यक सब्जियों के भाव में तेजी आई है। इसमें टमाटर की कीमत सबसे ज्यादा बढ़ रही है। देश के कुछ इलाकों में जुलाई के मध्य से लेकर आखिरी तक बारिश होने से सब्जियों की कीमत में कमी आने की संभावना है..
आम तौर पर मानसून के मौसम में हरी सब्जियों और फलों के दाम बढ़ जाते हैं, लेकिन इस बार कीमतें पिछले सालों की तुलना में तेजी से बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। सब्जियों के दाम रॉकेट की रफ्तार से भाग रहे हैं। टमाटर की कीमत 150 रुपये किलो तक पहुंच गई है। वहीं अब मिर्च की कीमत भी लोगों को रुलाने लगी है। अदरक-हरी मिर्च की कीमत 400 रुपये किलो तक पहुंच चुकी है। राजधानी में हरी मिर्च 100 रुपये, तो कोलकाता में भाव 350-400 रुपये किलो तक पहुंच गया है। वहीं, अदरक भी 350 रुपये किलो बिक रहा है। इस बीच सरकार ने कहा है कि कीमत में बढ़ोतरी अस्थायी है। आने वाले 15 से 30 दिन में कीमत घट जाएगी। जबकि इस कारोबार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि कीमतों में जल्द कमी आने की संभावना नहीं है। आने वाले दिनों में आलू और प्याज के दाम भी आसमान छू सकते हैं।
देश के कुछ इलाकों में मई के आखिरी और जून के पहले सप्ताह में दक्षिण पश्चिमी मॉनसून में देरी और गर्म हवाओं के असर से करीब सभी आवश्यक सब्जियों के भाव में तेजी आई है। इसमें टमाटर की कीमत सबसे ज्यादा बढ़ रही है। देश के कुछ इलाकों में जुलाई के मध्य से लेकर आखिरी तक बारिश होने से सब्जियों की कीमत में कमी आने की संभावना है। लेकिन अभी फिलहाल ज्यादा बारिश को लेकर चिंता बनी हुई है, इससे दूरस्थ इलाकों से वस्तुओं की आवाजाही पर असर पड़ सकता है। दिल्ली की आजादपुर मंडी में टमाटर की कीमत 2 जून से 3 जुलाई के बीच 451 रुपये क्विंटल से बढ़कर 6,381 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई है। इस अवधि में टमाटर की आवक 40 फीसदी कम हुई है। कुछ प्रमुख टमाटर उत्पादक इलाकों में टमाटर की फसल खराब होने के कारण आपूर्ति घटी है।
मार्च-अप्रैल में ओलों से फसल खराब हुई। इसके बाद कर्नाटक में टमाटर की फसलों पर कीटों का हमला हो गया। टमाटर कम अवधि में तैयार होने वाली फसल है। विभिन्न इलाकों में साल में कई बार उगाया जाता है। कर्नाटक इसका बड़ा उत्पादक है। इसके बाद मध्यप्रदेश, आंध्र प्रदेश और गुजरात हैं। देश के कुल सालाना टमाटर उत्पादन में इन 4 राज्यों की हिस्सेदारी करीब 48 फीसदी है।