सिंगुलैर का पेटेंट 2012 में खत्म हो चुका है। अनुमान है कि कंपनी ने इससे करीब 5 हजार करोड़ डॉलर की कमाई की। अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने 2019 में जांच करवाई, 82 आत्महत्याओं को सिंगुलैर और इसके दूसरे जेनरिक वर्जन से भी जोड़ा।
अमेरिका के वर्जीनिया में 2017 में 22 साल के निकोलस इंग्लैंड ने सिर में गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी। उन्होंने इससे दो हफ्ते पहले ही एलर्जी की एक दवा लेनी शुरू की थी। उन्हें कोई मानसिक बीमारी नहीं थी, पर जो दवा वह ले रहे थे, उसे अवसाद और आत्महत्या को उकसाने वाली माना जाता है। इसे आत्महत्या की वजह मानते हुए निकोलस के माता-पिता ने यह दवा सिंगुलैर विकसित करने वाली कंपनी मर्क फार्मा के खिलाफ केस लड़ने निर्णय लिया। पर वकीलों से पता चला कि वे कोई केस नहीं कर सकते। वजह थी अमेरिकी कानून में अग्रिम-छूट का सिद्धांत। यही सिद्धांत अमेरिका में फार्मा व अन्य कंपनियों को कई मुकदमों से बचा रहा है। 90 के दशक से कई कंपनियां इसका सहारा लेकर राज्यों में कानून का उल्लंघन करके भी बच रहीनिकोलस की मौत सिंगुलैर के खतरे के बारे में आगाह न करने और इस मौजूद खामी की वजह से हुई इसलिए राज्य के कानून के हिसाब से परिवार को कंपनी पर मुकदमा करने व मुआवजा पाने का अधिकार था। पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2011 व 2013 में दिए आदेश ऐसे दावे खारिज करते हैं, जिनमें जेनरिक दवा विकसित करने वाली कंपनी की दवा का ब्रांड नेम या लेबल बदला गया हो।
82 आत्महत्या के मामले आए सामने
सिंगुलैर का पेटेंट 2012 में खत्म हो चुका है। अनुमान है कि कंपनी ने इससे करीब 5 हजार करोड़ डॉलर की कमाई की। अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने 2019 में जांच करवाई, 82 आत्महत्याओं को सिंगुलैर और इसके दूसरे जेनरिक वर्जन से भी जोड़ा। हालांकि, कोई कार्रवाई नहीं हुई। उसी साल मर्क ने अपनी सिंगुलैर दवा मार्केट से वापस ले ली।
कानून में कमियों से और बढ़ा दुख
निकोलस की मां जेनिफर के कहती हैं कि बेटे को खोने का दुख सबसे बड़ा होता है, उस पर नियमों में मौजूद कमियों की वजह से बड़ी फार्मा कंपनियों को कानून ही बचा लेता है। इन कंपनियों से वैसे भी आम लोग लड़ नहीं सकते। वहीं मर्क ने कोई बयान नहीं दिया, उसने अपनी दूसरी कंपनी ऑर्गानोन को मामला भेजा, जिसने केवल इतना कहकर पल्ला झाड़ा कि उसे विश्वास है सिंगुलैर की सुरक्षा को लेकर डॉक्टरों व मरीजों को पूरी और उचित जानकारी दी जाती है।