भट्टाचार्य ने महिला पेशेवरों को विपरीत हालात में हार नहीं मानने की सलाह दी। कहा, परिवर्तन के समय हार मान लेना सबसे आसान तरीका है। आप ऐसा न करें। आपके लिए वहां टिके रहना जरूरी है। प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने के लिए धैर्य रखने की जरूरत होती है और फिर आप उससे उबर सकते हैं।
कंपनियों के निदेशक मंडल में महिलाओं की भागीदारी अब पहले से कहीं अधिक जरूरी हो गई है। बोर्ड में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए मानसिकता बदलने के साथ प्रतिबद्धता व केंद्रीकृत दृष्टिकोण की जरूरत है एसबीआई की पूर्व प्रमुख एवं सेल्सफोर्स इंडिया की शीर्ष अधिकारी अरुंधति भट्टाचार्य का कहना है कि कोविड के बाद हालात सामान्य होने के बावजूद उद्योगों में महिलाओं की संख्या कम होना चिंता की बात है। उन्होंने कहा, हालात सामान्य होने के बाद अब महिलाओं को फिर से कार्यस्थलों पर वापस लाने में कई जगह सिर्फ व्यापक दृष्टिकोण ही मददगार नहीं रहा है। ऐसे में और उदार रुख के साथ समझ एवं सहानुभूति दिखानी होगी। भट्टाचार्य की यह टिप्पणी इसलिए अहम है क्योंकि इस महीने की शुरुआत में देश की सबसे बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनी टीसीएस ने कहा था कि उसकी महिला कर्मचारियों के नौकरी छोड़ने की दर पुरुषों की तुलना में अधिक हो गई है। कंपनी का मानना है कि इसके पीछे वर्क फ्रॉम होम खत्म होने की बड़ी भूमिका हो सकती है।
इसलिए कम है प्रतिनिधित्व
भट्टाचार्य ने एक साक्षात्कार में तमाम मुद्दों पर खुलकर बात की, जिनमें उद्योगों में महिला भागीदारी पर खास जोर रहा। उन्होंने कहा, निदेशक मंडल में वही लोग होते हैं जो पहले उच्च पदों पर होते हैं। इसमें महिलाओं की संख्या सीमित है, इसलिए बोर्ड में भी उनका प्रतिनिधित्व कम रहता है। कार्यान्वयन में मजबूत व रणनीतिक कौशल में दक्ष महिलाओं को शामिल करने से बोर्ड रूम में मूल्यों को बढ़ावा मिलेगा।