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विविधताओं वाले देश में एक समान कानून चुनौती से कम नहीं, 75 साल पुरानी है यह बहस

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मद्रास से संविधान सभा सदस्य और मुस्लिम पर्सनल लॉ अधिनियम 1937 बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले महबूब अली बेग ने यूसीसी पर बहस में कहा था, नागरिक संहिता… मेरा मानना है कि ये शब्द नागरिकों के निजी कानूनों को लेकर नहीं हैं।

समान नागरिक संहिता (यूसीसी) यानी निजी जीवन के लिए बना ऐसा कानून, जिसे हर नागरिक को बाकी नागरिकों की तरह मानना होगा, चाहे वह किसी भी धर्म या मान्यता में विश्वास रखता हो। इनमें विवाह, तलाक, मुआवजा, उत्तराधिकार व संपत्ति, आदि से संबंधित कानून आते हैं। 75 साल पहले संविधान सभा में बहस के दौरान यूसीसी से जुड़े कई तर्कों के संतोषजनक जवाब दिए गए तो कुछ के जवाब भविष्य में बनने वाली लोकतांत्रिक सरकार के विवेक पर भी दरअसल, हमारे संविधान के भाग 4 में नीति निर्देशक तत्व दिए गए हैं। इसका अनुच्छेद 44 कहता है, ‘शासन को प्रयत्न करना होगा कि देश के सभी क्षेत्रों में रह रहे नागरिकों के लिए वह समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करे।’ यह अनुच्छेद भारत के संविधान निर्माताओं के मन में यूसीसी के विचार पुष्टि करता है और पीएम मोदी भी इसी आधार पर जोर दे रहे हैं।

जब बेग बोले…1350 साल से इस्लामी कानून मान रहे हैं, अब नया नहीं मानेंगे
मद्रास से संविधान सभा सदस्य और मुस्लिम पर्सनल लॉ अधिनियम 1937 बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले महबूब अली बेग ने यूसीसी पर बहस में कहा था, नागरिक संहिता… मेरा मानना है कि ये शब्द नागरिकों के निजी कानूनों को लेकर नहीं हैं। बेग ने कहा कि किसी धार्मिक समुदाय के माने जा रहे कानून इसमें नहीं आते। अगर इसे नागरिकों के निजी कानून से जोड़ा जा रहा है तो मैं बताना चाहूंगा कि कुछ धार्मिक समुदायों को अपने निजी कानून प्रिय हैं। मुसलमानों के लिए उत्तराधिकार, विरासत, निकाह, तलाक जैसे मामलों के कानून उनके मजहब पर निर्भर हैं। 1350 साल से मुसलमान इसे मानते आए हैं। अगर आज निकाह का कोई और तरीका लागू होता है, तो हम ऐसे कानून का पालन करने से इनकार करेंगे, क्योंकि यह हमारे मजहब के अनुसार नहीं होगा। इस मामले को हल्के में नहीं लेना चाहिए

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