Search
Close this search box.

उर्दू के मशहूर साहित्यकार प्रो. गोपीचंद नारंग का अमेरिका में निधन

Share:

Prof Gopi cHand Narand Passes away at the age of 91

उर्दू दुनिया के मशहूर साहित्यकार और आलोचक प्रो. गोपीचंद नारंग का 91 वर्ष की आयु में अमेरिका में निधन हो गया। उनके निधन से जहान-ए-उर्दू में शोक की लहर दौड़ गई है। उर्दू भाषा और साहित्य की तरक्की के लिए काम करने वाली संस्था ‘रेख्ता’ समेत कई मशहूर शख्सियतों ने प्रो. नारंग के निधन को उर्दू भाषा और साहित्य के लिए अपूरणीय क्षति करार दिया है।

11 फरवरी 1931 को बलूचिस्तान के इलाके दुक्की में प्रो. नारंग का जन्म हुआ। उर्दू साहित्य से मोहब्बत उन्हें अपने पिता धर्मचंद नारंग से विरासत में मिली। वे खुद भी फारसी, उर्दू और संस्कृत के बड़े विद्वान थे। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से उर्दू में मास्टर्स की डिग्री हासिल की और फिर शिक्षा मंत्रालय से रिसर्च फेलोशिप मिलने के बाद 1958 में उर्दू में पीएचडी की।

उन्होंने अपने करियर का आगाज सेंट स्टीफंस कॉलेज से किया। लगभग 60 किताबों के लेखक प्रो. गोपीचंद नारंग उर्दू जबान और अदब में सेवाओं के लिए भारत सरकार द्वारा 2004 में पद्म भूषण और 1995 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी कुछ प्रसिद्ध रचनाओं में ‘उर्दू अफसाना- रिवायत और मसाइल“, “इकबाल का फन’’, “अमीर खुसरो का हिंदू कलाम“, “जदीदियत के बाद“ शामिल हैं।

प्रो. गोपीचंद नारंग की हिंदी, उर्दू और बलूची पश्तो सहित भारतीय उपमहाद्वीप की छह भाषाओं में जबरदस्त पकड़ थी। नारंग ने उर्दू के अलावा हिंदी और अंग्रेजी में कई किताबें लिखी हैं। 1974 में गोपीचंद नारंग जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बने। 1958 में दिल्ली विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने के बाद, प्रोफेसर नारंग ने सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली में भी अध्यापन कार्य शुरू किया।

प्रो. नारंग उर्दू दुनिया की उन गिनी-चुनी शख्सियतों में शामिल हैं जिन्हें पाकिस्तान सरकार द्वारा भी उर्दू की सेवा के लिए सम्मानित किया गया। उनको पाकिस्तान के तीसरे सर्वोच्च पुरस्कार “सितारा-ए-इम्तियाज“ से भी नवाजा गया। 1985 में प्रो. गोपी चंद नारंग को भारत तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह द्वारा गालिब पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसी बीच 1990 में देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. वेंकट रमन ने प्रोफेसर गोपीचंद नारंग को पद्मश्री से नवाजा था। फिर 2012 में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने प्रो. गोपीचंद को मूर्ति देवी पुरस्कार से सम्मानित किया।

91 वर्षीय नारंग के परिवार में उनकी पत्नी मनोरमा नारंग और उनके बेटे अरुण नारंग और तरुण नारंग और पोते हैं।

प्रोफेसर गोपीचंद नारंग ने 57 पुस्तकें लिखीं। उनमें से ज्यादातर उर्दू में हैं। उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी में कुछ किताबें भी लिखी हैं। उन्होंने उर्दू में संरचनाओं और शैली पर चर्चा का आरंभ किया। प्रो. नारंग ने उर्दू के चार बड़े शायरों मीर तकी मीर, मिर्जा गालिब, मिर्जा अनीस और अल्लामा इकबाल पर बेमिसाल किताबें लिखीं।

लेखक होने के अलावा प्रो. नारंग बहुत अच्छे वक्ता भी थे। वह दुनिया भर में आयोजित होने वाले उर्दू के कार्यक्रमों, जलसों और संवाद में भाग लेते थे। यही वजह है कि उन्हें पूरी दुनिया में उर्दू के दूत के तौर पर जाना जाता था।

Leave a Comment

voting poll

What does "money" mean to you?
  • Add your answer

latest news