समाजवादी पार्टी ने टिकट के लिहाज से अधिकतर सीटों पर अपना होमवर्क पूरा कर लिया है, पर इस पर अंतिम मुहर भाजपा के प्रत्याशी को देखकर ही लगेगी।
लोकसभा के लिए शह-मात के खेल में सबकी नजर प्रतिद्वंद्वी की चाल पर है। समाजवादी पार्टी ने टिकट के लिहाज से अधिकतर सीटों पर अपना होमवर्क पूरा कर लिया है, पर इस पर अंतिम मुहर भाजपा के प्रत्याशी को देखकर ही लगेगी। मुख्य विपक्षी दल सपा को उम्मीद है कि सत्ताधारी दल अपने करीब 25-30 सिटिंग सांसदों का या तो टिकट काटेगी या उनके क्षेत्र में बदलाव करेगी। इस संभावना के मद्देनजर भी सपा अपनी रणनीति तैयार कर रही है।
चुनाव में मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा राजनीतिक दल के बजाय जातिगत प्रत्याशी की ओर खिसकता है। यही वजह है कि सभी प्रमुख दल टिकट फाइनल करते वक्त जातिगत समीकरणों पर विशेष ध्यान देते हैं। इसलिए सपा नेतृत्व ने भी अपनी प्रतिद्वंद्वी भाजपा के टिकट को लेकर आने वाले निर्णयों पर लगातार निगाह बनाए रखने की योजना बनाई है, ताकि आधार वोट के साथ-साथ उनका प्रत्याशी जातिगत समीकरणों के लिहाज से भी उपयुक्त हो।
उदाहरण के तौर पर रूहेलखंड से सटी एक सीट पर भाजपा के मौजूदा लोकसभा सदस्य ब्राह्मण हैं। सुगबुगाहट है कि भाजपा नेतृत्व उनका क्षेत्र बदलकर नजदीक की ही दूसरी लोकसभा सीट पर लड़ा सकता है। वहीं, नजदीक की सीट भी इस समय भाजपा के पास है और वहां से लोकसभा सदस्य पिछड़ा वर्ग से हैं। इन दोनों ही लोकसभा सदस्यों के क्षेत्रों को अगले चुनाव में आपस में बदला जा सकता है। इस संभावना के मद्देनजर सपा ने भी अपना होमवर्क किया है। इन दोनों सीटों में से पहली पर भाजपा के ओबीसी प्रत्याशी घोषित करते ही सपा वहां ब्राह्मण प्रत्याशी उतारेगी। वहीं, दूसरी पर सामान्य वर्ग का प्रत्याशी देगी।
इसी तरह से सपा मानकार चल रही है कि यदि भाजपा से सुभासपा का गठबंधन हुआ तो कम से कम एक से दो सीट पूर्वांचल में गठबंधन के तहत जा सकती है। इनमें कम से कम एक सीट पर पिछड़े वर्ग का प्रत्याशी होना तय माना जा रहा है। अगर ऐसा हुआ तो सपा यहां से ब्राह्मण या भूमिहार प्रत्याशी देगी। सपा सूत्रों का कहना है कि पार्टी नेतृत्व ने इन्हीं जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए हर सीट के लिए अपनी पुख्ता योजना बनाई है। प्रशिक्षण शिविरों और जिलेवार बैठकों के माध्यम से जमीन पर काम हो रहा है। प्रतिद्वंद्वी की चाल को भांपते हुए अपने मोहरों को आगे बढ़ाया जाएगा।